सलमान खान की चित्रकारी क्या कहती है ? / जयप्रकाश चौकसे

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सलमान खान की चित्रकारी क्या कहती है ?
प्रकाशन तिथि : 17 दिसम्बर 2013


सलमान खान की जनवरी में प्रदर्शित होने वाली 'जय हो ', जिसका नाम पहले 'मेंटल' रखा गया था, का पहला पोस्टर और ट्रेलर चंदन टॉकीज मुंबई में दिखाया गया और इस अवसर पर सलमान खान के साथ फिल्मकार सोहेल खान और भागीदार निर्माता सुनील लुल्ला मंच पर मौजूद थे। पोस्टर चारकोल से बनाया श्याम-श्वेत चित्र है और शैली सलमान खान की अपनी पेटिंग शैली की तरह है। संभवत: उन्होंने ही बनाया है। सलमान खान की प्रचारित छवि एक खिलंदड़, दबंग व्यक्ति की है परंतु उनकी लगभग सारी चित्रकारी श्याम-श्वेत है और संजीदा भी है। उसकी पेंटिंग में प्राय:शोख रंगों का अभाव है, केवल महिलाओं की बिंदी चटख लाल रंग की होती है। उनकी एक पेंटिंग में मदर टेरेसा की साड़ी का बार्डर रंगीन है। पेंटिंग में खिलंदड़ और दबंग सलमान कहीं नजर नहीं आते वरन एक चिंतित व्यक्ति की कृतियां लगती हैं। असली सलमान कौन है? फिल्मों में नजर आती है लोकप्रिय छवि और उसका अवचेतन उसकी पेंटिंग में नजर आता है जो एक अत्यंत चिंतित विचारवान व्यक्ति का है। उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन में चिंता का कोई कारण नहीं है वे एक संगठित परिवार के बड़े बेटे हैं और अपनी कमाई से उन्होंने सारे सदस्यों को सुदृढ़ आर्थिक सुरक्षा दी है तथा सभी सदस्य जानते हैं कि किसी भी समस्या के आने पर भाई साथ खड़े हैं। एक कार्यक्रम में डेविड धवन ने कहा कि सलमान खान शूटिंग पर हमेशा देर से आता है तो गोविंदा ने कहा कि कोई मित्र दु:ख में हो तो सबसे पहले सलमान खान मदद के लिए आता है। उनका हातिम ताई स्वरूप भी बहुत प्रचारित है।

सलमान खान का ट्रस्ट गरीबों की सहायता करता है और प्रतिवर्ष लगभग दस -बारह करोड़ की राशि सलमान भी अपनी ओर से देते हैं। उनकी चिंता के सामाजिक पहलू को समझा जा सकता है। उन्हें समाज में व्याप्त असंतोष की चिंता तो है परंतु पेंटिंग में अभिव्यक्त चिंता का कोई ठोस कारण स्पष्ट नहीं है। उसके व्यक्तित्व में एक बेचैनी है और सच तो यह है कि हम सभी बेचैन हैं, हममें से कुछ इस अकारण छाई उदासी को समझ नहीं पाते । सच तो यह है कि आनंद की झमाझम में भी अनजाना दु:ख कहीं न कहीं मौजूद रहता है। जीवन सदैव जारी रहने वाला उत्सव नहीं है और न ही यह निरंतर जारी मातम है। यहां तक कि मृत्यु भी जीवन के सामने हताश हो जाती है।

सलमान खान की 'जय हो ' का वैचारिक आधार यह है कि जब किसी व्यक्ति की मदद की जाये तो उससे धन्यवाद के बदले यह वचन लिया जाये कि वह अपने जीवन में कम से कम तीन मुश्किलज़दा लोगों की सहायता अवश्य करेगा। गोया कि आम जीवन में हम अच्छाई की एक श्रृंखला छोटी छोटी बातों के द्वारा बना सकते हैं। जिसके लिए सुपरमैन होना आवश्यक नहीं है अर्थात आम साधारण व्यक्ति में असाधारण क्षमता को उजागर करने का प्रयास है। इसे भी हम पेंटर सलमान खान की एक चिंता मान सकते है। फिल्म में सलमान शैली का संवाद भी है। कि आम आदमी सोया हुआ शेर है, उंगली करोगे तो फाड़ देगा। सारी दुनिया के सिनेमा में आम आदमी को नायक लेकर अधिकांश फिल्में गढ़ी गई हैं क्योंकि अधिकतम की पसंद के आर्थिक आधार पर टिके इस माध्यम में अमीर नायक के लिए कोई जगह नहीं है। इस माध्यम के पहले कवि चार्ली चैपलिन से यह सिलसिला शुरू हुआ था। टेक्नोलॉजी के उपयोग के लिए सुपरमैन फिल्में बनाई जाती हैं। इन सुपरमैन फिल्मों में नायक के पास असाधारण क्षमताएं है परंतु चरित्र में मानवीय स्पर्श जरूर रखा जाता है अर्थात सुपरमैन आम आदमी की फंतासी है। वह कल्पना करता है कि उसके पास में शक्तियां हैं जिनके सहारे वह बुराई को पराजित कर सकता है । गणतंत्र व्यवस्था में यह फंतासी वाली शक्ति का प्रतीक है मतपत्र परंतु इस क्षेत्र में कभी मुखौटे उसे ठगते हैं।

बहरहाल सलमान खान को सबसे अधिक उसके वे प्रशंसक समझते हैं जो कभी उससे व्यक्तिगत तौर पर नहीं मिले। व्यक्तिगत तौर पर हम जिन्हें जानते हैं, सचमुच कितना जानते है, यह कहना कठिन है। किसी अदृश्य अनजान माध्यम से सलमान की चिंताएं और सपने उसके प्रशंसक समझ ही लेते हैं।