सवाल आपके, जवाब हमारे / प्रमोद यादव

Gadya Kosh से
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मेरे एक मित्र हैं जो एक साप्ताहिक हिंदी पत्रिका के संपादक हैं. उन्हें मालूम है कि मुझे भी इसी तरह की बीमारी है इसलिए कभी-कभी मेरा कुशलक्षेम पूछ लेते हैं.(पर मेरा कोई लेख कभी छापते नहीं) एक बार उन्होंने फोन कर कहा कि उन्हें मेरी मदद की दरकार है. बताया कि पत्रिका के विशेष कालम ‘ सवाल आपके, जवाब हमारे ’ देखने वाले सज्जन पिछले पांच- छः दिनों से कहीं लापता हैं. उनके घरवाले कोई सवाल-जवाब नहीं कर रहे फिर भी रिपोर्ट लिखा दी है. अब मामला ये है कि हमारी पत्रिका का यह सबसे ज्यादा पापुलर स्तंभ है, इसे कंटीन्यू करना अति आवश्यक है. सवालों के जवाब देने में माहिर थे वो. बड़ा धांसू जवाब बनाते थे. मैं चाह्त्ता हूँ कि इस बार आप इसे कंटीन्यू करें. हमारे पाठक अगर तुष्ट हुए तो यह स्तंभ आगे भी आप ही देखेंगे. इस सप्ताह के सवाल किसी के हाथ भेज रहा हूँ...आशा करता हूँ, उनसे भी बेहतर और कुछ नयेपन से जवाब देंगे. मैंने हामी भर दी और कहा कि सवाल चाहे कैसा भी, कितना भी बड़ा या पेचीदा हो, जवाब मेरा केवल एक ही शब्द का होगा. मंजूर हो तो भेजे. वो मान गये. इस हफ्ते के सवाल-जवाब कुछ इस तरह बन पड़े हैं, देखें-

बुलंदशहर से बाली बेताल का प्रश्न – अपने सात-वर्षीय सुपुत्र के आचार-व्यवहार से परेशान हूँ. कोई उसे कितना भी छेड़े, गुस्सा दिलाये, वह कभी उत्तेजित नहीं होता.शांत ही रहता है. चेहरे पर कोई भाव नहीं होता. बहुत कम बोलता है और इतनी धीमी आवाज में बोलता है कि खुदा जाने उसे खुद भी सुनाई पड़ता है कि नहीं. भगवान जाने बड़ा होकर क्या बनेगा?

जवाब – ‘ पी.एम.’ (मनमोहन सिंह)

झुमरीतलिया से तरुण तालुकदार का प्रश्न – जब से कोयला आबंटन घोटाले के बारे में पढ़ा-सुना है, मैं एक अपराध भाव से घिर गया हूँ. कोयले की सिगड़ी से मेरे घर में खाना बनता है. जब-जब खाना खाता हूँ..मुझे लगता है – मैं भी कहीं न कहीं इस घोटाले में इनवाल्व हूँ..मैं ठीक से खा नहीं पाता. सलाह दें, क्या करूँ?

जवाब – ‘ फाका ‘

मुंबई से मालती मुले का प्रश्न – एक स्त्री का अंतिम लक्षय क्या होता है?

जवाब – ‘ शादी ‘

भाटापारा से बचकामल का प्रश्न – पत्नी लड़कर मायके चली गयी है. उसे शक है कि मैं किसी से प्रेम करता हूँ लेकिन सच मानिये, इश्वर की सौगंध खाकर कहता हूँ- मेरी कोई प्रेमिका न कभी थी, ना है और अब तो पत्नी भी नहीं है. बताइये, क्या करूँ?

जवाब – ‘ ऐश ’

नईदिल्ली से नवीन नौटियाल का प्रश्न – रात में भयानक सपने आते हैं. कभी देखता हूँ कि मैं रेल की पटरी पर कटकर मर गया तो कभी नदी में डूबकर मर रहा हूँ. इससे छुटकारा पाने क्या करूँ?

जवाब – ‘ जागरण ‘

कोलकाता से कामदेव कामले का प्रश्न – निपट कुंवारा हूँ. सीधे-सपाट जिंदगी से उब गया हूँ. वही रोज-रोज का खाना-पीना, सोना-पढ़ना...क्या करूँ कि जिंदगी में जलजला आ जाये?

जवाब – ‘ शादी ‘

जबलपुर से जनकलाल का प्रश्न – मेरी मासिक आय केवल पन्द्रह सौ रूपये है. सौभाग्य कहिये या दुर्भाग्य, एक गरीब सुन्दर लड़की से शादी कर मंहगाई के इस दौर में आफत मोल ले ली है. बताएं, अब मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब – ‘ परिवार-नियोजन ‘

भोपाल से भोलाराम जी का प्रश्न – मुझे कोई भी काम-धंधा सूट नहीं होता, बतायें- क्या करूँ?

जवाब – ‘ राजनीति ‘

आखिरी प्रश्न चेन्नई से के. चिल्वन का – विज्ञानं का स्टूडेंट हूँ, बताएं- अगर सूरज रात को निकलने लगे तो क्या होगा?

जवाब – ‘ दिन ‘

‘ सवाल-जवाब ‘ प्रकाशित हुआ तो पाठकों ने काफी पसंद किया. संपादक मित्र ने बधाईयां देते (और घोर चिंता करते) प्रश्न किया कि कल को अगर वह लापता सज्जन (जो यह स्तंभ देखते थे) वापस आ जाये तो उसे क्या जवाब दें?

मैंने कहा – ‘ राम-राम ‘

कुछ दिनों बाद ज्ञात हुआ कि वो लापता सज्जन परमानेंट लापता हो गये. सबको ‘ राम-राम ‘ कर ‘ ऊपर ‘ की यात्रा में निकल गये. अब संपादक मित्र चिंता-मुक्त थे और मैं चिंताग्रस्त क्योकि जवाब के साथ – साथ मुझे सवाल भी बनाने थे. संपादक मित्र ने रहस्योदघाटन किया कि कोई इतना खाली नहीं है कि यह सब फालतू काम करे. पत्रिका चलाने के लिये यह सब हमें ही करना होता है. अब आप जी-जान से लग जाइये इस (फालतू) काम में.