सहजीविता / दीपक मशाल

Gadya Kosh से
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सफ़ेद कबूतर और कबूतरी के उस जोड़े ने दुनिया देख रखी थी और वो बहेलिया था कि उन्ही के घोंसले वाले पेड़ के नीचे अपने दाने,जाल और आस बिछाए था। कबूतर और कबूतरी ने एक दूसरे की तरफ देखा, मुस्कुराए और फिर भोजन की तलाश में पास के कस्बे की तरफ उड़ गए।

मगर शाम होते-होते जब कबूतर को कहीं से भी दाने हासिल न हुए तो खाली ही अपने घोंसले में लौट आया। वापस आकर पता चला कि कबूतरी के साथ भी वही हुआ। मारे भूख के दोनों का बुरा हाल था, नीचे देखा तो जाल और दाने अभी भी बिछे हुए थे। कबूतर ने कबूतरी से पूछा, “क्या कहती हो? खाया जाए?”

“पगला गए हो क्या? एक रात भूखे नहीं सो सकते, चार दानों के लिए जान जोखिम में डालने पर तुले हो।” कबूतरी ने गुस्सा दिखाते हुए कहा।

“घबराओ मत प्रिये, मैं पता करके आया हूँ। कस्बे में मंत्री जी कल एक खेल प्रतियोगिता के उदघाटन समारोह में हमें अपने हाथों से शांति के प्रतीक के रूप में उड़ाने वाले हैं, जिसके लिए ही ये बहेलिया हमें पकड़ना चाहता है। सिर्फ एक रात की बात है, अभी खाना भी मिलेगा और कल आज़ादी भी।”

वो युगल मुस्कुराते हुए दानों पर जा बैठा, झाडी में छिपे बहेलिये ने जाल खींच लिया।