सहस्रशीर्षा पुरुष: / दिनकर

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जननायक स्वामी सहजानन्द सरस्वती

दया-धाम उद्‍दाम दार्शनिक, आदि अन्त के अन्तर्यामी।
स्वयं स्वयंभू सदा सर्वदा, सेवक सहचर, रहकर स्वामी॥

लाखों भूख-प्यास के मारे, मरी हुई आँखों के पानी।
प्राण पटल पर लिखित अश्रु से, कसक सिसक की करुण कहानी

नमन पुनीत अमल को

नहीं फूलते फूल सिर्फ राजाओं के उपवन में।
अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुंज कानन में॥

समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल।
गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल॥

'जय हो' जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को।
जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को॥

ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है।
दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है॥

क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग।
सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग॥

--रामधारी सिंह 'दिनकर'