साँप-पहिलोॅ दृश्य / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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(माधो ढोल बजैनें, शेखावत मस्ती में नाचलोॅ-झुमलोॅ आवै छै)

रम्मा जैवै रे हम्में मइयो मंदिर दरसनमो रे ना,
रम्मा देखी हमरा मैया होतै खुशी मनमो रे ना।
रम्मा सुनी रे लैहीं मनोॅ के उदगरवो रे ना,
रम्मा हम्मुं रे देश भारत के छहलवो रे ना।
रम्मा जहाँ रे बनलै जनको किसनमा रे ना,
रम्मा मारी रे देवै देशोॅ के दुश्मनमा रे ना।
हाय गे दुरगा लागी रे गेलै हमरा सोनमा पर बैरी नजरियो न हो।
हाय गे मैयो केना केॅ बतैयौ हम्में आपनोॅ दरदियो न हो।

रम्मा रोजे-रोजे बढ़ै छै बेकारियो रे ना,
रम्मा बांटै लेली लड़ै माय के करेजवो रे ना।
रम्मा बढ़लोॅ जाय छै देशोॅ में उत्पतवो रे ना,
रम्मा कश्मीर हमरोॅ हिरदय के टुकड़वो रे ना।
रम्मा वहूँ करै अलगै लेली झगड़वो रे ना,
रम्मा सुतल बुद्धिजिविया, निचितवो रे ना।
हाय गे दुरगा सीमा पर तैयार दुश्मनें ललकारेॅ न लागलै हे।
हाय गे मैयो सुआरथ में डुबलोॅ देशोॅ के बेटवो जगावै न मइयो हे।

रम्मा मिलिये करोॅ मैया केरोॅ आरती आबेॅ रे ना,
रम्मा राजस्थानी माँटी केरोॅ दियाियो रे ना।
रम्मा हरा-हरा पगड़ी पंजाबोॅ केरोॅ रे ना,
रम्मा धानी रे चुनर लानवै, कश्मीरोॅ केरोॅ रे ना।
रम्मा धोती रे छजतै दक-दक बंगालोॅ केरोॅ रे ना,
रम्मा कुरता रे पिन्हवै, गुजरातोॅ-मराठो केरोॅ रे ना।
रम्मा चादर रे शोभतै रेशमी बिहारोॅ केरोॅ रे ना,
हाय गे दुरगा खोजी रे खोजी सुन्दर चीजोॅ लानवै सब्भे प्रान्तोॅ सें न हे।
हाय गे मैयो बिगड़ल करमिया संवारै आपनोॅ देशोॅ के न हे।

रम्मा बैरी छाती करवै गोली के बरसतवो रे ना,
रम्मा सुमरी रे लेवै काली कलकŸाावाली रे ना।
रम्मा पावन धरती रवि, सुभाश खुदी वोसवो रे ना,
रम्मा सुमरै रे छियै नानक, भगतसिंह, गोविन्दो आबेॅ रे ना।
रम्मा असफाक उल्ला, पीर, हमीद के ई देशवो रे ना,
रम्मा सब्भैं रे लड़ी लेलकै आजादियो रे ना।
हाय गे दुरगा कतनां रे दुखें मिललै आजादी न हमरा हे,
हाय गे मैयो तहियो न एकरोॅ कीमत बूइै देशोॅ के रे लोगें न हे।

रम्मा भाषा रे सुमरौं हिन्दी, उर्द, संस्कृत आबेॅ रे ना,
रम्मा तमिल, तेलगु, मलयालम, कन्नड़ आबेॅ रे ना।
रम्मा सुमरौं रे बंगला, गुजराती, पंजाबी आबेॅ रे ना,
रम्मा मराठा, उड़िया, कश्मीरी, अंगिका आबेॅ रे ना।
रम्मा असमी, संथाली, मगही आरो भोजपुरी रे ना,
रम्मा विविध भाषा-भाषा के छेकै ई देशवो रे ना।
हाय गे मैयो भारती सभ्भे रे भाषा गूंथी मलवो तोरा चढ़ैवै न करवै हे,
हाय गे मैयो रहवै न करवै सभ्भे मिली तोरा नगीचेॅ न हे।

रम्मा देवो रे सुमरौं राम, कृश्ण, जीसस आबेॅ रे ना,
रम्मा गुरु नानक, बुद्ध, वासू, अल्ला मियाँ रे ना।
रम्मा सिधु-कानू, विरसा मुंडा, बीसूरौत आबेॅ रे ना,
रम्मा ग्रथेॅ रे सुमरौं गीता, वेद, कुरान आबेॅ रे ना।
रम्मा ग्रंथसाहिब, रामायण, वाइविलो आबेॅ रे ना,
रम्मा सब्भे में लिखलोॅ एक्के देवोॅ के कहानियो रे ना।
हाय गे दुरगा सब्भे मिली उतारवै भारत माता मंदिर आरतियो आबेॅ हे,
हाय गे मैयो भारती, तोरा रे मुरती हीरा, मोती जड़वै न करवै हे।

आरो पढ़वै न करवै एकता केरोॅ पठवो न गे मैयो।

(एक दर्शक आंखी सें लोर पोछतेॅ हुवेॅ उठै छै)

दर्शक: धन्य छोॅ तोय सिनी। देश के एकता आरो अखंडता लेली करलोॅ जाय रैल्होॅ ई मेहनत कभी बेरथ नै जैतै। जगतै यै देशोॅ रोॅ जनता आरो मांटी में मिलाय देतै ओकरा जें लूटी रैल्होॅ छै ई देशोॅ केॅ। भारत अखंड छै, अखंड रहतै। ;(भाव विभोर होय केॅ भारत माता के जय आरो महात्मा गाँधी रोॅ जय के नारा दै छै। सब्भैं साथ दै छै)

शेखावत : जनता केॅ जगैवोॅ ही तेॅ हमरोॅ लक्ष्य छेकै। तोरा सिनी पर प्रभाव पड़लौं, हम्में धन्य होय गेलां।

दर्शक: हों शेखावत भाय, एक बात कहियौं?

शेखावत: कहोॅ नी।

दर्शक: हमरा सिनी केॅ फुसलाय लेल्हौ अतनै टा में। आय तीन-चार रोजोॅ सें प्रचार करी रैल्होॅ छेलौ कि समय साहित्य सम्मेलन के नाट्य इकाई अंगिका लोक नाट्य मंच द्वारा नाटक देखैलोॅ जैतेॅ। बहुत जगहोॅ में खेलला के बाद आय यहाँ करोॅ टैम देलेॅ छेलौ। कौन नाटक छेलै;(याद पारतें हुवेॅ) नाम भूली रैल्होॅ छियै।

शेखावत: हों ठिक्केॅ याद दिलौलौ। अखनी जे नाटक देखैलोॅ जैतौं, ओकरोॅ नाम छेकै "साँप"

दर्शक: हों ठिक्केॅ कहलौ। 'सांपे' नाम के प्रचार माइकोॅ सें करी रैहलोॅ छेलै। तबेॅ देर की। तेॅ आबेॅ शुरू होय जाय।

शेखवत: हों, तबेॅ देर की। आबी जो माधो विद्यार्थी बनी केॅ। ; दर्शक दीर्घा हिन्नेॅ सम्बोधित करी केॅद्ध मानी लेॅ हम्में कोय हायस्कूल या कॉलेज या कोय सरकारी या प्राइवेटे स्कूल के मास्टर छेकियै आरो माधो हमरोॅ विद्यार्थी।

दर्शक : मानी लेलियै। आबेॅ स्कूल लगाबोॅ।

शेखावत: आभी केनां स्कूल लागथौ भाय। थोड़ो इन्तजार करोॅ। नाटक करै लेली वेश-भूशा आरनी तेॅ धारण करै लेॅ लागेॅ। ; सोची केॅद्ध तेॅ हों, हमरा गुरूजी बनना छै। कोय भाय हमरा छड़ी दै देॅ। कोय टोपी. कोय चश्मा। हम्में गुरूजी बनी जैयौं। ; दर्शक दीर्घा सें मांगै छै तन्टा भाय जी तोंय किरपा करी केॅ चश्मा दिहोॅ। तोंय टोपी आरो हे हो भाय जी तोहें थोड़ोॅ देरो लेली छड़ी दिहोॅ तेॅ। ; सामान लैकेॅ धारण करै छै

माधो: हमरा विद्यार्थी बनै लेली कोय खास चीजों रोॅ तेॅ ज़रूरत नै छै। किताब, कौपी आरो कलम दै दॅे तेॅ काम चली जाय।

भीड़ सें सामान हासिल करी केॅ विद्यार्थी बनी केॅ बैठै छै

दर्शक : बिना कुरसी रोॅ काम चलथौं मास्टर साहब? कुरसियो लइयै लेॅ। कुरसी बिना गुरूजी की? ; कुरसी दै छै

शेखावत:  ; कुरसी पर अकड़ी केॅ बैठै छै माधो, तोंय स्कूल पढ़ै लेॅ एैलोॅ छें रे!

माधो : हों माट साहब।

शेखावत: की, की खाय केॅ ऐलोॅ छै, रे।

माधो : पढ़ावै लेली हमरोॅ खाना सें कि मतलब?

शेखावत: चूप। उल्लू कहाँ करोॅ। जादा सयाना मत बनें। हम्में तोरोॅ गुरूजी, की तोंय हमरोॅ गुरूजी? जे पूछै छियो चुपचाप जबाब देनें जॉे। नै तेॅ देखै छैं नी छड़ी।

ॅमाधो : ; डरतें हुवेॅद्ध जी...ज...जी. आबेॅ हेन्होॅ गलती नै होतै माट साब।

शेखावत: तेॅ बोल। लजावेें नै। की, की खाय केॅ ऐलोॅ छें?

माधो : तियोंन-भात?

शेखावत : तियोंन भात।

माधो : हों माट साब। तियोंन भात। आलू के तियोंन आरो सीतासार चॉैरोॅ रोॅ भात, इस्स। खूब खैलियै। सोटी लेनें छियै।

शेखावत: दाल नै रे?

माधो : द... द... दा...ल। दाल..., दाल कहियॉे-कहियॉे मिलै छै।

शेखावत: माय-बापें गाय नै पोसलें छौ रे? बिना दूधोॅ के

केनां खैलोॅ जाय छौ रे?

माधो : यहाँ मोॅन भरी तरकारी तेॅ ढ़ेर मिलै छै। अतनी टा तरकारी आरो अत्तेॅ; हाथोॅ सें संकेत करी केॅ बताय छै भात। भरी थरिया सौंन-मौंन करी केॅ केन्हौं केॅ खाय छौं। दालोॅ के तेॅ कहियोॅ-कहियोॅ परवे-तिहारी दर्शन होय छै। पनछेछरोॅ। अट्ट पानी। नामोॅ के दाल। हों, मिरचाय दै केॅ दाल आरो तियोंन केॅ तिक्खोॅ बनैलियौं आरो सवादी-सवादी, निसुवाय-निसुवाय खैलियौं। ऐ... खूब खैलोॅ

जाय छै तेॅ।

शेखावत : गाय तेॅ पोसलोॅ जावेॅ सकेॅ छेॅ। ऐकरा सें दूध...

माधो : धौ माट साब। की रं तोंय बात करै छोॅ। गामोॅ के सबटा दूध बाज़ार बिकै लेॅ चल्लोॅ जाय छौं! बेचतै नै तेॅ छुछ्छे दूध पीतै। यहाँ तेॅ सबटा खाय रोॅ सामान दूध बेची कीनै लेॅ पड़ै छै।

शेखावत: पौवा-कनमा कैन्हें नी खाबेॅ सकतै। खैबें नै तेॅ गुद्दी कहाँ सें होतौ।

माधो : यहेॅ बात एक दिन हम्में माय सें घरोॅ में कहलियै। कानें लागलियै कि माय, गुरूजी कहै छै कि दूध नै खैबें तेॅ माथोॅ कहाँ सें होतौ रे। तेॅ जानै छोॅ माट साब कि कहलकै मांय।

शेखावत: कि कहलकौ मांय रे?

माधो : कहलकै कि तोरोॅ माट साबोॅ नंाकी हमरौ दस हजार दरमाहा मिलतिहै तबेॅ तेॅ।

शेखावत: सभ्भे रोॅ नजर मास्टरे पर रे। कैन्हें नी; जनता के निकट संपर्क में जे रहै छै। दूर-दिल्ली में, शहरोॅ में रही केॅ दरमाहा उघाय केॅ मौज-मस्ती करै वाला ऑफिसॉे के किरानी सें लैकेॅ ऑफिसर तांय कथी लेॅ केकरौह नजर एैते। घूस लैकेॅ शहरोॅ में लाखोॅ-करोड़ॉे के मकान एक ठो साधारण किरानी बनाय लै छै। अलगी आमदनी सें ऐश करै छै सभ्भे विभागोॅ केॅ नौकरियां। मास्टरोॅ के पैसा पर...

माधो : माय-बाबू एक दिन बोली रैल्होॅ छेलै कि कोय चिकनोॅ नै। सभ्भे रोॅ एक्के हाल, जेकरा जेना मौका मिलै छै चूसी रैल्होॅ छै भारत माता के खून।

शेखावत : तोरोॅ माय गलती नै कहलेॅ छौ। मास्टरें आबेॅ पढ़ै-पढ़ाबै नै छै। हमरोॅ शिक्षा-पद्धतियोॅ यै मायना में कम दोशी नै छै। अत्तेॅ-अत्तेॅ लड़का सिनी केॅ मास्टरें स्कूली में वहेॅ रं राखै छै जेनां अरगड़ा में मवेशी।

माधो : अरगड़ा?

शेखावत: हों, अरगड़ा नै तबेॅ की। चालीस-पचास चेला के बैठै रोॅ जघ्घोॅ एक कमरा में, आरो बैठै छै सौ-सवा सौ। गर्मी में क्लास गैस चैम्बर बनी जाय छै, गंदगी सें नाक नै देलोॅ जाय छै मतुर मास्टर-लड़का दुन्होॅ केॅ वहीं में रहना छै।

माधो : सच्चे कहलोॅ माट साब। बिजली पंखा कुछुवे नै। मास्टर आरो लड़का दोनों पसीना-घाम पोछतेॅ-पोछतेॅ परेशान। घामोॅ सें लथपथ देहोॅ के महकवोॅ उंह... उखबीख करेॅ लागै छै मोॅन।

शेखावत: एन्हां में पढ़ैतै की कपाड़। बढ़ियां खाना नै। बढ़ियां सें पिन्है-ओढ़ै के औकात नै, उपरोॅ सें दर्शन आरो साहित्य केॅ माथा में अटावै के प्रयास। प्रतिभा फूलै-फलै के पैन्हैं कुम्हलाय जाय छै। दम तोड़ी दै छै बीचै रसता में।

दर्शक : आरो मास्टर सिनी?

शेखावत: हीं, हीं, हीं; दांत निपोरै छै की बोलै छोॅ। केकरा सें छिपलोॅ छै। हेडमास्टर याकि कोय भी संस्था या विभागोॅ रोॅ हेडोॅ के! सरकारी पैसा खाय केॅ पचावै लेली कागज-पत्तर के हिसाब-किताब, भोचरवाजी, संघवाजी आरो हड़ताल सें फुर्सत कहाँ।

दर्शक : उपरला अधिकारी सें डर नै लागै छौं?

शेखावत: ओकरा खाय केॅ डकार करै सें फुर्सत तेॅ ढ़ेर छै। आखिर वहोॅ तेॅ अपना ऑफिसॉे के मालिक छेकै आरो यै में हमरा मास्टरोॅ केॅ केकरोॅ डर। उपरला अधिकारी रसगुल्ला, पेड़ा आरो घीयै में खुश।

दरमाहा महिना पुरथैं खनाखन मिली जाय छै। पढ़ाय-लिखाय तोंय जानौ।

दर्शक : लिखापढ़ी करभौं। शिकायत करभौं?

शेखावत: शिकायत करी केॅ तोंय की करभौ। चांदी रोॅ जूता। रसगुल्ला, पेड़ा, घी, तोहें करभौ की?

दर्शक : ऐकरोॅ उपाय?

शेखावत: शिक्षा पर जे रोजे प्रयोग होय रैल्होॅ छै, ई बंद होना चाहियोॅ। शिक्षा केॅ जीवन से जोड़ना ज़रूरी छै। हम्में-तोहें आपनोॅ नैतिक, सामाजिक आरो राश्ट्रीय चरित्र ठीक करोॅ। सब अपन्हैं ठीक होय जैतै। ; यही बीचोॅ में हाथोॅ में किताब, कौपी लेनें डरलोॅ-सहमलोॅ गिरीश आवै छै। स्कूल आवै में देर होय गेला पर जेना लड़का डरलोॅ आवै छै

शेखावत:  ; धोपतेॅ हुवेॅद्ध अत्तेॅ देरोॅ सें स्कूल आवै छै रे। की रे गिरीशवा। स्कूल समझलेॅ छें की गुहाल रे। ; हाथोॅ में छड़ी उठाय छै

गिरीश : ; डरलोॅ आवाज में कपसतेॅ हुवेॅद्ध देर होय गेलै माट साब।

शेखावत: हौं तेॅ हम्में देखिये रहलोॅ छियै। मतुर देर होलौ केन्हें। ; चोटी पकड़ी केॅ घीचै छै

गिरीश : ; चुप। सिर्फ़ कानै छै द्ध

शेखावत: बोलै छें कैन्हें नी बे? बोंगोॅ होय गेलोॅ छै की? ; छड़ी सें पीटै छै

गिरीश : आबेॅ नै हो माट साब। ; जोर-जोर सें कानै छै आबेॅ कहियो देर नै होतै।

शेखावत: पूछै छियौ की आरो बोलै छेैं की? चोट्टा, समय पर स्कूल नै एैभैं तेॅ पढ़वैं की हमरोॅ माथोॅ। की करी रैल्होॅ छेलैं अतना देर तांय। बोल नै तेॅ मारी केॅ ठीक करी देवौ।

गिरीश : (कपसी-कपसी केॅ लोर पोछतें हुवेॅ) बाबू कहलकै की भैसी केॅ थोड़ोॅ देर लेली घुराय-फिराय केॅ लानी दहीं। भैंस लैकेॅ बहियार गेलियै।

घुराय-फिराय केॅ, खुट्टा में बान्ही केॅ धड़फड़ खाना खाय केॅ दौड़लेॅ एैलोॅ छियै।

शेखावत: नहैलो तेॅ नहियें होवैं?

गिरीश : नै माट साब। नहैतियै तेॅ आरो देर होय जैतियै।

शेखावत: हों तबेॅ की, नहैवोॅ कौन ज़रूरी छै। भरी पेट कोरमकोर ठूंसलै की नै। करमनासोॅ कहाँ करोॅ। लागै छौ तोरा बापें पढ़ै नै देतौ। सबक याद करनें छैं।

गिरीश : जी नै गुरूजी.

शेखावत: ठीक छै। कथी लेॅ याद करवैं। पढ़ला सें की फायदा? पैरवी आरो नकल के छूट छेवै करै। पोथांग निकालना छै आरो फटाफट उतारी देना छै। बिना मेहनत रो काम होइये जाय छै तेॅ पढ़वैं कथी लेॅ। पैसा चाहियोॅ। खाली पैसा। पैसा खरचा करनें जो आरो डाक्टर, इंजीनीयर, वकील, प्रोफेसर, दरोगा, डी0 ओ0, बी0 डी0 ओ0 बनलोॅ जॉे;(धोपी केॅ) बैठ नी। खाड़ोॅ कथि लेॅ छें। पढ़ै लेॅ मारवौ-पीटवौ तेॅ बाप लाठी लैकेॅ हमरै डंगावै लेॅ पहुँची जैतौ। कथी लेॅ कपाड़ भंगवैवोॅ हम्में।

गिरीश बैठै छै

माधो : हम्में पढ़ी-लिखी केॅ सिपाही बनवै। देशोॅ रॉे सेवा करवै।

शेखावत: हों तबेॅ की, सिपाही बनिहें। जनता सें, गरीब-गुरबा सें अठन्नी-चौवन्नी तक डराय-धमकाय केॅ वसुलिहें। दरोगा जों बनी गेल्हैं तबेॅ की कहना। पाँचो अंगुरी घीयै में।

माधो : हौं सिपाही नै माट साब। सीमा पर लड़ैवाला।

शेखावत: हों। बुझलियै। यै देशोॅ के लोगोॅ रोॅ नैतिक पतन अतनै होय गेलोॅ छै कि राश्ट्रीय चरित्र के नाम पर सुन्नां। सीमा पर रहियैं, देशोॅ के माल ट्रक रोॅ ट्रक विदेश भेजै में पैसा कमैयैं। देशोॅ के गुप्त जानकारी आरो कागज-पत्तर दुश्मनोॅ केॅ बेची लाख-करोड़ के

धंधा करिहैं नाजायज धन लैकेॅ आतंकवादी केॅ छोड़ियैं।

माधो : ... तबेॅ नेता बनवै। देशोॅ केॅ दिशा देवै। समाजोॅ केॅ सुधारवै।

शेखावत: (व्यंग्य सें हाँसै छ) ै कुरसी लेली लड़तेॅ जिनगी बीती जैतौ। मंत्री-

विधायक बनियैं। जनता कॅे भाशण के अमृत पिलाय केॅ लूटै के सिवाय दोसरोॅ काम नै करै पारवै। संसद आरो विधानसभा में बैठी केॅ आपनोॅ दरमाहा, पेंशन आरो अन्य सुविधा लेली कानून आलीशान मकान बनैयैं। एकदम कम सूदी पर कार लिहैं। जें चुनी भेजलकौ ओकरा पूछवैं की?

माधो : हम्में तेॅ देश सेवा करै लेॅ चाहै छियै। संसद में बिना पहुँचले केना काम होतै।

शेखावत: पैन्हें चुनावोॅ में जीतवेॅ तबेॅ नी रे। आबेॅ तेॅ राजनीतियो में पैसा रोॅ खेल हुवेॅ लागलै। पैसा दैकेॅ गुंडा आरो अपराधी केॅ बिना आपनोॅ तरफ करनें ई खेल खेलवोॅ बड्डी मुश्किल। बूथ कैप्चर्रिग, वोट लुटिंग, तबेॅ नी जीतेॅ पारिंग। ; सब्भे हाँसै छै

दर्शक : ई सिनी तेॅ अजगुते जानकारी दै रहलोॅ छौ तोंय सिनी। सत्यानाश होय गेलै ई भारत भूमि के. किसानोॅ रो ई देश आरो किसान मजदूर के हालत सबसें जादा चौपट। महगोॅ खाद-बीज दैकेॅ खेती करलकै बेचारां आरो खमारी पर अत्तेॅ सस्तोॅ बिकी जाय छै।

शेखावत: अरे ई निमुहां कमैतेॅ मरौ। भरी पेट ओकरा अन्न कहियो नसीब हुवेॅ पारतै कि नै, कहना मुश्किल। अब तांय कोनोॅ सरकारें किसान-मजूर लेली काम नै करलकै। गरीबोॅ घरोॅ के कोय देशोॅ रोॅ

प्रधानमंत्री या राश्ट्रपति बनतिहै तबेॅ तेॅ। पैसा रो मार, बेचारा गरीबोॅ कन प्रतिमा सड़ी केॅ मरी जाय छै।

दर्शक : ठिक्के कहनें छ, ै कमाबै लंगोटिया, खाय नमधोतिया। यै देशोॅ केॅ भगवानें बचावेॅ पारेॅ।

शेखावत: जे देशोॅ में विद्वान, देशभक्त, कवि, साहित्यकार, वैज्ञानिक आरो बुद्धिजीवी के आदर नै होय छै ओकरोॅ मालिक सीताराम।

आय यै वर्ग नें चुपचाप परहेज करी लेलकै। जनता के इच्छा रो

अनादर होय रैल्होॅ छै।

गिरीश : ; बीचै मेंद्ध हम्में डॉक्टर बनवै माट साब।

शेखावत: भैंस चराव। घास गढ़। डाक्टर तेॅ बनिये जैवैं।

माधो : डाक्टर बनी केॅ आदमी रोॅ सेवा तेॅ करले जावेॅ पारेॅ छेॅ।

शेखावत: (गोस्साय केॅ घृणा सें) सेवा लेली डाक्टर के बनै छै आवेॅ रे। रोगी कानतै रहै छै। दबाय रोॅ पैसा बिनु आदमी मरी जाय छै। दवाय रोॅ दाम कम रखलोॅ जाय, ऐकरा लेली व्यवस्था भी प्रयास नै करै छै। डाक्टर फीस लैकेॅ भी दया भाव सें पूर्ण नै हुवेॅ पारै छै। रोगी सें जादा सें जादा पैसा वसुलै लेली डाक्टरें की-की करै छै, के

नै जानै छै।

दर्शक: ठिक्के कहलौ गुरूजी. औकरौ पर ऑपरेशन में कैंची पेटै में छोड़ी दै छै। सरकारी अस्पताल गेलोॅ रहियै। दवाय तेॅ खैर सब्भें मिली केॅ उपरे-उपर बेचिये लै छै। समय पर डॉक्टर साहब के मुलकातोॅ मुश्किल।

शेखावत:  ; गंभीर होय केॅद्ध की कहि कहियौं सब्भे जगहोॅ के एक्के हाल कांहू काम नै होय छै। कोय काम करै लेॅ नै चाहै छै। जे काम होय रैल्होॅ छै, अलगी कमाय के लोभोॅ में। जे जहाँ छै। वांही लूटी रैल्होॅ छै। पढ़ी केॅ इंजीनियर, ओवरसियर बनतै, देशोॅ के मांटी बेची केॅ खैतै। हर जगह आम जनता रोॅ शोशण होय रैल्होॅ छै। व्यवस्था ही कुछ एैन्होॅ होय गेलोॅ छै कि वै जग्घा पर जावै वाला हर कोय बदली जाय छै। भगवाने मालिक छै यै देशोॅ रोॅ।

दर्शक : तकदीर के भरोसा बैठला सें तेॅ नै हुवेॅ पारेॅ। क्रिया तेॅ करै लेॅ पड़तै। कर्Ÿाा के पीछू-पीछू तकदीर चलै छै।

शेखावत : लोगोॅ में राश्ट्रीय चरित्र पैदा करै लेॅ पड़तै। हेनोॅ राश्ट्रीय चरित्र जेकरा में आध्यात्म भी पेसलोॅ रहेॅ। आध्यात्मिक राश्ट्रीयता। ऐन्होॅ व्यवस्था केॅ बदली दैकेॅ ज़रूरत छै जेकरोॅ भीतर अन्याय, शोशण, फूलै-फलै छै आरो जनता के बहुत बड़ोॅ हिस्सा केॅ ओकरोॅ

बुनयादी अधिकार सें वंचित करी देलोॅ जाय छै। व्यवस्था के पोर-पोर में समैलोॅ छै साँप। ई साँपो के गर्दन तोड़ै लेॅ पड़ै।

माधो : ; करूणा सें लगभग चीखतें हुवेॅद्ध भाशण! सिरिफ भाशण! ; चक्कर आवै छै। माधो दुनु हाथोॅ सें कस्सी केॅ माथोॅ पकड़ै छै। गश खाय छै। जहिया सें जनमलोॅ छी छुछ्छे भाशणे सुनी रहलोॅ छी। ज़रूरत छै काम करै के, आरो दै रहलोॅ छै सभ्भैं खाली भाशण। ; माथोॅ पकड़ी केॅ बैठी जाय छै। शेखावतें आवी केॅ संभारै छै

शेखावत:  ; डरलोॅ आवाज में धड़फड़ाय केॅद्ध की होय गेलोॅ माधो। मन ठीक छौ नी।

माधो : की मोॅन ठीक होतै। भाशण सुनतें-सुनतें माथोॅ चकरावेॅ लागलोॅ। जत्तेॅ बात तोंय बोललौं गुरूजी, ई तेॅ रोज रेडियो, अखबार सें लैकेॅ नेता-नागरिक तांय आरो पत्र-पत्रिका सें लैकेॅ कवि, साहित्यकार सीनी आपनोॅ रचना में कहिये रहलोॅ छै, मतुर परिवर्तन होय रैल्होॅ छै कहाँ। बोलै वाला बोलै छै कुछ्छू, करै छै कुछ्छू। सुनैवाला यै कानोॅ सें सुनै छै वै कानोॅ सें बाहर करी दै छै।

शेखावत : तोंय कि चाहै छै कि चटपट क्रांति होय जाय। पलक मारथैं परिवर्तन। सौ दिनोॅ रोॅ कोढ़ एक्के दिनोॅ के दवाय सें खतम।

माधो : ; अचरज सेंद्ध हम्में चाहै छियै, याकि ज़रूरत ही यहेॅ छै। समय रोॅ माँग ही यहेॅ छै। हजारोॅ साल बीती गेलै। यै देशोॅ में कं्राति नै होलोॅ छै। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक कोनोॅ क्षेत्र में नै। आरो उलटे तोंय कहै छोॅ कि हमरोॅ माथोॅ खराब होय गेलोॅ छै! हम्में जल्दबाजी चाहै छियै! गिरीश ... रे गिरिया।

गिरीश : ; धड़फड़ाय केॅद्ध की...? की... की...?

माधो : ; पॉखरोॅ पकड़ी केद्ध आव। हिन्नें वाव। आय तोरा साँप देखैयौ।

गिरीश : (अचरज सें हिन्नेॅ-हुन्नेॅ देखै छै) साँप! कहाँ छै साँप हो? कन्नें छै साँप?

गिरीश : (अचरज सें हिन्नेॅ-हुन्नेॅ देखै छै) साँप! कहाँ छै साँप हो? कन्नें छै साँप? माध्माधो : ; एक दिश संकेत करी केॅद्ध साँप! साँप! ...साँप...

गिरीश : ; अचरज सें हिन्नेॅ-हुन्नेॅ देखै छै साँप! कहाँ छै साँप हो? कन्नें साँप?

माधो : ; एक दिश संकेत करी केॅद्ध साँप! साँप! ... साँप ।

शेखावत: अरे, ठहरें। ठहरें। कन्नें साँप छै रे। आन्हरोॅ कहाँ करोॅ। रहॅे साँप छेकै, समझी गेलैं। समझलैं की नै रे?

गिरीश : (मुड़ी हिलाय छै) हों...समझी तेॅ रहलोॅ छियै।

माधो : किसान मजूर के समस्या पंचसितारा होटल, एयरकन्डीसन्ड मकानोॅ में बैठी केॅ तय करै वाला, कारों में घूमै वाला सें लै करी केॅ भाशण दै वाला हर कोय साँपें छेकै। गुरूजी रहतें देशोॅ में कोय तरहोॅ के क्रांति नै भेलै। बु़िद्धमान होय केॅ हिनी सिनी देशोॅ के नवनिर्माण लेली वातावरण तैयार नै करेॅ पारलकै। आपन्है में डुबलोॅ रहलै। ज़रूरत समझी केॅ भी चाणक्य नै बनेॅ पारलै। यै लेली ई गुरूजियो साँप। ; माधो आरो गिरीशोॅ केॅ लागै छै कि गुरूजी के शक्ल साँपोॅ में बदललोॅ जाय रैल्होॅ छै। दोनों एक्के साथें डरी जाय छै। आरो 'साँप-पाँप' कही केॅ गुरूजी दिश ताकै छै। गुरूजी चश्मा उठाय केॅ अचरज सें देखै छै

शेखावत: (धोपतें हुवेॅ़) चूप। हरामी, उल्लू, गदहा, टमटम, घोड़ा, बैल कहाँ करोॅ। कहाँ छै साँप बे? कन्नें देखलैं साँप?

माधो-गिरीश: गुरूजी. साँप...! साँप! साँप

शेखावतः(छड़ी देखाय केॅ) आन्हरोॅ नतन। हम्में साँप छेकियै रे!

माधो : तोय गुरु होय केॅ देशोॅ कॅे रोशनी नै देखावेॅ पारलोॅ। रास्ता सें भटकी गेलोॅ देशोॅ केॅ रास्ता नै देखावेंॅ सकलोॅ, एक छेलै गुरु चानक्य जें सिकन्दर के आक्रमण सें चन्द्रगुप्त जैनोॅ शिश्य पैदा करी केॅ भारतवर्श के बचैनें छेलै। तोंय अŸो-अŸो गुरूजी की करै छोॅ।

शेखावत : की बोलै छै रे...चोट्टा।

माधो : सहिये तेॅ, तोरोॅ पढ़ैलोॅ सभ्भेॅ साँप। तहँु साँप, वोहोॅ साँप, सब्भे साँप। चारों तरफ साँपें साँप। जन्नें देखै छियै हुन्नै साँप छै। आदमी, आदमी कहाँ रहलै, साँप होय गेलोॅ छै। आदमी साँप, साँप आदमी। आदमी बराबर साँप, साँप बराबर आदमी। साँपों के काटला रोॅ इलाज छै, आदमी के डँसला रोॅ कोय इलाज नै। साँपोॅ के बीख ओकरोॅ काटला पर जबेॅ चढ़ै छै तेॅ पता दै छै मतुर आदमी के काटला पर ओकरोॅ बीख चढ़ै के पता तक नै चलै छै। साँपोॅ के जहर उतरै छै, आदमी के जहर धीरे-धीरे चढ़ै छै, कहियो नै उतरै छै। ओकरे सब के काटलोॅ छेकै ई देश।

गिरीश : ...मतलब कि... हम्में-तोंय... हमरा-तोरा नांखी लोग... ऐकरेॅ काटलोॅ ... लाइलाज होय गेलोॅ छै। तोरा बिना कोय गलती रोॅ मारी केॅ माथोॅ खराब करी दै वाला साँप। औकरौ सें बढ़लोॅ साँप ऊ, जेकरोॅ चलैला पर चलै छै ई सिनी साँप।

माधो: होॅ..., सच्चे समझलैं। गिरीश, अतनौ पर जें नै समझेॅ,

वहू साँप। ढोड़वा साँप, बोड़िया साँप।
सगरो साँप, साँपे-साँप,
नेतृत्व के माथा पर चढ़ी केॅ बैठलोॅ छै साँप
व्यवस्था के रग-रग में ढुकी केॅ, ठनकै छै साँप
नौकरशाही के माथा पर चढ़लोॅ फनकै छै साँप।
पंचसल्ला ढाकर ई बैठी केॅ पाँच साल,
दूध लावा खाय छै, जहर बढ़ाय छै।
करै छै विस्तार आपनोॅ संख्या के
बाँटै जहर छै, हो भाय कत्ते निडर छै
जों बोलोॅ कुछ्छू तेॅ काटै छै साँप
की कहियौं हो भाय सिनी
निरमानोॅ के नोकोॅ पर, नेठुआय केॅ बैठलोॅ छै साँप
जात-धरम-संप्रदाय के रस्ता सें आवै छै साँप
अखंड देश केॅ बाँटै छै, ठी-ठी करी केॅ हाँसै छै
बाँचै गीता रोॅ उपदेश, लूटी खैलकै सौंसे देश
देश सेवा के बनाय बहाना, बेतन भोगी होलै साँप
साँपे-साँप, सगरो साँप, जन्नें-देखोॅ हुन्नैं साँप।

'साँप-साँप' कहि के दूनो तीरपेखन देतें हुवें कविता पढ़ै छै। गुरूजी केॅ चारो तरफोॅ सें घेरी-घेरी केॅ आरो गुरूजी अचरज सें चश्मा उठाय केॅ देखै छै। माधॉे आरो गिरीशें मिली केॅ वहेॅ रं चौतरफा घेरी-घेरी केॅ गीत गाय छै

-गीत-

घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग सावधान रहियोॅ
सावधान रहियोॅ हो, सावधान रहियोॅ
घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग
ऐलै वसंत ऋतु, फूल खिलै बगिया
बांही जोरिये जोरी, हाँसै खेलै सखिया
चोरवा के मची गेलै फाग
सावधान रहियोॅ।
घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग।
देश आजाद भेलै, गजबे होलै
शहीदोॅ के सपना, सपन्है रहलै
गरीब, गरीबे रहलै, मोटका मोटैलै
साहू के जगलोॅ छै भाग,
सावधान रहियोॅ।
घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग, सावधान रहियोॅ।