सांस्कृतिक शून्य के दो छोर दाऊद और श्रीसंत / जयप्रकाश चौकसे

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सांस्कृतिक शून्य के दो छोर दाऊद और श्रीसंत
प्रकाशन तिथि : 23 मई 2013


'वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई' में हाजी मस्तान के उदय और पतन के साथ युवा दाऊद के उभरने की कहानी थी। अब इस फिल्म के भाग-2 में दाऊद के शिखर पर जाने की कथा है। इस निर्माणाधीन फिल्म में एक दृश्य इस तरह का है कि शारजाह में भारत-पाक का मैच है। स्टेडियम ठसाठस भरा है, सारे खिलाड़ी अपना स्थान ले चुके हैं और अंपायर की ओर देख रहे हैं कि वह प्रारंभ कराए। सारे खिलाड़ी उत्सुकता से अंपायर की ओर देख रहे हैं और वह स्टेडियम में बने विशेष कक्ष की ओर देख रहा है। दर्शक और खिलाड़ी बेचैन हैं। कुछ समय बाद दाऊद अपने कक्ष में आता है और अंपायर को हाथ उठाकर प्रारंभ करने का संकेत देता है। वह बादशाह की तरह रुतबा रखता है। उसके साथ एक भारतीय अभिनेत्री है, जिसकी पहली फिल्म सुपरहिट हुई है। पहली गेंद पर भारतीय बैट्समैन एक छक्का मारता है। भारतीय अभिनेत्री ताली बजाती है। दाऊद कहता है कि दूसरी गेंद पर भी ताली बजा लेना, क्योंकि तीसरी गेंद पर यह आऊट हो जाएगा और वैसा ही होता है। शारजाह खेल की पटकथा दाऊद ही लिखते थे।

भारतीय क्रिकेट में पैसे खाकर खेलने की बीमारी का एकमात्र कारण दाऊद नहीं है। अवैध धंधे दाऊद का प्रिय खेल रहा है। इस बीमारी के अनेक कारण हैं। देश के अवाम में क्रिकेट के लिए जुनून के कारण यह भव्य व्यवसाय बन गया है। इसको संचालित करने वाली संस्था एक चैरिटी ट्रस्ट की तरह रजिस्टर्ड होते हुए भी दान का कोई काम नहीं करती वरन केवल क्रिकेट की कामधेनु को दोहने के एकाधिकार का लाभ उठाती है और बड़ा व्यवसाय होते ही इससे नेता जुड़ गए, उद्योगपति जुड़ गए। दुनिया के सभी देशों में खेलों पर शर्त लगाना जायज है। भारत में घोड़ों की दौड़ और रमी के खेल में करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं और यह सब जायज है। अगर क्रिकेट की बैटिंग के लिए सरकार लाइसेंस जारी करके इसे जायज कर दे तो भारत का पैसा भारत में रहेगा और दाऊद का प्रभाव कम होकर एक दिन समाप्त हो जाएगा। इस बोर्ड को भंग किया जाना चाहिए और सारे खर्च लाभ-हानि का ऑडिट कराना चाहिए। पुराने नामी खिलाडिय़ों के हाथ सत्ता सौंपनी चाहिए।

अब हम एक और महत्वपूर्ण कारण की बात करेंगे। आर्थिक उदारवाद के बाद भारतीय समाज की संरचना कुछ ऐसी हो गई है कि किसी भी मध्यम वर्ग के गरीब खिलाड़ी के बहकने और भटक जाने के लिए बाजार और विज्ञापन की ताकतों ने अनेक तिलस्मी आकर्षण रचे हैं, जिनमें चुंबकीय ताकत है। एक गरीब प्रतिभाशाली युवा रातोंरात सितारा हो जाता है। ढाई कमरे के टूटे-फूटे-से सुविधाहीन घर में रहने वाला युवा टीम के साथ महीनों दौरे पर रहता है, जहां की पांच सितारा जीवन शैली उसे चकाचौंध कर देती है और उस पर कहर यह कि अनगिनत प्रशंसक एक झलक के लिए तरसते हैं। उसकी कमाई खूब होती है और वह फैशनेबल हो जाता है। तीस हजार के गॉगल्स पहनता है, दस हजार की जींस पहनता है और दावतों के निमंत्रण इतने मिलते हैं कि सब जगह जाना संभव नहीं। ढाई कमरे में रहने वाला व्यक्ति स्वप्न संसार में आ जाता है, जहां ऐश्वर्य है, लड़कियां और सब प्रकार के नशे उपलब्ध हैं, परंतु सबसे घातक नशा प्रसिद्धि का है।

अनेक ऐसे खिलाड़ी हुए हैं जिन्होंने अपना क्रिकेट किट टेस्ट में चुने जाने के बाद खरीदा। वह सारी उम्र मांगे हुए बल्ले से खेलता रहा है। अजहरुद्दीन भी गरीब परिवार से आया था और पहले तीन टेस्ट में लगातार शतक लगाकर सितारा बन गया। उसने लंबी पारी खेली है, परंतु उस पर लगे आरोप सिद्ध नहीं हो पाए। सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली एक साथ खेलकर जवान हुए और दोनों में समान प्रतिभा थी, परंतु कांबली की प्रतिभा को पांच सितारा संस्कृति ने डस लिया। सचिन मध्यम वर्ग के महाराष्ट्रीय परिवार का युवा है और अपने संस्कारों के कारण वह कभी बहका नहीं, कभी भटका नहीं।

यह बात केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं है। फिल्म के अनेक पत्रकार सितारों की संगत में पांच सितारा सुविधाओं के आदी होकर अपना काम भूल गए। वे किसी सितारे का चमचा बनकर रह गए। फिल्म की बात भी छोड़ दीजिए, तथाकथित शिक्षा से नौकरियां मिलने के मायाजाल में छोटे कस्बों के युवा कॅरियर बनाने बड़े शहर में आते हैं और नीली रोशनी की बांहों में बसे बाजार के आकर्षण उन्हें अपने लक्ष्य से दूर कर देते हैं। आजकल अनेक मध्यम शहरों में बंगलों को गल्र्स हॉस्टल में बदल दिया गया है और कस्बों की लड़कियों को बाजार संस्कृति गुमराह कर देती है। हमने विगत दशकों में वीआईपी संस्कृति रची है और प्रतिभाशाली युवा के सफल होते ही उसे पंख लग जाते हैं और वह अपनी जमीन छोड़कर उडऩे लगता है। घोर प्रतिस्पद्र्धा के बीड़ में कोमल पंख कमजोर हो जाते हैं और वह जमीन पर गिरकर घायल हो जाता है। छद्म आधुनिकता ने अनेक लोगों को लील लिया है। सच्ची आधुनिकता पचास हजार का स्मार्ट फोन नहीं है, बीस हजार की जींस नहीं है, सच्ची आधुनिकता तर्क है, विज्ञान है, सतहों के पार देखने की दृष्टि है। श्रीसंत को मालूम ही नहीं कि वह किस षड्यंत्र का शिकार हुआ है। अनेक नामी खिलाड़ी अपने शक्तिशाली रिश्तेदारों के दम पर श्रीसंत जैसे होकर भी उसकी त्रासदी से बचे हुए हैं। क्रिकेट के नशे में गाफिल अवाम भी श्रीसंत की त्रासदी के लिए जिम्मेदार है।