साज और आवाज : क्ले वायलिन से कम्प्यूटर / जयप्रकाश चौकसे

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साज और आवाज : क्ले वायलिन से कम्प्यूटर
प्रकाशन तिथि : 21 जून 2020


सर्पिणी की तरह टेक्नोलॉजी अपने ही अंडों को खा जाती है। कतार से इधर-उधर गिरे हुए कुछ अंडे बच जाते हैं। एक छोटे से कमरे में कम्प्यूटर जनित ध्वनियों से गीत रचा जा सकता है। एक कमरे में कम्प्यूटरों के तार फैले होते हैं और कंपोजर इलेक्ट्रिशियन की तरह काम करते हुए दिखता है। ए.आर.रहमान के चेन्नई स्थित संगीत स्टूडियो में आवश्यकता महसूस होने पर रहमान साहब दक्षिण अफ्रीका में उनके आग्रह पर बजाए जा रहे ड्रम्स की ध्वनि रिकॉर्ड कर सकते हैं। विश्वभर में बजाई गई ध्वनियां एक कम्प्यूटर में रिकॉर्ड की जा सकती हैं और इस प्रयास का विहंगम दृश्य कैमरे में कैद कर सकें तो आभास होगा कि पूरा विश्व ही एक संगीत स्टूडियो बन गया है। ध्वनि ही विश्व है, ब्रह्मा है। रहमान साहब के सहयोगी का कथन है कि लता मंगेशकर का ऐसा गीत कम्प्यूटर से रचा जा सकता है जो उन्होंने कभी गाया ही नहीं। सत्यम शिवम सुंदरम से आलाप लेकर, पुराने मधुर गीत से एक पंक्ति लेकर, हृदयनाथ मंगेशकर की धुन पर नया गीत बन सकता है। आज टेक्नोलॉजी इतनी विकसित है कि नेता की कर्कशता को फिल्टर द्वारा माधुर्य संसार से दूर रखा जा सकता है।

फिल्म ‘उत्सव’ के लिए बसंत देव के संगीत में लता व आशा का एक गीत दोनों बहनों ने अलग-अलग दिन आकर रिकॉर्ड कराया। संगीतकार प्यारेलाल ने इस खूबी से मिक्सिंग की कि ध्वनि में बहनापा गूंजता है। गीत है- ‘बेला क्यूं महका री आधी रात को, रात शुरू होती है आधी रात को..’। सचिन देव बर्मन ने भुला दिए गए किशोर कुमार की आवाज में फिल्म ‘आराधना’ के लिए ऐसा गीत-संगीत रचा कि रातों रात राजेश खन्ना सुपर सितारे बन गए। पंचम ने ‘शोले’ के पार्श्व संगीत में चौके में उपयोग की जाने वाली फूंकनी से गजब प्रभाव पैदा किया। संगीत के क्षेत्र में भाईचारा ऐसा रहा है कि लक्ष्मी-प्यारे ने ‘दोस्ती’ के गीत के लिए पंचम से माउथ ऑर्गन बजवाया और ये समकालीन प्रतिद्वंद्वी हमेशा मित्र बने रहे तथा एक-दूसरे से सलाह लेते रहे। इस बीच जिरह भी खूब होती थी। जब ‘मुगल-ए-आजम’ को रंगीन किया गया तब संगीतकार नौशाद का पूरा संगीत स्टीरियोफोनिक में पुन: ध्वनि मुद्रित किया गया। इस कार्य के लिए वादक दक्षिण भारत से निमंत्रित किए गए। कम्प्यूटर जनित ध्वनि आने के बाद वादक बेरोजगार हो गए। इन वादकों की व्यथा-कथा का चित्रण उपन्यासकार मनोज रूपडा ने अपनी रचना ‘साज और आवाज’ में बड़े मार्मिक ढंग से किया है।

शशधर मुखर्जी की फिल्म ‘नागिन’ के संगीतकार हेमंत मुखर्जी थे और वादक कल्याणजी भाई ने विदेश से आयातित क्ले वायलिन पर सपेरे की बीन की ध्वनि बजाकर तहलका मचा दिया। इस तरह क्ले वायलिन से प्ररंभ हुई यात्रा कम्प्यूटर तक जा पहुंची और फिल्म संगीत में परिवर्तन का ज्वारभाटा आ गया। वायलिन वादन प्यारेलाल का काम था, इसलिए वे स्टूल पर खड़े रहकर वायलिन वादन करते थे। कालांतर में अपनी सृजन शक्ति से उनका कद बढ़ता ही गया। कुछ वर्ष पश्चात हरमेश मल्होत्रा की ऋषि कपूर और श्रीदेवी अभिनीत फिल्म ‘नगीना’ में ग्यारह सपेरों के सामूहिक बीन वादन को भी रिकॉर्डिंग हिकमत से विश्वसनीय अंजाम दिया गया। टेक्नोलॉजी बला की खूबसूरत मेहबूबा की तरह है, परंतु उससे विवाह कर लो तो वह निर्मम शासक की तरह हो जाती है। इस क्षेत्र में सतत इश्क करते हुए अग्नि के गिर्द सात फेर लेने से बचना होता है। संगीत, ध्वनि मुद्रण क्षेत्र में एक पद अरेंजर का होता है। धुन को आत्मसात करके अरेंजर वादकों की संख्या और बैठक इत्यादि तय करता है। चार चैनल की व्यवस्था से शुरू यात्रा छत्तीस चैनल तक पहुंच गई है। अपनी विदेश यात्रा में राहुुल देव बर्मन ने आधुनिक रिकॉर्डिंग उपकरण देखे तो वे बौरा गए। उन्हें शिद्दत से अहसास हुआ कि वे कितने आउट डेटेड उपकरणों पर कार्य करते रहे हैं। विदेश में उन्होंने ‘पेन्योरा’ रिकॉर्ड किया जो आधुनिकता के लिए उनकी आदरांजलि की तरह रहा।