साहित्य और सिनेमा में गंगा महिमा / जयप्रकाश चौकसे

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साहित्य और सिनेमा में गंगा महिमा
प्रकाशन तिथि : 01 जून 2020


गंगोत्री से सागर तक गंगा दो हजार पांच सौ पच्चीस किलोमीटर की यात्रा करती है और इस सफर में अनेक नदियां उसमें समा जाती हैं। यमुना और सरस्वती से जहां गंगा संगम बनाता है, उस स्थान से कुछ किलोमीटर दूरी पर दक्षिण भारत से निकली सोन नदी गंगा से मिलती है। जो लोग दीवार पर टंगे नक्शे को धरती समझ लेते हैं, उन्हें आश्चर्य होता है कि सोन नदी चढ़ाई कैसे कर सकती है। विश्व में गंगा से अधिक यात्रा करने वाली तेरह नदियां हैं, परंतु गंगा के साथ जो कथाएं, गीत-संगीत और किंवदंतियां जुड़ी हैं, वे आपको कहीं और नहीं मिल सकती। कथा वाचकों और श्रोताओं के अनंत देश में यह होना स्वाभाविक लगता है। किस्सागोई हमारी आदत है। साधारण घटना को भी हम रहस्यमय बनाकर सुनाते हैं।

गंगा हमारे सामूहिक अवचेतन का अविभाज्य हिस्सा है। कोई आश्चर्य नहीं कि व्यक्ति गंगा तट पर ही प्राण तजना चाहता है और अगर यह नहीं हो सके तो वह चाहता है कि अस्थियों का विसर्जन गंगा में हो। हमारी गंगा से निकटता की अभिलाषा ने ही इस कहावत को जन्म दिया कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। सृजनशील लोगों को गंगा हमेशा प्रेरणा देती है। कुछ विदेशी साहित्यकार भी गंगा की महिमा का गुणगान करते हैं। अंग्रेजी भाषा बोलने वाले ‘गेन्जीस’ लिखते रहे, परंतु संस्कृत के विद्वान टी.एस.इलियट ने हमेशा ‘गंगा’ ही लिखा। पंडित जवाहरलाल नेहरू की वसीयत में उन्होंने एक कवि की तरह गंगा का वर्णन किया है। 15 अगस्त 1985 को राजीव गांधी ने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की बात कही और इसके लिए एक विभाग की रचना भी की गई, परंतु विभाग में हेराफेरी हुई और यथार्थ के धरातल पर कोई काम नहीं हुआ। गंगा आदर्श, प्रशासन शैली का शिकार हुआ। राज कपूर की तीन फिल्में गंगा से प्रेरित हैं। ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘संगम’ और ‘राम तेरी गंगा मैली’। राज कपूर की अस्थियों के विसर्जन के लिए उनके पुत्र हरिद्वार गए तो अवाम ने उनसे कहा कि राज कपूर द्वारा आकल्पित ‘हिना’ अवश्य बनाएं। इस तरह चार फिल्में गंगा से प्रेरित हैं। दिलीप कुमार की बनाई एकमात्र फिल्म का नाम ‘गंगा-जमना’ है। सुल्तान अहमद ने ‘गंगा की सौगंध’ बनाई तो भोजपुरी में बनी फिल्म का नाम ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ है। लीक से हटकर बनी ‘मसान’ भी बनारस के श्मशान से जुड़ी फिल्म है। कोनरेड रुक्स की फिल्म ‘सिद्धार्थ’ में भी नाव चलाने वाला केवट दर्शनशास्त्र की बातें करता है। एक लोकप्रिय गीत है- ‘गंगा आए कहां से, गंगा जाए कहां रे..’। हेमंत कुमार की रचना ‘शिवजी बिहाने चले पालकी सजाए के….।’ हर शिवरात्रि पर गली-गली, गांव-गांव गूंजता है। अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गीत ‘छोरा गंगा किनारे वाला’ सलीम खान की पहल पर फिल्म ‘डॉन’ में लिया गया था। भागदौड़ के दृश्यों से जन्मी एकरसता तोड़ने के लिए गीत रचा गया था जो फिल्म से अधिक लोकप्रिय हुआ।

‘पाखी’ में प्रकाशित खाकसार की कथा ‘कुरुक्षेत्र की कराहें’ का कथा सार इस तरह है कि कुरुक्षेत्र युद्ध समाप्त होने के बाद महाकवि वेद व्यास देखते हैं कि पूरी व्यवस्था ही भंग हो चुकी है। टूटी हुई सड़कों पर कमजोर बच्चे चलने के प्रयास में गिर जाते हैं। युवा विधवाओं की चीखें गूंजती रहती हैं। कोष खाली है, व्यवस्था अपंग हो गई है। उनकी भेंट अश्वत्थामा से होती है जो बार-बार आत्महत्या का प्रयास करता है, परंतु द्रौपदी के श्राप के कारण मर नहीं सकता। यह वेद व्यास का जीनियस है कि अमर होना भी एक प्रकार का श्राप ही है।

वेद व्यास गंगा तट पर मां गंगा से निवेदन करते हैं कि गंगा सभी स्वर्गवासियों को एक बार फिर गंगा तट पर भेजे, ताकि यह विचार कर सकें कि क्या युद्ध रोका जा सकता था और युद्ध लड़ने का मूल कारण क्या है? सभी गंगा तट पर प्रकट होते हैं। कुंती, गांधारी को दोष देती है कि उसके द्वारा अंधत्व ओढ़ने के कारण बचपन में ही अभिव्यक्त शत्रुता के भाव को समय रहते समाप्त नहीं किया गया। गांधारी, कुंती पर आरोप लगाती है कि उसने कर्ण के जन्म का रहस्य छिपाया। बहरहाल आरोप-प्रत्यारोप का वाक युद्ध यथार्थ के युद्ध में बदल जाता है। गंगा तट पर दूसरा दौर प्रारंभ होता है तो वेद व्यास सबको वापस बुलाने की प्रार्थना करते हैं। सबके लौटने के बाद श्रीगणेश पधारते हैं। वे कहते हैं कि जब मनुष्य तर्क को तिलांजलि दे देता है और उकसाई भावना में बहने लगता है तो युद्ध होते हैं। सत्ता से चिपके रहने के लिए युद्ध की धमकियां दी जाती हैं। विवेक और भावना का संतुलन बिगड़ जाता है। गंगा दशहरे के पावन उत्सव पर उस शांति के लिए प्रार्थना करें जो समझदारी के विकास के बाद प्राप्त होती है।