साहित्य और सिनेमा : भूमिकाओं का उलटफेर / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
साहित्य और सिनेमा : भूमिकाओं का उलटफेरड़े
प्रकाशन तिथि :17 मई 2016


साहित्य से प्रेरित फिल्में बनती रही हैं, किंतु कभी-कभी फिल्म से प्रेरित किताबें भी लिखी गई हैं और मजेदार बात यह है कि फिल्म प्रेरित किताब पर पुन: फिल्में भी बनी हैं। मसलन कमल हासन और रति अग्निहोत्री अभिनीत 'एक दूजे के लिए' से बहुत साम्य है चेतन भगत लिखित 'टू स्टेट्स' जिस पर भी फिल्म बनी है गोयाकि 'तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा!' कथा फिल्म के प्रारंभिक दौर में ही मराठी भाषा में लिखी किताबों से प्रेरित फिल्में बनी हैं। बंगाली भाषा में शरतचंद्र की रचनाअों पर सबसे अधिक फिल्में बनी हैं। यहां तक कि शरतचंद्र की देवदास विभिन्न भाषाओं में एक दर्जन बार बन चुकी है और अभी तक किसी भी संस्करण में मूल रचना में वर्णित देवदास की उम्र सतरह, पारो की उम्र पंद्रह और चंद्रमुखी बाइस बरस की प्रस्तुत नहीं की गई है। प्राय: अधेड़ अवस्था के सितारे ने देवदास अभिनीत की है। फिर चाहे वे केएल सहगल हों या दिलीप कुमार हों। जैफरली नामक फिल्मकार की रोमियो-जूलियट में कम उम्र के कलाकार थे और इसके सभी संस्करणों में यही फिल्म सर्वश्रेष्ठ रही। दरअसल, जब कमसिन या युवा का हृदय प्रेम के कारण विदीर्ण होता है तब दर्द की लहर तीव्र होती है, वह तूफान ही लगती है। अधेड़ उम्र के प्रेमी का विरह हमें उतना दु:खी नहीं करता, जितना युवा या कमसिन उम्र के कोरे कागज से दिल का फट जाना। राज कपूर की 'जोकर' के पहले भाग में कमसिन उम्र के नायक को अपने से बड़ी उम्र की शिक्षका से प्रेम हो जाता है और उसके दिल टूटने का गहरा प्रभाव होता है। काश सत्यजीत राय की सलाह मानकर राज कपूर जोकर के इस भाग को स्वतंत्र फिल्म की तरह प्रदर्शित करते तो वे उनके जीवन की श्रेष्ठ फिल्म होती। अपनी महत्वाकांक्षा के घोड़े पर सवार राज कपूर ने भाग दो और तीन भी बनाए। कमलेश्वर ने धर्मयुग में प्रकाशित अपनी समालोचना में लिखा कि जोकर भाग एक में राज कपूर अपने समकालीन सभी फिल्मकारों से मीलों आगे भाग रहे हैं और भाग दो में वे अपनी दौड़ से थके नज़र आते हैं और भाग तीन में स्वयं से दूर जाते से लगते हैं और कमोबेश सो ही जाते हैं। फिल्म समीक्षा के इतिहास मेें कमलेश्वर का 'जोकर' पर लिखा लेख मील का पत्थर है। विज्ञापन संसार में नाम कमाने वाली अनुजा चौहान ने क्रिकेट और विज्ञापन की पृष्ठभूमि पर 'ज़ोया फैक्टर' नामक उपन्यास लिखा है, जिसके फिल्म अधिकार पूजा एवं आरती शेट्‌टी के पास हैं। उनकी पटकथा तैयार है परंतु कोई सितारा नहीं मिल पा रहा है। फिल्म का बजट भव्य है और बिना शिखर सितारे के यह आर्थिक जोखिम है। अनेक अभिनव विषय इसी तरह सितारा नहीं मिल पाने के कारण फाइलों में बंद पड़े हैं। सितारे अपने नज़दीकी लोगों की फिल्में ही करते हैं। इस वृत्त ने कई अवसरों को लील लिया है। इसका एक पक्ष यह भी है कि साहसी गवारीकर ने ऋतिक अभिनीत 'मोहनजोदड़ों' बनाई है परंतु उन तक यह बात नहीं पहुंची कि इसी विषय पर रांगेय राघव का उपन्यास 'मुर्दों का टीला' है। इस उपन्यास को पढ़ने से उन्हें लाभ होता। खुशवंत सिंह की 'ट्रेन टू पाकिस्तान' पर फिल्म बनी है परंतु विभाजन पर लिखी सआदत हुसैन मंटो की कहानियों पर फिल्में नहीं बनी। मंटो के जीवन काल में उन पर साहित्य में अश्लीलता के आरोप के आधा दर्जन मुकदमे कायम किए गए थे। आज तक पूरे विश्व में किसी भी किताब पर अश्लीलता के आरोप का मुकदमा शिकायत करने वाला नहीं जीता है। सभी में लेखकों की जीत हुई है और हर मुकदमे में जीत का आधार यह रहा है कि किसी भी रचना के अंश पर आरोप का कोई अर्थ नहीं है। रचना का समग्र प्रभाव ही महत्वपूर्ण है।

हमारे यहां राजेंद्र यादव के 'सारा आकाश' पर फिल्म बनी है, रेणु की 'तीसरी कसम' और मुंशी प्रेमचंद के 'गोदान' तथा 'दो बैलों की कथा' पर 'हीरामोती' नामक महान फिल्म बनी है परंतु जेटली नामक फिल्मकार की मृत्यु हो गई। इसी तरह '27 डाउन' के लेखक की भी मृत्यु हो गई है। रवींद्रनाथ टैगोर की कुछ रचनाओं पर फिल्में बनी हैं, जिनमें तपन सिन्हा की 'क्षुधित पाषाण' लाजवाब है। सत्यजीत राय की टैगोर से प्रेरित 'चारुलता' राय महोदय की शरेष्ठ फिल्म है। साहिर लुधियानवी और अमृता प्रीतम की प्रेम कथा पर फिल्म की घोषणा हुई है। रणबीर कपूर को ही साहिर की भूमिका के लिए लिया जाना चाहिए। दीपिका पादुकोण अमृता प्रीतम की भूमिका के लिए उम्दा सिद्ध होती। लगभग हजार पृष्ठ के उपन्यास 'मोबी डिक' को मैंने इसी फिल्म की सहायता से पढ़ाया था। उन्हीं दिनों मुझ पर आरोप लगा था कि यह शिक्षक साहित्य से अधिक फिल्म पढ़ाता है और अब मेरे कॉलम पर आरोप है कि मैं फिल्म के माध्यम से साहित्य क्षेत्र में जाने का दुस्साहस करता हूं। हकीकत तो यह है कि मैं स्वयं जीवन की पाठशाला का छात्र हूं।