साहिर को कैसे भूल सकते है / जयप्रकाश चौकसे

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साहिर को कैसे भूल सकते है
प्रकाशन तिथि : 10 मार्च 2011


'औरत ने जन्म दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाजार दिया', इस गीत को लिखने वाले साहिर लुधियानवी का जन्म आठ मार्च को 90 वर्ष पूर्व हुआ था। इसी आठ मार्च को महिला दिवस के सौ साल पूरे हुए हैं। कोई 67 वर्ष पूर्व साहिर लुधियानवी का पहला संग्रह 'तल्खियां' प्रकाशित हुआ था। साहिर को मुंबई फिल्म उद्योग में कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि वे अपने साथ अखिल भारतीय लोकप्रियता लेकर आए थे। उस जमाने में युवा बालाएं उनकी नज्मों को अपने तकिए के नीचे रखकर सोती थीं, कि सपने में आकर कोई उनके लिए गाए-'शायद तू मेरे लिए ही बनी है...'।

साहिर की पहली फिल्म 'आजादी की राह पर' थी, हालांकि उन्हें पहचान 'नौजवान' से मिली। सिनेमा के इतिहास में यह एकमात्र फिल्म है, जिसकी सफलता का बहुत-सा श्रेय गीतकार को जाता है। उस दौर में शैलेंद्र, शकील और मजरूह जैसे प्रतिभाशाली लोग भी थे परंतु एक फिल्म चला ले जाने का श्रेय किसी को कभी नहीं मिला। कुछ हद तक मुजफ्फर अली की 'उमराव जान' के शहरयार रचित गीतों में यह बात थी। यह बात अलग है कि आनंद बक्षी की मृत्यु के बाद सुभाष घई एक भी सफल फिल्म नहीं बना पाए।

आज गीत-संगीत के क्षेत्र में कभी ऐसी रचना नहीं आती कि आज आदमी का जीवन गीत बन जाए। दरअसल कविता का लोप जीवन के सभी क्षेत्रों में इसी कालखंड में हुआ है। नेहरू के गद्य को पढ़कर लगता था कि आप कविता पढ़ रहे हैं। आज के नेता तो गद्य भी ठीक से नहीं बोल पाते। कवि होने के लिए लगता है, आज लोगों को सिर्फ धन चाहिए। इतना ही नहीं जब एक बढ़ई उम्दा टेबल बनाता है तो वह कविता ही कर रहा है। जब सुबह बहुत ही लगन से मन लगाकर मजदूर महिला सड़क बुहारती है, तब वह कविता ही कर रही है। चौके में करीने से कड़छुल चलाने वाली गृहिणी कविता ही कर रही है। रोते हुए नाक सुड़पता बच्चा कविता ही कर रहा है।

बहरहाल, साहिर की मां ने उन्हें बहुत कष्ट झेलकर पाला था। वह अपने सामंतवादी निर्मम पति को छोड़कर आई थीं। कुछ लोगों का ख्याल है कि उन्हें बहुत खौफ लगता था कि कोई औरत साहिर के दिल पर इस तरह कब्जा कर लेगी कि मां के लिए जगह ही नहीं बचेगी और शायद उन्होंने ही कभी साहिर के प्रेम को शादी तक नहीं जाने दिया। प्रेम की अधिकता एक किस्म की बीमारी में बदल जाती है और अधिकतर का भाव जीवन में बहुत कष्ट देता है। यह भी कहा जाता है कि साहिर और उनकी मां के बीच इतना गहरा लगाव था कि दोनों की मृत्यु थोड़े से अंतराल में हुई है। साहिर ने खय्याम के साथ भी कमाल का काम किया है। फिल्म 'फिर सुबह होगी' के प्रदर्शन के पूर्व उसके बड़े विज्ञापन में केवल साहिर का गीत ही प्रकाशित किया गया था। राज कपूर और माला सिन्हा जैसे सितारों वाली फिल्म में निर्देशक रमेश सहगल ने सारे प्रचार का आधार गीतों को ही बनाया था।

साहिर से बेइंतहा प्यार करने वाली अमृता प्रीतम ने लिखा था कि मेरे पति मेरे जीवन में आकाश की तरह हैं और साहिर जमीन की तरह। साहिर ने लिखा था, 'मैं पल दो पल का शायर हूं, मसरूफ जमाना मेरे लिए क्यों अपना वक्त बर्बाद करे...'। ...साहिर साहब आप पल दो पल के नहीं, हमेशा के शायर थे और मसरूफ जमाना आपका स्मरण नहीं करता, यह भी सही नहीं है।