सितारों का फुटबॉल लीग में प्रवेश / जयप्रकाश चौकसे

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सितारों का फुटबॉल लीग में प्रवेश /
प्रकाशन तिथि : 17 अप्रैल 2014


क्रिकेट तमाशे के प्रारंभ के पहले खबर आई कि सलमान खान, रनवीर कपूर, जॉन अब्राहम और सौरभ गांगुली जैसे सितारों ने फुटबॉल लीग की टीमों को खरीदा है और इसी तरह का प्रयास हॉकी के लिए भी किया जा सकता है, परंतु भारत में हॉकी कंट्रोल के अनेक संगठन हैं और उनका एकीकरण ही हॉकी लीग प्रारंभ करा सकता है। इंडियन क्रिकेट लीग नामक तमाशे ने तो क्रिकेट को हानि पहुंचाई है और क्रिकेट तकनीक का मखौल बना दिया है परंतु फुटबॉल लीग फुटबॉल को हानि नहीं पहुंचा सकता क्योंकि इसके नियम अलग हैं और यह खेल दम-खम का है। इसमें क्रिकेट की तरह अनिश्चितता नहीं है जिसके बहाने खिलाड़ी धन लेकर बुरा खेलता है। बहरहाल सितारा मालिकों के कारण फुटबॉल को लोकप्रियता मिलेगी और दर्शक संख्या में वृद्धि होगी जिस कारण आय अधिक होगी और खेल का विकास होगा। ज्ञातव्य है कि एक जमाने में वेस्टइंडीज की क्रिकेट टीम दुनिया की सबसे मजबूत टीम थी परंतु कालांतर में वहां के युवा बेसबॉल और बास्केटबॉल खेलने अमेरिका जाने लगे जहां उन्हें अधिक धन मिलता था। इस कारण क्रिकेट की लोकप्रियता वेस्टइंडीज द्वीप समूह में घटी और आज टीम पिट रही है। खेलकूद हो या भाषाएं हों, इनके विकास का आधार प्राय: इनकी नौकरियां दिलाने की क्षमता पर निर्भर करता है। अधिकांश क्षेत्रों में विकास का आधार धन ही है।

यह नियम अन्य क्षेत्रों में भयावह परिणाम भी देता है, मसलन भारत में बिजनेस मैनेजमेंट, कम्प्यूटर विज्ञान तथा कॉरपोरेट संस्कृति के प्रादुर्भाव के बाद युवा वर्ग फौज की नौकरी नहीं करना चाहता जहां अपेक्षाकृत कम धन मिलता है। इस तरह देश की रक्षा में सर्वश्रेष्ठ मस्तिष्क वाले लोग शामिल नहीं हो रहे हैं। इसी तरह पुलिस की नौकरियों के प्रति भी उदासीनता है। इतना ही नहीं आईएएस, आईपीएस और आईएफएस जैसे सम्मानीय क्षेत्रों में भी कॉरपोरेट से कम वेतन के कारण श्रेष्ठ लोग उस ओर नहीं जा रहे हैं। एक जिला कलेक्टर से कहीं अधिक वेतन कॉरपोरेट क्षेत्र में दूसरे और तीसरे दर्जे के लोगों को मिलता है। यह कितने दुख की बात है कि पद के सम्मान से अधिक महत्वपूर्ण धन हो गया है। राष्ट्र की रक्षा का कार्य भी अपेक्षाकृत कम वेतन के कारण हाशिये में डाल दिया गया है। आज के युवा के लिए केवल धन महत्वपूर्ण है और कमाने से अधिक खर्च करने के क्षेत्र में वह निपुण है। जीवन शैली में बाजार इस तरह हावी है कि खर्च करने को कला का दर्जा दे दिया गया है। एक विज्ञापन फिल्म में एक युवा सगाई की अंगूठी के रूप में धागे से बनी अंगूठी दे रहा है और उसका मित्र कहता है कि इसने स्मार्ट फोन खरीदने में सगाई की अंगूठी की रकम खर्च कर दी। जिस युवा वर्ग को देश का भाग्यविधाता माना जाता है, जरा उसकी रुचियों का तो अध्ययन करें, उस जीवन शैली में आपको सामंतवाद का टेक्नोलॉजिकल स्वरूप देखने को मिल सकता है। बाजार के मोहरों के हाथ कुंजी है फैशन की, राजनीति की और अन्य क्षेत्रों की।

इस वर्ष फुटबॉल का विश्वकप 12 जून से ब्राजील में प्रारंभ होने जा रहा है जिस कारण उस देश की इकोनॉमी में बढ़त होगी गोयाकि आज खेलकूद एक बड़ा व्यवसाय है और बाजार तथा विज्ञापन की शक्तियां इस व्यवसाय में सहायक हैं। फुटबॉल का लीग स्वरूप युवा खिलाडिय़ों को आकर्षित करेगा। सारांश यह कि हॉकी और कबड्डी के विकास के लिए उसके भी लीग मैचेस होने चाहिए और उसके व्यवसाय में बदलने के लिए बाजार और विज्ञापन की ताकतों को जुडऩा आवश्यक है। अमेरिका में युद्ध बाजार का विभाग अत्यंत सशक्त रहा है और बराक ओबामा ने इन शक्तियों से भिड़कर ही अफगानिस्तान से अपनी सेना हटाने की पहल की है। जॉन एफ कैनेडी ने वियतनाम के विषय में मानवीय दृष्टिकोण से सोचना शुरू किया तो उनकी हत्या कर दी गई। राजनीति भी बाजार के प्रभाव क्षेत्र से बाहर नहीं है क्योंकि वह सबसे बड़ा व्यवसाय है, वह एक टकसाल है जिसमें मुद्रा बनाई जाती है। जिस दिन बाजार के बादशाह यह समझ लेंगे कि दमित, दलित व उपेक्षित लोगों को अवसर देकर समर्थ बनाने पर बाजार का क्षेत्र बढ़ेगा, ग्राहक संख्या बढ़ेगी, उस दिन सदियों से उपेक्षित इस वर्ग का कल्याण होगा। अर्थात बाजार के चरण पडऩे से ही इन पाषाण बने लोगों का उद्धार होगा।