सितारों की सौंदर्य शल्य चिकित्सा / जयप्रकाश चौकसे

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सितारों की सौंदर्य शल्य चिकित्सा
प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2014


सौंदर्य शल्य चिकित्सा कोई नई खोज नहीं है। दशकों से यह काम हो रहा है। भारत में अनेक सितारों ने फेस लिफ्ट कराया है, बाल रोपण कराया है, नाक दुरुस्त की गई है और ओंठों में अतिरिक्त मादकता के जतन भी किए गए हैं, लेकिन हर बार इससे इनकार किया जाता है। क्योंकि सौंदर्य स्वाभाविक नहीं होते हुए शल्य चिकित्सा द्वारा बनाया जाना उनके प्रशंसक घटा सकता है। जिस कारण बाजार में मेहनताना कम हो सकता है। इस दृष्टि से यह एक कारोबारी हकीकत है और यूं भी युवा दिखते रहने की इच्छा तो आम लोगों के मन में भी होती है। परंतु सौंदर्य शल्य चिकित्सा महंगी होने के कारण आम आदमी के बस में नहीं है।

सेहत और बीमारियों के इलाज के इंश्योरेंस में सौंदर्य चिकित्सा के लिए किया खर्च अमान्य कर दिया जाता है। विज्ञान का यह क्षेत्र इतना विकसित है कि चेहरा पूरी तरह से बदला भी जा सकता है जिसके आधार पर हॉलीवुड में सफल फिल्म 'फेस ऑफ' का निर्माण हुआ था और एक विदेशी उपन्यास से प्रेरित राकेश रोशन ने रेखा को लेकर सफल फिल्म 'खून भरी मांग' बनाई थी। नायिका का लालची पति धन के लिए उसे मगरमच्छों से भरे तालाब में फेंक देता है परंतु वह अत्यंत घायल अवस्था में बच जाती है और अपनी नई शक्ल की सहायता से बदला लेती है। इसी थीम पर आजकल सीरियल भी दिखाया जा रहा है। तीन दशक पूर्व रमेश बहल ने हॉलीवुड फिल्म 'प्रॉमिस' से प्रेरित फिल्म बनाई थी। जिसमें नायिका दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है। सर्जन शम्मी कपूर उसे नया चेहरा देते हैं और वह पुराना हिसाब-किताब साफ करती है। इस फिल्म में रमेश बहल की हिमाकत थी कि एक ही स्त्री के शल्य चिकित्सा का लाभ लेते हुए उन्होंने फिल्म में दो नायिकाएं ली थीं टीना मुनीम और पूनम ढिल्लों और दोनों के संवाद जया बच्चन ने डब किए थे। नायक ऋषि कपूर थे। बहरहाल इस श्रेणी की सफलतम फिल्म 'फेस ऑफ' है।

कुछ वर्षों पूर्व खबर थी कि प्रियंका चोपड़ा ने ओंठों की मादकता बढ़ाने के लिए कोई उपचार किया है। परंतु प्रियंका ने इससे साफ इनकार किया और ताजा खबर है कि अनुष्का शर्मा ने भी ओंठों की मादकता के लिए कोई प्रक्रिया की है। और वह भी इससे इनकार कर रही है। यह भी सच है कि ओंठों की मादकता की दर्द से भरी प्रक्रिया में यह जरूरी हो जाता है कि कुछ दिनों तक उनके मादक उपयोग से बचा जाए अन्यथा सर्जन का काम बिगड़ जाता है। यह विरोधाभास ही इस तरह के सारे कामों का अंतिम सच है कि मादकता पैदा की परंतु इस्तेमाल नहीं की जा सकती और दर्द इस तरह की तमाम प्रक्रियाओं में आवश्यक है गोयाकि दिल लगाने में दर्द पाना ही पड़ता है।

दरअसल सुंदर या मादक बने रहने की इच्छा की आलोचना नहीं की जा सकती और यह अगर शल्य चिकित्सा ठीक होती है को इसमें भी कोई नैतिक मूल्य नहीं टूटता। सुंदरता और मादकता नियमित कसरत एवं सही चीजें खाने से भी प्राप्त होती हैं और दूसरा दर्द भरा रास्ता शल्य क्रिया का है। पहले स्वाभाविक मार्ग में लंबा समय और अनुशासन की आवश्यकता होती है तथा दूसरे में धन की आवश्यकता होती है तथा दर्द सहना भी पड़ता है। यह मामला व्यक्तिगत पसंद का है और इसे वहीं छोड़ दिया जाना चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र में शल्य चिकित्सा से अनेक अभद्र अप्रकाशनीय बातें भी जुड़ी हैं। किसी दौर में 'फ्रंटल लोबोक्टोमी' भी अवैध घोषित हुई थी। जिसके द्वारा चिंता के सेल में परिवर्तन किया जाता था परंतु व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता कम हो जाती थी। यह मामला अदालत भी गया था और इस तरह की शल्य क्रिया को ईश्वर के निर्माण में अवैध परिवर्तन की तरह भी माना गया था। अगर कोई व्यक्ति असुंदरता को बीमारी समझता है तो उसका इलाज उसका अपना निर्णय है। सच तो यह है कि सौंदर्य की परिभाषा सब देशों में समान नहीं है। हमारा अपना हजारों वर्ष पुराना मंत्र ही सही है 'सत्यम शिवम सुंदरम'।