सिनेमा दहकती रातें, तपते दिन / जयप्रकाश चौकसे

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सिनेमा दहकती रातें, तपते दिन
प्रकाशन तिथि : 08 जून 2019


आदित्य चोपड़ा की सफल सार्थक फिल्म 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' मुंबई के मराठा मंदिर सिनेमाघर में कई वर्षों तक प्रदर्शित की गई। महाराष्ट्र सरकार ने उसे 99 वर्ष तक के लिए मनोरंजन कर से मुक्त किया था। ज्ञातव्य है कि उस दौर में मनोरंजन कर बहुत अधिक था। कर मुक्ति के कारण टिकट के दाम बहुत कम हो गए थे और 30 सप्ताह बाद फिल्म का प्रदर्शन प्रतिदिन तीन शो से घटाकर प्रतिदिन एक शो कर दिया गया था। मुंबई में केवल दो मौसम होते हैं। गर्मी और बहुत अधिक गर्मी। अत: कई लोग मनोरंजन कर मुक्त फिल्म के सस्ते टिकट खरीदकर कुछ समय वातानुकूलित सिनेमाघर में व्यतीत करते थे।

युवा प्रेमियों को बगीचे में साथ बैठने पर पुलिस वालों को पैसे देने पड़ते थे। कभी-कभी वह पैसे लेकर भी एक दो डंडे मार देता था। महंगाई के कारण पत्नी की मांग पूरी नहीं कर पाने पर अपनी पत्नी द्वारा फटकार खाया पुलिसवाला अपनी भड़ास युवा प्रेमियों पर निकाल देता था। इन कारणों से युवा प्रेमी मराठा मंदिर में फिल्म देखने जाते थे। ज्ञातव्य है कि प्रदर्शन के प्रारंभिक चरण में फिल्म प्रारंभ होने से पहले परदे के सामने 'ज़िंदा नाच गाना' भी होता था। पारिश्रमिक लेकर प्रोफेशनल नाचने वाली महिलाएं ठुमके लगाती थीं। इसे 'एक टिकट दो मजे' कहा जाता था। इसी का दूसरा और साहसी स्वरूप मराठा मंदिर में 'दुल्हनिया दौर' में घटित हुआ। सारांश यह है कि सिनेमाघर में मात्र फिल्म देखने के लिए लोग नहीं जाते। कुछ दिलफेंक मनचले महिला दर्शकों को देखने जाते हैं। बुरहानपुर के कमल टॉकीज में महिलाओं के लिए एक हिस्सा आरक्षित था। इस हिस्से और अन्य हिस्से के बीच एक दीवार होती थी। मनचले युवा महिला दर्शकों की बातें सुन पाने के लिए वहां जा बैठते थे। एक बार एक मनचला बुर्का पहनकर महिलाओं के बीच जा बैठा। उसकी एक नादानी से भेद खुल गया और महिलाओं ने उसकी जमकर पिटाई कर दी। जिस तरह पत्नी पीड़ित पति के मन में हिंसा हिलोरे लेती हैं। उसी तरह पति से परेशान पत्नी भी हिंसा को दबाए रखती है और ऐसे मौकों पर उनके द्वारा पीटा गया पानी भी नहीं मांग पाता।

भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की विदुषी पुत्री ने सप्रमाण प्रस्तुत किया है कि भारत में अहिंसा महात्मा गांधी की खोज रही है। हमारा इतिहास रक्तरंजित रहा है। सम्राट अशोक ने अपने अनेक सगों की हत्या की थी और कलिंग जैसे अनावश्यक युद्ध में हिंसा से उसे विरक्ति हुई और उसने महात्मा बुद्ध के दिखाए मार्ग पर चलते हुए सुशासन किया। सम्राट अशोक ने ही अफगानिस्तान में महात्मा बुद्ध की मूर्ति की स्थापना की थी। तालिबानी हिंसा में मूर्ति को तोड़ा गया तो आधी रात में उस मूर्ति के टुकड़े लोगों ने उठा लिए और अपने घर में उन्हें इबादत की जगह रख दिया। नकारात्मक शक्तियां अपना तमाशा जारी रखती हैं परंतु सकारात्मक लोग समाज को थामे हुए हैं और यह सिलसिला सदियों से जारी है। स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म 'शिंडलर्स लिस्ट' में एक व्यक्ति हिटलर के आतंक से क्रिश्चियन लोगों की रक्षा करता है। हर देश में हिंसा के दौर में लोग सहायता करते हैं। मानवीय करुणा की लहर अबाध रूप से सदैव प्रवाहमान रहती है। कोई रात ऐसी नहीं होती, जिसका सवेरा न हो। संवेदना की रक्षा करते रहने से सारे भवसागर पार किए जा सकते हैं। सागर में उठे तूफान से बचा जा सकता है परंतु नाम में ही तूफान मौजूद हो तो क्या करें। इसी आशय का गीत शैलेंद्र ने 'आवारा' के लिए लिखा था।