सिनेमा समाचार और जॉन अब्राहम / जयप्रकाश चौकसे

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सिनेमा समाचार और जॉन अब्राहम
प्रकाशन तिथि : दिसम्बर 2007


जॉन अब्राहम का खयाल है कि उनकी फिल्म ‘नो स्मोकिंग’ प्रचार के अभाव के कारण असफल रही। साथ ही उन महत्वपूर्ण आलोचकों से उनकी व्यक्तिगत मित्रता नहीं है जैसी कि अन्य सितारों ने जमा रखी है, जो फिल्मों के पक्ष में हवा बनाते हैं। जॉन की तरह कई आलोचकों को भी यही भ्रम है कि उनकी वजह से फिल्म चलती है। जैसे चुनाव के विशेषज्ञ जनता को समझने के मुगालते में रहते हैं, वैसे ही फिल्म के विशेषज्ञ भी जनता को समझने के मुगालते में रहते हैं। इन सारी बातों से अपरोक्ष रूप से यह कहने की कोशिश की जा रही है कि जनता स्वयं का विवेक इस्तेमाल नहीं करती या उसे भेड़ों की तरह रेले में हांका जा सकता है। अच्छी या बुरी आलोचना एक भी टिकट नहीं बिकवा पाती, ना ही एक भी दर्शक कम कर पाती है। ह में यह नहीं भूलना चाहिए कि सिनेमा शास्त्र में प्रशिक्षित नहीं होने के बावजूद भारतीय फिल्मकार फिल्म बनाते रहे हैं और फिल्म आस्वाद के अज्ञान के बावजूद दर्शक सिनेमा समझते रहे हैं। आज मौसम विशेषज्ञ शास्त्रसम्मत राय जाहिर करते हैं जो प्राय: गलत सिद्ध होती है, परंतु भारतीय कृषक आसमान देखकर ही अपनी बोवनी के समय का अनुमान लगा लेता है। इसका यह अर्थ नहीं कि विषय का शास्त्रीय ज्ञान अनावश्यक है। भारतीय मनोरंजन उद्योग में अंतश्चेतना (इंट्यूशन) का बहुत महत्व है। निर्माता द्वारा कहानी का चुनाव उसके मन की तरंग करती है और दर्शक द्वारा फिल्म को देखना भी उसकी तरंग पर ही निर्भर करता है। यह इंट्यूशन कोई दैवीय प्रेरणा नहीं है। इसके पीछे भी एक शास्त्र काम करता है। मैलकॉम ग्लैडवेल की किताब ‘ब्लिंक’ में अंतश्चेतना कैसे काम करती है, इसका विवरण प्रस्तुत किया गया है।

दरअसल मनुष्य की जिज्ञासा अपार है और वह सृष्टि के हर क्रियाकलाप का अध्ययन करके शास्त्र रचता है, परंतु सृष्टि भी उस गुरु की तरह है जो शार्गिद को एक गुर नहीं सिखाती ताकि जब शार्गिद अहंकार के क्षण में चुनौती दे तो उसे पटका जा सके। इसी तरह एक अनजान अदृश्य तरंग है, जो मतदाता या दर्शक को प्रभावित करती है। जॉन की तरह अनेक फिल्मकार अपनी असफलता को स्वीकार नहीं करते हुए दूसरों को दोष देते हैं। फिल्मकार का काम है कि सरलीकरण द्वारा दर्शक से तादात्म्य स्थापित करे और यह नहीं कर पाने पर वह बहाने खोजता है।

यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि तर्क के परे कुछ अवधारणाओं पर अकारण ही लोग यकीन कर लेते हैं। मसलन जॉन से यह पूछे जाने पर कि उन्हें बिपाशा को खो देने का भय नहीं है, उन्होंने कहा कि जब तक बिपाशा के जीवन में उनसे ऊंचा, कोई 6 फुट 2 इंच का आदमी नहीं आता, उन्हें डर नहीं है। गोयाकि बिपाशा उनकी ऊंचाई से प्यार करती हैं। प्रेम के कारण खोजना अर्थात ईश्वर के प्रति आस्था में तर्क का आधार खोजना है। वैसे हाल ही में फिल्मफेयर के मुखपृष्ठ पर जॉन-बिपाशा की तस्वीरें कामसूत्र कंडोम के विज्ञापन की याद ताजा करती हैं।