सिरजनहार: तीन लघुकथाएँ / अशोक भाटिया

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1

मानू ब्याहकर अपने नए घर जा चुकी थी। कुछ दिनों में जब जरूरी रस्में पूरी हो गयीं, तो एक सुबह सास ने मुस्कराकर मानू से कहा–सामने आँगन में सदाबहार पौधा लगा है, उसे पानी देना है। '

मानू पानी लेकर गई। पौधे को ध्यान से देखा। पहले उसने कोने में रखा खुरपा लेकर पौधे की मिट्टी को समतल किया। फिर पत्तों को फुहारे से धोकर पौधे के चारों तरफ़ धीरे-धीरे पानी छोड़ दिया।

यह देखकर सासू माँ की मुस्कान चौड़ी हो गई–मेरी बहू में अच्छी माँ बनने के सारे लक्षण मौजूद हैं। '

2

करीब चार महीने का बच्चा भीतर हलचल करने लगा है। मानू को ख़ुशी और जिज्ञासा के पंख लग गए हैं। इस बार अल्ट्रासाउंड में वह सब साफ़-साफ़ देख सकेगी।

वह घड़ी भी आ गई। मानू ने स्क्रीन पर बच्चे को हिलते-डुलते देखा, उसके दिल की धड़कन को सुना–जीती-जागती एक जिंदगी उसके भीतर पल रही है। दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य, सबसे खूबसूरत नज़ारा, सबसे सुंदर फूल...

टेस्ट के बाद पूछने पर विशेषज्ञ ने बताया–बाकी सब नॉर्मल है, पर बच्चे के नाक की हड्डी अभी नहीं दिख रही, जो इस स्टेज तक दिख जाती है।

मानू के स्वर्ग को ठेस लगी। पूछने पर बताया गया कि कई बार कुछ हफ्ते बाद दिखती है। सुनकर मानू कांप उठी। 'कई बार' यानी कभी नहीं भी दिखती। न दिखने का मतलब यह भी तो हो सकता है कि हड्डी बनी ही न हो। वह तेज़ी से डॉक्टर के कमरे में पहुँची। रिपोर्ट आगे रखी और भय की सिहरन के पार जाकर सीधे ही पूछ लिया–अगर हड्डी न बनी तो क्या बेबी को टर्मिनेट करना पड़ेगा? ' —देखते हैं। महीने बाद फिर चेक कराना है।' कहकर डॉक्टर ने अगले पेशेंट को बुलाया।

मानू को लगा, जरूर कोई गड़बड़ है, जो उससे छिपाई जा रही है। उसकी गीली हो आई आँखों के आगे अँधेरा छा गया। कानों में अजीब-सा शोर बजने लगा।

वापसी पर गाड़ी में बैठते ही उसने माँ और सास को फोन पर बताया, तो दोनों ने समझाया कि ऐसे हो जाता है। एकदम रिलैक्स करो। ऐसे कैसे कर सकती हूँ रिलैक्स? आखिर क्यों नहीं आई नाक की हड्डी? कुछ बात तो जरूर है। डर के मारे उसकी आँखों के आगे रह-रहकर काले छल्ले-से उड़कर बिखरने लगे। उसे लगा, जैसे सामने कोई बड़े-बड़े डैनों वाला भयंकर पक्षी लाल आँखें और काली लम्बी चोंच खोले आसमान से उतरकर आ रहा है ...वह शीशा तोड़कर मेरे बच्चे को ले जाएगा। ...डर के मारे मानू पसीने से भर गई। उसने जोर से आँखें बंद कर लीं। ...बंद आखों से ही आसपास देखना शुरू किया...पड़ोसन उसे कई दिन से बड़े ध्यान से देखती है। जरूर उसने ही नजर लगाई होगी। ... आँचल से ढको तो पता चल जाता है...न ढको तो वैसे ही पता चल जाता है ... मुंह बिचकाकर मानू बाहर देखने लगी..., अरे हाँ, रितु की भी तो एक रिपोर्ट ऐसी ही आई थी। फिर कुछ दिन बाद ठीक रिपोर्ट आ गई थी। ...मानू को कुछ उम्मीद जगी। उसने मोबाइल से गूगल सर्च किया। चेक करने के लिए एक बार फिर सर्च किया। दोनों बार अलग-अलग रिजल्ट आया। वह फिर परेशान हो गई। किसीके पास मेरे सवाल का साफ़ जवाब क्यों नहीं है? पूछूँ तो किससे पूछूँ? कहते हैं, दफ़्तर में न बताओ, समाज में भी न बताओ, कहीं ऊँच-नीच हो गई तो? तो फिर क्या हो जाएगा? इसका मतलब अपने में अंदर-अंदर घुटते रहो? इतनी बड़ी बात क्यों किसी से नहीं कर सकते? बात करेंगे ही नहीं, तो असलीयत कैसे पता चलेगी? ...

...तनाव के झूले पर लगातार झूलते-झूलते मानू सहसा भीतर से बाहर निकली। पति से बोली–तीन दिन बाद अल्ट्रासाउंड कराने और डॉक्टर के लिए अपॉइंटमेंट ले लेना। '

कहकर उसने पेट की तरफ देखा–मैं अकेली सही, पर मेरे बच्चे, तू अकेला नहीं है। मैं हरदम तेरे साथ हूँ, हमेशा। ' फिर उसने ममता के साथ पेट पर दोनों हाथ रख मानो बच्चे को अनिष्ट-से बचा लिया और सामने दीवार पर लगी बच्चे की फोटो को निहारने लगी।

3

गाड़ी में जाते-जाते मानू सोच रही थी...महानगर में कई चीज़ों को ध्यान में रखकर बड़ी मुश्किल से एक बच्चे का प्लान बनता है और अभी तो पांच महीने ही हुए हैं। मुश्किलों पर मुश्किलें। सबको चाहे सब कुछ पता हो, पर जिसे माँ बनना है, उसे कोई नहीं बताता ...

पिछले अल्ट्रासाउंड में मानू को बच्चे के नाक की हड्डी नहीं दिखाई दी थी। आज कुछ दिन बाद वे फिर से टेस्ट के लिए जा रहे हैं। एक की मशीन खराब भी तो हो सकती है। इस तिनके के सहारे मानू की नदिया पार होती या न होती, पर अखबार की भविष्यवाणी ने मन फिर डावांडोल कर दिया है। उसने बताया है कि इन दिनों बच्चे की सेहत तनाव का कारण रहेगी। अखबार भी गोलमोल बात करती है। अरे भई साफ़ क्यों नहीं बताते? बच्चे की सेहत खराब है इसलिए टेंशन होगी या मैं बेवजह टेंशन ले रही हूँ? ...

...इस बार रिपोर्ट बिलकुल ठीक आई। गर्म मन पर ठंडा पानी पड़ा। मानू चाईं-चाईं घर लौटी तो सामने बेड पर वही अखबार पड़ा था। उसने अखबार डस्टबिन में डाला और सेंडिल पहने ही रिलैक्स मूड में बेड पर लमलेट होकर बच्चे के सपनों में खो गई ...

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