सीतिया माय / विद्या रानी

Gadya Kosh से
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घरोॅ के पिछुवाड़ी में कुइयाँ छेलै, तेकरे बगलोॅ में एकटा डीह, गिरलोॅ-पड़लोॅ केन्हौं करी केॅ एक ठो कोठरी बचलोॅ छेलै। असकरी बुढ़िया लोगोॅ-वेदोॅ कन टहल करी केॅ खाय छेलै। गामोॅ के लोग-वेद बुढ़िया सें कामो करवाय लै छेलै आरो ओकरा आँखी केरोॅ बातरियो कहै छेलै। हेन्हौ केॅ गाम-देहातोॅ में बुढ़िया-सुढ़िया केॅ डायने कही दै छै। से ओकरौ सें सब डरै छेलै।

मोहनमा आपनोॅ मुनमां-टुनमां केॅ लै केॅ जखनी भी हुन्नें सें जाय छेलै, तखनिये सिखावै छेलै, "हे रे नूनू, हुन्नें नै ताकियोॅ, बुढ़िया देखी लेतौं तेॅ नजरैये देतौ, आरो जों बुढ़िया देखिये लौ तेॅ की पढ़वैं, जैसें नजर नै लागेॅ, बोल रे नुनुमां।" मुनुमां बोलेॅ लागै, "कारोॅ कबूतर, उजरोॅ पाँख, जे नै देखेॅ डायनी के आँख, जै कामरू कामाख्या।"

मोहनमां खुश होय गेलै, "देखल्हैं, एकरा कत्तेॅ याद रहै छै, तोरा याद छौ रे टुनमां?" टुनमां छोटका छेलै, कहलकै, "नै बाबू, मुनमां जे पढ़तै नी, हम्मू संगे पढ़ी लेवै।"

गजब बुद्धि छेलै मोहनमा के कि ई मंतर जे पढ़ी लेतै, ओकरा कुछ नै बिगाड़ेॅ सकतै बुढ़ियां, नै तेॅ सौंसे निगली जैतै, एहनोॅ छै खलबल डायन।

बुढ़िया बेचारी की डायनपनोॅ करती, साँझे खाय छै तेॅ भोरे नै, भोरे खाय छै तेॅ सांझकोॅ फिकिर। लोग-वेद कोय नगीच नै आवै छै। दुर्हे रहै में आपनोॅ भलाय बूझै छै। समय केरोॅ फेर छेकै, कहाँ सबकेॅ पियारोॅ लागै छेली, कहाँ दुतकारलोॅ जाय छै आबेॅ। यहाँ तक कि आपनोॅ बेटा-पुतोहो नै गुदानै छै, कैन्हें कि छुच्छा केॅ के पुच्छा। एतना उमिर होल्हौ पर बुढ़ियां कभी आंग नै चुरावै छै। खट्टी-खट्टी केॅ दिन काटै छै। बुलैला पर केकरौ कन रांधि एल्हौं, बरी पारी ऐल्हौं, देखलकौं कि कोय नै छै तेॅ राती में सुत्हौ लेॅ चल्ली गेलौं। यहेॅ रँ दिन कटलोॅ जाय छै। जेकरा सिनी काम करवैनें छै, ओकरौ सिनी डरवे करै छै। मजकि लाचारो छै, कहै छै, "की करियै भाय, कोय नै मिलै छै, आखिर में बुढ़िये केॅ बुलावै लेॅ पड़ै छै। आँखी केरोॅ जत्तेॅ बातरी-तातरी रहेॅ, काम तेॅ करिये दै छै नी। फेनू सामना-सामनी तेॅ बाघो नै निगलै छै।"

बुढ़िया के बड़की बेटी के नाम छेलै-सीता, से बूढ़ोॅ-पुरानोॅ लोग ओकरा सीतिया माय कहै छेलै। चार बेटी आरो एक बेटा के रहत्हौं बुढ़िया के दिन एन्हे कटै छेलै। कोय आपना पास राखै लेॅ नै चाहै छेलै, एगो बेटा केॅ छोड़ी केॅ। बेटवां कहै छेलै, "माय, चल हमरा कन" मतरकि पुतोहिया के लटकलोॅ मुँह देखी केॅ बुढ़ियां मन नै बनावै छेलै, "की जानलियै-केना केॅ राखतियै वहाँ लै जाय केॅ। एकटा कोठरी में आपनोॅ सिंगार करै लेॅ बैठती आरू हमरा भनसिया। ई नै होतै, मरवै तेॅ यहीं आपनोॅ डीहोॅ पर मरवै। तोहें वहाँ खिलावेॅ पारै छैं आरो यहाँ नै भेजेॅ पारै छैं। जतना होतौ, ओतन्हैं भेजियैं, समझलैं की नै।" आरो दोसरोॅ बात यहू छेलै कि बुढ़िया होय गेली छेलै चटोर, एकटा घरोॅ में रहवोॅ ओकरा लेॅ बड़ी जबूर बुझावै छेलै, जबेॅ तांय चार घरोॅ के तरकारी नै खैलकौं, तबेॅ तांय मोने नै भरै। गामोॅ के कोनो लोग जों कुच्छू बोललकोॅ, तेॅ सौंसे गाम में पढ़ावै के काम बुढ़िया के छेकै। झुकलोॅ कमर, सन रँ केश, जेन्होॅ-तेन्होॅ साड़ी, फटर-फटर चप्पल, सौंसे गाम घुरी जाय छै। अन्हरियो में एकरा डोॅर नै लागै छै, हद छै।

एक दिन बुढ़िया हटिया जाय रहली छेलै कि मोहना भेंटी गेलै। पुछलकै, "की सीतिया माय, की करै छैं आयकल?" सीतिया माय बोलली, "अरे मोहना, की करवोॅ, यहेॅ भगतोॅ कन रान्है छियौ, असकरे नी छै ऊ। कोय्यो नै रहै छै। हम्में तेॅ खैर गरीब छियै, हौ धनवानोॅ केॅ देखें, आयकल की हाल छै।" बुढ़िया कौआ रँ कांव-कांव करतें रहै छै। "हम्मीं करी केॅ दै छियै तेॅ खाय छै, नै तेॅ कुत्तो नै पूछै।" सोचेॅ लागलै मोहना-आरो तोरोॅ की हाल छै। चलनी दूसलकोॅ सूपोॅ केॅ, जेकरा में आपने बहत्तर ठो भुरकी।

सीतिया माय बोललकी, "की सोचेॅ लागलें मोहन। ई दुनियां में कोय नै छै केकरो। ई पापी पेट जे छै, एकर्है भरै लेॅ सब खटै छै, आरो एकरा तेॅ चाहियोॅॅ दिनोॅ में तीन-तीन दाव।" बुढ़िया आगू बोललै, "जेन्होॅ भगवान रोॅ मरजी, जौंने धारतै, वहीं करतै। इखनी तेॅ सब्भैं हमरा डायने कहै छै, आरो काम पड़ै छै तेॅ हमर्है बुलावै छै घुरी-फुरी। हमरा खटी केॅ खाय में की लाज। हम्में होय गेलियौ छुट्टा। कोय चाहतै कि जोरी केॅ राखौं तेॅ होतै की? हमरोॅ बेटां हमरा लै जैतै तेॅ की करतै। दोनों जीव जैतै डूटी करै लेॅ आरो हम्में घरजोगनी। रहोॅ महलोॅ में तेॅ करोॅ टहल। एकरा सें तेॅ यहीं बढ़ियां छी, गाँव-समाज छै, सब्भे मिली-जुली केॅ रहै छी, की रे मोहना।"

मोहना तेॅ डरी गेलै-अगे माय, ई बुढ़िया तेॅ यहो जानै छै, जों हमरोॅ बेटवा सिनी कही देलकै कि हमरोॅ बाबुओ तोरा डायने कहै छौं, तबेॅ की सोचतै ई बुढ़ियां। परगट में मोहना बोललै, "ठिक्के कहै छैं, जेना भगवान कटावौ, मतरकि आबेेॅ तोरा कहूँ थिर जांती केॅ रहना चाहियोॅ, ई रँ रहै में अच्छा तेॅ नहिये लगै छै।"

सीतिया माय नें जवाब देलकी, "आबेॅ अच्छा लगौ कि खराब, हम्में तेॅ यहेॅ रँ रहवै।"

मोहना 'कारोॅ कबूतर उजरोॅ पांख' ...बड़बड़ैलोॅ घरोॅ दिश जावेॅ लागलै। "हे ब्रह्मा महाराज, ई बुढ़िया के बुद्धि पर बैठी जैइयौ, हमरोेॅ घरोेॅ दिश नै ताकेॅ।" कतनो बात करी लै छै मोहना, मतरकि डैनी वाला बात भूलै नै छै। दुरयोग हेनोॅ कि ओकरोॅ ऐंगन सें जों निकलोॅ तेॅ दू रस्ता तेॅ बुढ़िया के घरे दै केॅ पड़ै छै-एगो आगू सें, आरो दोसरोेॅ पिछुवाड़ी सें। जानें कतना-कतना देवी-देवता केॅ मनावै छै मोहना, आतमा ओकरोॅ थर-थर करै छै तेॅ कहै छै-भोला नाथ हमरोॅ रच्छा करियौ। हुन्नें बुढ़िया के आतमा मोहना तरफ सें साफ छै। वैं सोचै छै कि सौंसे गाँव में जे हमरोॅ दिशोॅ सें कोय्यो कुच्छू बोलतै तेेॅ ई मोहने हमरे तरफोेॅ सें बोलतै। हुन्नें मुनमां-टुनमां केेॅ हेनोॅ शिक्षा देलोॅ गेलोॅ छै कि बुढ़िया केॅ देखलकोॅ कि पताल खेललकोॅ। कथी लेेॅ रुकतोॅ एक्को मिनिट, लगेॅ दरबर, लगेॅ दरबर-सीधे मैय्ये के पास। बुढ़िया ध्यान नै दै छेलै, सोचै छेलै-बच्चा छै, खेलै-धूपै छै, हमरा की। कि एक दिन नरुआ के टाली पर मुनमां-टुनमां चढ़ी केॅ दोनों खेलै छेलै। मुनमां टुनमां केॅ रटावै छैलै, "कारोॅ कबूतर, उजरोॅ पांख..." रधिया नीचू सें सुनलकै, पूछलकै "मुनमां, कोॅन फेंकड़ा पढ़ाय रहलोॅ छैं टुनमा केॅ" तेॅॅ मुनमां बोललै कि डायन बुढ़िया केॅ देखला पर यही पढ़ला सें कुछुओ नै होतै। रधिया पूछेॅ लागली कि के छेकै डायन रे मुनमा, तेॅ मुनमां बोललै, "तोंय नै जानै छैं रधिया, यहेॅ सीतिया माय जे छौ नी, वहेॅ छेकौ, बाबू कहै छै।" सीतिया माय हुन्नें कन्हौ धान फटकी रहलोॅ छेलै, से सुनी लेलकै। सुनी केॅ छटपटाय गेली बुढ़िया। "हाय रे करम, सपन्हौ में नै सोचलेॅ छेलियै कि ई मोहनो हमरा डायन कहतेॅ होतै, तभिये तेॅ ई छौड़ा सिनी हमरा देखी केॅ पताल खेलै छै। अरे, सब्भे गरीब असहाय ही डायने कैन्हें होय जाय छै रे। ई नाम तेॅ खड़े-खड़ लोगोॅ के जात लेलेॅ छै। हम्में की निपुत्तर-निहंग छी, आंय, हमरा बेटा रे, बेटी रे, घर रे, दुवार रे, हम्में केकरोॅ बापोॅ केॅ खैलियौ रे, जे डायन कहै छें" मने-मन कुहरै छै सीतिया माय, "सच्चे में जों बेटा पास चल्ली गेलोॅ होतियौं तेॅ ई कलंक तेॅ नै लगतियै। ई मोहना कत्तेॅ सुसरमुहां छै, हाँ में हों बतियैतौं आरो छौड़ा सिनी केॅ सिखैतौं कि ई बुढ़िया डायन छै" सीतिया माय सोची लेलकी कि अबकी पासकाट लिखवाय देवै बेटा केॅ कि आवी केॅ लै जो-ई कटी टा जन्त सिनी हमरा डायन कहै छै, हे भगवान, कन्नें जाय केॅ मरी जांव।

हुन्नें रधिया दौड़ली मोहना के पास गेली, आरो कहेॅ लागली, "हे हो कक्का, टुनमां-मुनमां टाली पर बेठी केॅ कही रहलोॅ छेल्हौं कि बुढ़िया सीतिया माय डायन छै-ई बाबू बतैलेॅ छै, यही सब। 'कारोॅ कबूतर, उजरोॅ पांख...' रटै छेल्हौं आरो हुन्नें बुढ़िया धान काटै छेलै, ज़रूरे सुनलेॅ होतौं।" सुनत्हैं मोहना तेॅ सन्न रही गेलै, "हे भगवान ई छौड़ा सिनी जात लेतै, बुढ़िया गुस्सैतै तेॅ की होतै, हे भवानी।" दौड़लोॅ गेलोॅ टाली पर आरो चिकरेॅ लागलै, "मुनमां-टुनमां हिन्नें आव, दोनों भाय नीचें उतर, तोरा सिनी केॅ आरो कुच्छू काम नै छौ जे दिन-रात खेलत्हैं रहै छैं। जों, घर जो।"

बुढ़ियां सुनलकी तेॅ कहेॅ लागली, "काम कैन्हें नी छै, जेन्होॅ शिक्षा देलेॅ छैं, होन्हे पढ़ै छौ। के सिखैलेॅ छै-कारोॅ कबूतर, उजरोॅ पांख...तोंही नी? वही रटै छौ।" मोहना के थोथनोॅ तेॅ एकदम्में फक्क रही गेलै। "सुनोॅ हे सीतिया माय, ऊ मंतर तेॅ हम्में बच्चा-बुतरू केॅ यै लेली सिखैलेॅ छी कि नजर-गुजर नै लागेॅ। ई भूत सिनी तेॅ एकदम्में बकलोले छै।" मोहना बात केॅ झांपै-तोपै वास्तें बोललै। सुनत्हैं बुढ़िया के मगज आरो चढ़िये तेॅ गेलै, बोलली, "मोहना ऊ सब बकलोल छै कि नै, ई तेॅ छोड़, तोहें हमरा बकलोल नै समझें। एत्तेॅ मीट्ठोॅ-मीट्ठोॅ बोलै छेलै रे, आरू तहूँ हमरा डाइने कहै छैं।" कहतें-कहतें बुढ़िया के आँखी में लोर आवी गेलै, जेकरा पोंछतें ऊ आगू कहेॅ लागली, "नै रहवौ रे मोहना ई गांव में, चल्ली जैवौ, आपनोॅ बेटा तेॅ नै नी कहतै-डायन छै।" सुनत्हैं मोहनो के मोॅन भरी ऐलै, ओकरोॅ आँखी सें पानी चुएॅ लागलै, बोललै, "नै सीतिया माय हेन्होॅ नै कहोॅ।" मजकि बुढ़िया के लहर नै शान्त भेलै, कहलकी, "बस आबेॅ कुछ नै बोलें तेॅ अच्छा।" आरो बुढ़िया उल्टे पाँव विन्डोवोॅ नाँखी लौटी गेलोॅ छेली।