सुखी जीवन / खलील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद :सुकेश साहनी)


एक शाम कवि और किसान की मुलाकात हो गई. कवि कुछ रूखा था और किसान संकोची, फिर भी वे आपस में बातचीत करने लगे।

किसान ने कहा, "मैं तुम्हें एक छोटी-सी कहानी सुनाता हूँ जिसे मैंने अभी कुछ दिन पहले ही सुना है-एक चूहा पिंजरे में पड़े पनीर के टुकड़े को मजे से खा रहा था, तो एक बिल्ली भी पास में खड़ी थी। चूहा एक क्षण के लिए काँपा, पर वह जानता था कि पिंजरे में वह पूर्णतया सुरक्षित है।"

बिल्ली ने कहा, "तुम अपने जीवन का आखिरी भोजन कर रहे हो।"

चूहे ने उत्तर दिया, "ठीक कहती हो, मुझे तो एक ही जीवन मिला है; इसलिए मरना भी एक ही बार पड़ेगा। अपनी बात करो। सुना है तुम्हें नौ जीवन प्राप्त हैं। इसका मतलब यही तो हुआ कि तुम्हें नौ बार मरना भी पड़ेगा।"

किसान ने कहानी खत्म करके कवि की ओर देखा और पूछा, "कितनी विचित्र कहानी है?"

कवि ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह मन ही मन बुदबुदा रहा था, "हमें नौ जीवन प्राप्त हैं, निःसंदेह नौ जीवन। हम नौ बार मरेंगे-पूरे नौ बार। इससे अच्छा तो एक ही जीवन है-पिंजरे में कैद...उस किसान का-सा जीवन...हाथ में आखिरी कौर लिये क्या हम नौ जीवन जीते हुए जंगलों और वीरानों में रहने वाले शेरों के सगे सम्बंधी नहीं हैं?"