सुजॉय घोष की 'कहानी' हॉलीवुड में / जयप्रकाश चौकसे

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सुजॉय घोष की 'कहानी' हॉलीवुड में
प्रकाशन तिथि : 02 अगस्त 2014


यशराज फिल्म्स सुजॉय घोष की फिल्म 'कहानी' को कुछ परिवर्तन के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए अंग्रेजी भाषा में बनाने जा रहे हैं। सारे कलाकार आैर तकनीशियन हॉलीवुड के होंगे तथा फिल्म का नाम डिइटी (देवी) होगा। ज्ञातव्य है कि सुजॉय की कहानी का क्लाइमैक्स दुर्गा पूजा के समय घटित होता है आैर दुर्गा की कथा के संकेत पूरी फिल्म में स्पष्ट नजर आते हैं। नायिका भी हजारों व्यक्तियों के कातिल का कत्ल मां दुर्गा की तरह करती है। इस फिल्म में कलकत्ता की गलियां केवल पृष्ठभूमि थीं वरन् एक जीवंत पात्र की तरह प्रस्तुत की गई थीं। 'कहानी' के निर्माता जयंतीलाल गढ़ा थे आैर संभव है कि आदित्य चोपड़ा ने उनसे इसके अधिकार विधिवत खरीदे होंगे या अधिकार सुजॉय घोष के पास से खरीदे होंगे। इस नए संस्करण में एक अमेरिकन महिला अपने गुमशुदा पति की तलाश में कलकत्ता आती है। दरअसल सुजॉय घोष की 'कहानी' की रचना आैर फिल्म में प्रस्तुतीकरण हॉलीवुड की अपराध कथाओं की तरह चुस्त था आैर अंतिम दृश्य में ही कथा का मूल दांव सामने आता है कि वह कोई गुमशुदा व्यक्ति नहीं था, वरन् भारतीय गुप्तचर था जिसे आतंकवादियों ने अपना शिकार बनाया था आैर उसकी तलाश का नाटक असली गुमनाम कातिल को अपने बिल से बाहर निकालने के लिए रचा गया था।

इसका सबसे अधिक मर्मस्पर्शी दृश्य था कि अपने गर्भवती होने का नाटक करते-करते नायिका काे एक क्षण ऐसा लगता है मानो वह सचमुच गर्भवती है गोयाकि ममत्व का नाटक भी एक अभूतपूर्व भावना को जगा सकता है। फिल्म का सारा सौंदर्य-बोध या कला-बोध हॉलीवुडनुमा था, अत: इसका हॉलीवुड संस्करण बनना स्वाभाविक है। विगत एक सदी से हमारे फिल्मकार विदेशों से कथाएं चुराते रहे हैं परंतु पहली बार हमारी कथा वैध रूप से विदेश में बनाई जा रही है। शांताराम की 'आदमी' 1941 की फिल्म है आैर कुछ हद तक उससे मिलती जुलती फिल्म 'इरमा लॉ डूज' कोई दो दशक बाद बनी थी जिसे शॉट दर शॉट शम्मी कपूर ने 'मनोरंजन' के नाम से उसके एक दशक बाद बनाया जिसमें संजीव कुमार आैर जीनत अमान ने अभिनीत किया था आैर इसी फिल्म की तवायफ नायिका अपने प्रेमी से सगर्व कहती है कि तुम काम मत करो, क्या तवायफों के समाज में मेेरी नाक कटवागे कि वह एक अदद प्रेमी नहीं पाल सकी।

हर समाज के अपने गर्व आैर लज्जा अलग-अलग होते हैं। इसी तरह फिल्म समाज के गर्व आैर लज्जा अलग हैं तथा कहानी चुराना कोई लज्जा की बात नहीं है वरन् दूसरों की रचना अपने नाम से जारी करने को भी गर्व माना जाता है। एक प्रतिष्ठित फिल्म गीतकार यह काम वर्षों से कर रहा है आैर उसकी सफेद पोशाक पर दाग भी नहीं आैर उसके माथे पर कोई बल भी नहीं। साहित्य आैर सिनेमा में प्रेरणा लेना हमेशा से चलता रहा है। दरअसल विचार संसार की यह रीत निराली है कि एक ही विचार अनेक देशों में बसे लोगों के मन में कौंध जाता है। जब भारत में वात्सायन 'कामसूत्र' रचा जा रहा था तब चीन में ताआे भी यौन संबंधों पर किताब लिख रहे थे। विचार एक लहर की तरह प्रवाहित है जिसपर कॉपी राइट का कोई बांध नहीं रचा गया है।

यह भी सच है कि हमारे महानतम फिल्मकार सत्यजीत रॉय ने 'एलियन' नामक पटकथा लिखी आैर इस विज्ञान फंतासी में अन्य ग्रह से एक प्राणी हमारी धरती पर आता है। रॉय महोदय ने अपनी पटकथा पूंजी निवेशक की तलाश के लिए हॉलीवुड भेजी। कुछ ही वर्ष बाद स्टीवन स्पीलबर्ग की विज्ञान फंतासी "ई.टी.' ने मनोरंजन जगत में तहलका मचा दिया। अब यह जरूरी नहीं कि उन्होंने सत्यजीत रॉय की 'एलियन' पढ़ी थी। दरअसल स्पीलबर्ग सारा जीवन वे ही फिल्में बनाते रहे हैं जिन्होंने उन्हें उनके बचपन में प्रभावित किया था। अब यह साम्य भी देखिए कि सत्यजीत रॉय का परिवार तीन पीढ़ियों से बाल साहित्य रचता रहा है जबकि भारत में बाल साहित्य का अकाल रहा है। हमारे सृजनकर्ता बालक की तरह सोच ही नहीं पाते जबकि सृजन संसार में बचपन प्रेरणा की अजर अमर गंगोत्री है। उम्र के हर पड़ाव पर अपने भीतर के बालपन को संजोए रखने से ही आप सामूहिक अवचेतन में पैंठने वाली कथाएं रच सकते हैं। जिस हृदय में उसका बचपन मर गया, उसका जीवन पटकथा विहीन बीहड़ होता है।