सुनील शेट्‌टी और अथिया की तलाश / जयप्रकाश चौकसे

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सुनील शेट्‌टी और अथिया की तलाश
प्रकाशन तिथि :26 अगस्त 2015


सुनील शेट्‌टी का पारिवारिक व्यवसाय उडुपी रेस्त्रां की शृंखला रहा है। पढ़-लिखकर सुनील शेट्‌टी ने रेडीमेड व्यवसाय आरंभ किया, परंतु पारिवारिक उडुपी रेस्त्रां व्यवसाय कायम रखा और उसका नवीनीकरण भी किया। नियमित कसरत और सक्रिय जीवनशैली में उन्हें लगता कि 'जीवन में कुछ कमी' है। यद्यपि वे माना से अपने प्रेम विवाह को लेकर खुश थे। उन दिनों जिम के रास्ते से मांसपेशियों का प्रदर्शन करते हुए फिल्मों में प्रवेश प्रारंभ ही हुआ था और 'जाने जीवन की किस कमी' को पूरा करने के लिए सुनील शेट्‌टी अभिनेता बन गए। एक्शन फिल्मों में कुछ कामयाबी भी मिली और बहुसितारा फिल्मों में 'मसलमैन' का स्थान उन्हें मिलता रहा तथा जे.पी. दत्ता की "बॉर्डर' में उन्हें वतन की राह में शहीदी की भूमिका भी मिल गई। शहादत पवित्र है और अत्यंत गरिमामय मानी जाती है। कई बार शहादत इतनी जबर्दस्त होती है कि मनुष्य के सामूहिक अवचेतन में गहरी पैठ जाती है और उस शहीद के अन्य सद्‌गुण अनदेखे ही रह जाते हैं। मसलन मात्र 23 की उम्र में महान भगत सिंह की शहादत यह दुनिया कभी भूल नहीं सकती, परंतु उनके आर्थिक एवं राजनीतिक विचारों की अनदेखी की गई है। उन्होंने मार्क्स का गहरा अध्ययन किया था और भारत के मजदूर तथा भूमिहीन किसान वर्ग के हितों के लिए वे सदैव चिंतित ही नहीं रहे, वरन् उन्होंने ठोस योजना भी बनाई। दरअसल, महान भगत सिंह का दार्शनिक स्वरूप प्राय: अज्ञात ही रहा है और उनका बम फोड़ना स्मृति की शिला पर अमिट तस्वीर बन गया। आज जो लोग उन्हें वोट बैंक की तरह प्रयोग कर रहे हैं, वैचारिक स्तर पर भगत सिंह उन्हें भारत और मानवता का शत्रु मानते थे।

बहरहाल, सुनील शेट्‌टी ने अत्यंत अल्प अभिनय योग्यता के बावजूद अपना स्थान बनाए रखा। यह कोई कम योग्यता नहीं कि जो काम आपको पूरा नहीं आता, उस काम के क्षेत्र में आप सफल हैं। सुनील शेट्‌टी की अभिनय प्रतिभा की कमी को उन्होंने सद्व्यवहार और मुसीबत में फंसों की मदद से ढंक लिया और वे फिल्म उद्योग में 'अन्ना शेट्‌टी' हो गए। अपनी भलाई के दृष्टिकोण के कारण ही वे सलमान खान के निकट आए, क्योंकि अलग-अलग पैमाने पर दोनों वही काम करते हैं 'नेकी कर और दरिया में डाल'। सलमान खान ने स्वयं की निर्माण संस्था में पहली फिल्म सुभाष घई की 'हीरो' का नया संस्करण बनाने की घोषणा की और निखिल आडवाणी को निर्देशन दिया। निखिल फिल्म तकनीक में प्रवीण हैं, परंतु कथा चयन में उनका रिकॉर्ड उत्साह नहीं जगाता।

ज्ञातव्य है कि सुभाष घई कुछ सितारा पुत्रों की अकड़ से परेशान थे और उन्होंने देव आनंद की 'स्वामी' के चौथे खलनायक जैकी श्राफ को नायक लिया और असफल 'पेंटर बाबू' की नायिका शेषाद्री को लेकर 'हीरो' बनाई, जिसके एकमात्र सितारे स्वयं सुभाष घई थे और उनकी फिल्मों को माधुर्य का ठोस आधार आनंद बक्षी व लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया। इसी फिल्म में पाकिस्तान की गायिका रेशमा ने एक गीत ऐसा गाया कि जुदा हुए प्रेमियों की 'लंबी जुदाई ओ रब्बा, एक तो सजन मेरे पास नहीं' आज तक हृदय में गूंजता है। उस गीत के स्थान पर वैसा गीत बनाना अब किसी के बस की बात नहीं है। सुना है कि करण जौहर के पास इसी मिजाज का एक गीत था, जो उन्होंने सहर्ष सलमान खान की 'हीरो' को दे दिया। सलमान ने सुनील शेट्‌टी और माना की सुपुत्री अथिया शेट्‌टी को नायिका लिया और आदित्य पांचोली के सुपुत्र को नायक लिया। यह वही युवा है जो जिया आत्महत्या प्रकरण में शक के दायरे में है।

बहरहाल, इसी फिल्म के लिए सलमान खान ने स्वयं एक गीत गाया है, जो लोकप्रियता के चार्ट पर धूम मचा रहा है। कुछ लोगों ने चंद रीलें देखी हैं और उन्हें अथिया शेट्‌टी में बहुत संभावनाएं दिख रही हैं। निखिल आडवाणी ने मूल हीरो की लजीली शर्मीली नायिका के चरित्र-चित्रण को अपने 'हीरो' में बदल दिया है। वह प्रेमिका भी है और लड़ाकू भी है। सुनील शेट्‌टी की पुत्री के ये तेवर स्वाभाविक हैं। अब सुनील शेट्‌टी की 'जीवन में क्या है कमी' को सुपुत्री अथिया पूरा कर सकती है और कामयाब होने के बाद अथिया को भी लग सकता है कि 'जीवन में क्या है कमी'। यही भाव तो आगे बढ़ने का उत्साह देता है।