सुबह की लाली / खंड 1 / भाग 14 / जीतेन्द्र वर्मा
सुबह होने के पहले शहर में कर्फ्यू लग गया। चारों तरफ सन्नाटा छा गया। अखबारों में हिंदू जागरण सभा से वापस आ रहे भीड़ पर पथराव तथा गाय को मारने की सूचना मात्र से भड़के दंगे की खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से छपी। प्रशासन के मुताबिक दंगे में मात्र तीन व्यक्ति मारे गए हैं तथा पाँच दुकाने लूटी गयी है। जबकि लोगों का कहना है कि पच्चीस से ज्यादा व्यक्ति मारे गए हैं।
दूसरे दिन गाँवों में भी दंगा भड़क उठा। शहर सेना के हवाले कर दिया गया।
फिर शुरू हुआ नेताओं तथा पत्रकारों के आने का अटूट सिलसिला। कभी सत्ताधारी दल के नेता आते तो कभी विपक्षी पार्टियों के। सभी दंगा स्थल पर फोटो खींचवाते, लंबे-चौड़े आश्वासन देते तथा अखबार में बयान देकर चलते बनते। तरह-तरह के बयान
‘उस पार्टी के कारण दंगा भड़का।’
‘नहीं उस पार्टी के कारण दंगा भड़का।’
‘हिंदू अधिक मारे गए।’
‘मुसलमानों की संपत्ति अधिक नष्ट हुई।’
‘राहत कार्यों में भेदभाव, हिंदुओं की उपेक्षा, मुसलमानों को प्रश्रय।’
‘फलाने पार्टी के नेता को दंगाग्रस्त क्षेत्रा में नहीं जाने दिया गया।’
‘उस पार्टी के नेता वहाँ जाते तो और दंगा भड़कता।’
‘दंगा के लिए प्रशासन दोषी।’
‘सरकार दोषी।’
‘सरकार से त्यागपत्र की माँग।’
‘सरकार ने न्यायिक जाँच का आदेश दिया।’
‘सरकार दंगाईयों को नहीं पकड़ रही है, इससे लगता है कि उसी के इशारे पर दंगा हुआ।’
‘फलाने पार्टी के लोगों के कारण दंगा हुआ।’
‘सरकार दोषियों को दंडित करने के लिए कृतसंकल्प।’
जितने नेता, उतनी बातें।