सुबह की लाली / खंड 2 / भाग 10 / जीतेन्द्र वर्मा
“पर मेरे बेटे का क्या होगा, पापा?”
“चुप कुत्ती! बेटे का नाम न लो। कैसा बेटा! पाप है ! पाप ! वह पाप है!”
-समझाते-समझाते प्रो0 पांडेय दाँत पीसते हुए चिल्लाए।
“पर आपने तो कहा था...”
अभी इतना ही बोल पाई थी कि प्रो0 पांडेय ने एक जोरदार लप्पड़ अनिता के गाल पर मारा। अनिता दीवार से जा टकराईं। प्रो0 पांडेय ने रड उठाया और तब तक मारते रहे जब तक थक नहीं गए। प्रो0 पांडेय रड़ चला रहे थे और अनिता अपनी जबान! यहाँ रड पर जबान भारी पड़ रही थी। अनिता कह रही थी-
“धोखेबाज! कह कर लाया कि धूमधाम से एकराम से शादी करेंगे। कितना अच्छा घर बस गया था। अब कह रहे हैं कि उसे भूल जाओ। बाप-रे-बाप! कैसे भूल जाऊँ। मेरा बेटा!... अब कह रहे हैं कि दूसरी शादी कर लो। लड़का ब्राह्मण है। पढ़ा-लिखा नहीं है तो क्या हुआ! है तो ब्राह्मण। पाप कट जाएगा।... चुल्लाभाड़ में जाय तुम्हारा कुल-वंश!...”
हाँफने लगे थे प्रो0 पांडेय-
“मार डालूँगा जो मेरे कहने से शादी नहीं की तो। धोखा देकर नहीं लाता तो आती कैसे! कुल-परिवार की मर्यादा डूबाने गई थी। मैं अपने कुल-परिवार का मर्यादा डूबने नहीं दूँगा। चाहे तुम जीओ, चाहे मरो। कुत्ती, हरामजादी....