सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं, सुर के बिना जीवन सूना. . . / जयप्रकाश चौकसे

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सुर ना सजे, क्या गाऊं मैं, सुर के बिना जीवन सूना. . .
प्रकाशन तिथि : 20 मई 2020


संजय लीला भंसाली ‘बैजू बावरा’ की पटकथा लिखते हुए धुनों का सृजन भी कर रहे हैं। अपनी दो फिल्मों के बाद भंसाली ने अपनी फिल्मों का संगीत भी रचना प्रारंभ कर दिया। खबर है कि वे इस फिल्म मेें दीपिका पादुकोण और रणवीर सिंह को लेना चाहते हैं। भंसाली फिल्म ‘देवदास’ में पारो और चंद्रमुखी को साथ-साथ नचाते हुए प्रस्तुत कर चुके हैं। ‘बैजू बावरा’ में भी ऐसा कुछ कर सकते हैं।

मनुष्य ने प्रकृति के कार्यकलाप से गाना सीखा। जन्म से मृत्यु तक के अवसरों के लिए गीत रचे गए हैं। अवाम के संगीत का अध्ययन कर के उसका श्रेणीकरण किया गया। इस तरह शास्त्रीय संगीत का उदय हुआ। आठ सौ से अधिक राग-रागिनियां हैं। फिल्म संगीत में लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों का उपयोग किया जाता है। इतना ही नहीं, विदेशी धुनों की प्रेरणा से भी गीत रचे जाते हैं। पंकज राग की किताब ‘धुनों की यात्रा’ फिल्म संगीत पर लिखी श्रेष्ठ किताब है। किताब में विदेश से प्रेरणा लेकर रची गई धुनों का भी विवरण है। सभी संगीतकारों ने देश-विदेश से प्रेरणा ली है। सचिन देव बर्मन ने फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आंखें’ के लिए मधुर गीत रचा- ‘पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, इक-इक पल जैसे इक जुग बीता, युग बीते मोहे नींद न आई..’ स्वयं सचिन देव बर्मन ने कहा कि इस धुन की प्रेरणा उन्हें काजी नजरुल इस्लाम की रचना से मिली थी। नौशाद शास्त्रीय संगीत से प्रेरणा लेते रहे और शंकर-जयकिशन पश्चिम की सिम्फनी से प्रेरित रहे। एक संगीतकार ने इस आशय की बात की कि शंकर-जयकिशन को शास्त्रीय संगीत का ज्ञान नहीं है। इसका जवाब शंकर-जयकिशन ने फिल्म ‘बसंत बहार’ के संगीत से दिया। सोहराब मोदी की ‘राज हठ’ में भी उन्होंने शास्त्रीय धुनें प्रस्तुत कीं। दरअसल, ‘बरसात’ से ‘मेरा नाम जोकर’ तक शंकर-जयकिशन छाए रहे। प्रतिभा और परिश्रम से ही इतने लंबे समय तक अपना स्थान बनाए रखा जा सकता है।

नौशाद का रुझान शास्त्रीय संगीत प्रेरित धुनों के साथ लोक गीतों की ओर भी था, परंतु दबंग फिल्मकार ए.आर. करदार ने नौशाद को पश्चिमी सिम्फनी से प्रेरणा लेने के लिए कहा। वर्तमान समय का फिल्म संगीत एक संगीत कंपनी द्वारा रचे ‘गीत बैंक’ पर ही निर्भर करता है। गीत बैंक बाजार की ताकत रेखांकित करते हुए फिल्मकार की मजबूरी को भी रेखांकित करता है। क्या सृजन क्षेत्र में बैंक के साथ ही शेयर बाजार का भी दखल होगा? सरकारी और गैर सरकारी धुनों के बीच संघर्ष होगा। संगीत बैंक और वोट बैंक का एकीकरण भी संभव है। पार्श्व गायन प्रारंभ होते ही इस क्षेत्र में क्रांति हो गई। इसके पूर्व तो बेसुरे कलाकार भी अपना गीत गाने के लिए मजबूर थे। लता मंगेशकर, मो. रफी, मन्ना डे, आशा भोसले, गीता दत्त और मुकेश ने विलक्षण कार्य किया। हमारे यहां संगीत की शिक्षा देने वाले घराने हुए हैं। उस्ताद अलाउद्दीन खान, रविशंकर विश्व विख्यात हुए हैं। बनारस के बिस्मिल्ला खान को अमेरिका के विश्व विद्यालय ने परिसर में रहकर छात्रों को शहनाई वादन का प्रशिक्षण देने की प्रार्थना की। मुंहमांगा पारिश्रमिक देने का प्रस्ताव भी दिया गया। बिस्मिल्ला खान ने सब कुछ नकार दिया। उन्होंने कहा कि आप अमेरिका में बनारस के घाट जैसा कुछ बना लेंगे, परंतु मेरी गंगा कैसे अमेरिका में ला पाएंगे? उन्हीं के उत्तराधिकारियों से नागरिकता का प्रमाण मांगा जा रहा है।

अरसे पहले किशोर वय के गायकों की प्रतियोगिता आयोजित की गई थी। पड़ोस के दुश्मन दोस्त देश से आया हुआ प्रतियोगी फाइनल में पहुंचा। पुरस्कार की राशि बड़ी थी। उसने फाइनल में गाने से इनकार कर दिया। वह अपने ही ग्वालियर घराने के किशोर से प्रतियोगिता नहीं करना चाहता था। संगीत घरानों में भाईचारा होता है। वे सुरों से शपथबद्ध हैं। संगीत क्षेत्र में राजनीतिक बंटवारे का कोई प्रभाव नहीं है। भला सरहदों के बावजूद सरहदों के बाहर जाते इंद्रधनुष को तोड़ा जा सकता है? यह अत्यंत दुखद है कि संगठित अपराध जगत में भी घराने होते हैं। उनका भाईचारा और प्रतिबद्धता अत्यंत शक्तिशाली होती है। बकौल मारियो पूजो के कोरलीन घराना सबसे सशक्त रहा है। संगीत घराने सृजन करते हैं, अपराध घराने हत्या करते हैं। राजनीतिक क्षितिज पर संकीर्णता की शपथ लेने वाले घरानों का भी उदय हुआ है। घरानों की अदायगी को खयाल और ठुमरी में बांटा गया है। शाहजहां को ध्रुपद गायकी पसंद थी। तानसेन ने आगरा घराना कायम किया। राज कपूर और मुकेश एक ही संगीत पाठशाला में पढ़े और गुरु भाई रहे। राज कपूर को भैरवी तो गुरु दत्त को शिवरंजनी प्रिय रही। वर्तमान के संगीतकार ‘भूषण राग’ गाते हैं। संगीत को रिकॉर्ड करने में कम्प्यूटर जनित ध्वनियों के प्रवेश से वादक प्रजाति संकट में आ गई है। राग से रोग दूर हो सकते हैं। कोरोना राग का शंखनाद संभव है। राग, रोग और रंग अदृश्य धागे से बंधे हैं। राग कोरोना में मियां की तोड़ी।