सुर ना सधे क्या गाऊं मैं - 2 / जयप्रकाश चौकसे

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सुर ना सधे क्या गाऊं मैं - 2
प्रकाशन तिथि : 26 दिसम्बर 2021


कोरोना के कारण कुछ विलंब से ही सही परंतु तानसेन संगीत समारोह का आयोजन 25 से 30 दिसंबर के बीच होना तय हो गया है। संगीत किसी भी देश का सॉफ्ट पावर माना जाता है। गाना सभी चाहते हैं सुर सधे या ना सधे। बाथरूम में शरीर पर ठंडा जल पड़ते ही कुछ स्वर फूट पड़ते हैं। गीत गाना मनुष्य की स्वाभाविक क्रिया है। यहां तक कि बेसुरे भी गाते हैं और यकीन कीजिए अपने पैशन के कारण वे गाना गाने भी लगते हैं। मनुष्य के अभ्यास और जिद के कारण सब कुछ संभव हो जाता है। शांताराम ने इसी भावना से प्रेरित फिल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने’ बनाई। इस फिल्म में जितेंद्र ने मुख्य रोल निभाया था। यह उनकी दूसरी फिल्म थी। इसमें उनके अभिनय ने बहुत से दर्शकों का दिल जीता था। इसमें संगीत रामलाल ने दिया था। इसके अधिकतर गानों के लिरिक्स हसरत जयपुरी ने दिए थे।

मानव इतिहास में तर्क के परे भी असंभव सध जाता है। कभी आप कुछ करते हैं और कुछ और ही हो जाता है। एक बार एक मनुष्य ने सर्प देखा और उसे पत्थर से मारा, सर्प तो बच गया परंतु पत्थर से पत्थर टकराया और एक चिंगारी उठी। संभवत: इस तरह अग्नि की खोज हुई होगी। कई वर्षों तक एक संगीतकार ने मधुर संगीत रचा परंतु उसे सफलता बरसों बाद मिली। नौशाद को फिल्म ‘बैजू बावरा’ से सफलता मिली। उनका कथन रहा है कि सिनेमाघर के बाहर से अंदर जमा भीड़ तक पहुंचने में उन्हें लंबा समय लगा। नौशाद के ही नजदीक के एक आदमी ने कहा कि एक समकालीन संगीतकार हमेशा वेस्टर्न संगीत से सफलता पाते थे। उन्हें शास्त्रीय संगीत की कुछ समझ नहीं है। नौशाद ने अपने वादक को इस हरकत के लिए बहुत डांटा। यह बात संगीतकार शंकर-जयकिशन तक पहुंची। उन्होंने शास्त्रीय रागों से प्रेरित फिल्म ‘बसंत बहार’ में शास्त्रीय संगीत से प्रेरित मधुर संगीत रचा। सोहराब मोदी की ‘राजहठ’ के लिए भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत रचा। आलोचना या उसकी अफवाह भी एक चुनौती बन जाता है। संगीतकार सचिन देव बर्मन ने भी बहुत प्रयोग किए परंतु उनके पुत्र राहुल देव को प्रयोग का गुरु माना गया। एक बार संगीतकार राहुल देव को लगा कि उन्होंने एक दूसरे व्यक्ति की फिल्म में माधुर्य रचा है। फिल्मकार ने उन्हें याद दिलाया कि बेसुरे निर्माता ने ही उन्हें कभी भूली बिसरी धुनों की याद दिलाई थी।

सचिन देव बर्मन की फिल्म ‘बहारों के सपने’ में गीत-‘आ जा पिया तोहे प्यार दूं, गोरी बइयां तोपे वार दूं’ की प्रेरणा से गीत बना- ‘तेरे लिए पलकों की झालर बुनूं’। इसी भूली बिसरी धुन की याद निर्माता ने उन्हें दिलाई थी। कई बार संगीत संसार में पुरानी रचना इसी तरह नए स्वरूप में सामने आती है। नया गीत पुरानी धुन से प्रेरित होता है।

ओटीटी मंच पर नसीरुद्दीन शाह अभिनीत कार्यक्रम में एक संगीतकार महसूस करता है कि नई गायिका उससे बेहतर गाती है। वह अपने पुत्र के लिए रिश्ता ले जाता है परंतु शादी के बाद वह गायन नहीं करेगी ऐसा वादा ले लेता है। ‘बंदिश बैंडिट्स’ सीरियल में इस तरह के रिश्ते के माध्यम से गायक अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को संगीत से हटा देता है। वह कालांतर में अपने पुत्र को गायन की शिक्षा देती है और एक प्रतिस्पर्धा में उन्हें अपने पुत्र से हराकर अपना बदला ले लेती है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि ‘बैजू बावरा’ एक काल्पनिक पात्र है। अकबर के दरबार में केवल तानसेन ही एकमात्र गायक था। दरअसल लोक कथाएं अधिक समय तक याद रहती हैं। ऐतिहासिक को ही गल्प माना जाता है। बहरहाल बैजू बावरा को स्वयं घोषित गुरु बार-बार कहते हैं कि बैजू हवेली की तरफ देखकर गाया करो। संकेत स्पष्ट है कि महाराज को चुनौती देना है कि एक आदमी उनके सिंहासन को चुनौती दे रहा है। बचाइए अपने सिंहासन को।