सूरत पर भारी पड़ती सीरत / जयप्रकाश चौकसे

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सूरत पर भारी पड़ती सीरत
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2019


आम दर्शक राजकुमार राव और आयुष्मान खुराना के अभिनय को पसंद कर रहे हैं और इसी आधार पर उन्हें सितारा माना जा सकता है। सितारा सिंहासन मिलते ही अभिनेता को अपने काम में निखार लाने के अवसर कम हो जाते हैं और वह अपनी ही छवि में कैद हो जाता है। सितारा अपनी अदाओं को दोहराता रहता है और किसी भी विचार या प्रवृत्ति का दोहराव उसके लिए हानिकारक सिद्ध होता है। आमिर खान ने स्वयं को दोहराव से बचाए रखा है। सलमान खान को घोर अनिच्छा के बावजूद अपनी फिल्म के एक दृश्य में अपनी कमीज उतारनी ही पड़ती है। शाहरुख खान 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की छवि में ही कुलबुलाते रहे हैं। आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव की लोकप्रियता का श्रेय फिल्मकारों और पटकथा लेखकों को भी दिया जाना चाहिए। 'विकी डोनर' जैसी फिल्म का पहले बनना मुमकिन नहीं था, क्योंकि स्पर्म पर शोध विगत वर्षों में ही हुआ है। इससे यह तथ्य रेखांकित होता है कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी के विकास ने नई कथाओं को लिखने की प्रेरणा भी दी।

'विकी डोनर' के अंतिम दृश्य में अन्नू कपूर अभिनीत डॉक्टर कहता है कि पूरा विश्व ही एक विराट स्पर्म है। श्रीलाल शुक्ल अपने उपन्यास 'राग दरबारी' में लिखते हैं कि शिवपालगंज (उपन्यास में वर्णित एक काल्पनिक कस्बा) अब फैलकर पूरे भारत में पसर रहा है। वर्तमान के हालात श्रीलाल शुक्ल को ही सत्य सिद्ध कर रहे हैं। आज व्यवस्था समर्थित हुड़दंग तांडव कर रहा है। अभी तक भस्मासुर अवतरित नहीं हुआ है, परंतु उसके आगमन का अंदाज हम अनियंत्रित हुड़ढंग से लगा सकते हैं। सूर्योदय के पहले की लाली उस लहू के रंग से अलग होती है जो सड़कों पर गिराया जा रहा है। आयुष्मान खुराना और राजकुमार राव का लोकप्रिय होना हमें अमोल पालेकर की याद दिलाता है, जो बैंक में नौकरी करते हुए रंगमंच के द्वारा फिल्म अभिनय क्षेत्र में आए थे। बाद में उन्होंने फिल्में भी निर्देशित की।

उनकी ऑपेरानुमा फिल्म 'थोड़ा सा रुमानी हो जाएं' अत्यंत मनोरंजक एवं रोचक फिल्म थी। उन्होंने 'दरमियां' भी बनाई, जिसमें एक अछूते विषय को उठाया गया था। अमोल पालेकर के बहुत पहले मोतीलाल और बलराज साहनी अपने जौहर दिखा चुके थे। एक जमाने में मोतीलाल इतने बड़े स्टार थे कि जिस रंग का सूट पहनते उसी रंग की कार में निकलते थे। मोतीलाल ने 'छोटी छोटी बातें' नामक फिल्म निर्देशित की। जिसमें उम्रदराज व्यक्ति के अपने परिवार में ही उपेक्षित किए जाने की बात मार्मिक ढंग से प्रस्तुत की गई थी। नसीरुद्‌दीन शाह और ओम पुरी ने भी इस क्षेत्र में बड़ी ख्याति अर्जित की है। नसीरुद्दीन शाह आज भी रंगमंच पर सक्रिय हैं। साधारण चेहरे मोहरे वाले प्रतिभाशाली कलाकारों में स्मिता पाटिल और शबाना आजमी ने महारत हासिल की है और शबाना आजमी तो आज भी सक्रिय हैं।

सुप्रिया पाठक ने 'बाजार' नामक फिल्म में यादगार भूमिका अभिनीत की थी। सुप्रिया की सगी बहन रत्ना पाठक भी बहुत ही विश्वसनीय भूमिकाएं अभिनीत करती रहीं। रत्ना का ब्याह नसीरुद्दीन शाह से हुआ है। मुमताज ने अपना कॅरिअर जूनियर कलाकार की तरह प्रारंभ किया गोयाकि वे किसी दृश्य में भीड़ का हिस्सा होती थीं बाद में उन्होंने दारा सिंह के साथ 'टार्जन गोज़ टू दिल्ली' में काम किया। एक दौर में वे शम्मी कपूर की अंतरंग मित्र बन गईं और शंकर-जयकिशन ने लोकप्रिय गीत रच दिया 'आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जुबान पर'।

बाद में मुमताज ने राजेश खन्ना के साथ बहुत सी रोमांटिक फिल्में अभिनीत की। पारंपरिक शिक्षा से वंचित मुमताज को इतना व्यावहारिक ज्ञान था कि अभिनय से उन्होंने अलग होने का निर्णय उस समय लिया जब वे शिखर पर थीं। दक्षिण अफ्रीका के हीरा व्यापारी से उन्होंने विवाह किया और उनकी पुत्री का विवाह उनके निकट मित्र व सहयोगी कलाकार फिरोज खान के बेटे के साथ हुआ। स्वयं फिरोज खान भी सह-कलाकार के तौर पर उभरे और नायक तथा सफल फिल्मकार हुए साधारण चेहरे-मोहरे वाले कलाकार भी लोकप्रिय हुए हैं। फिल्म विधा का असली सितारा तो निर्देशक ही होता है और लेखक उसका सहयोगी।