सूर्योदय / नीरजा हेमेन्द्र

Gadya Kosh से
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चाँदनी घर से निकल कर अनमने ढंग से सड़क के किनारे-किनारे चली जा रही थी। वह सामने की बहुमंजिली इमारत में घर की साफ-सफाई, चूल्हा-चैका इत्यादि का कार्य करती है। वह प्रतिदिन इसी प्रकार बिखरे-से बाल, पुराने मैले-से कपड़े पहने अनमने ढंग से कार्य पर निकलती है। उसका मन काम पर जाने का नही होता, किन्तु माँ व पिता की डाँट खाने के डर से उसे काम पर जाना पड़ता है। माँ करे भी तो क्या करे? यह उसकी मजबूरी है। इन अत्याधुनिक बहुमंजिली इमारतों के पीछे आठ-दस झुग्गियों का समूह। उसी में एक कच्ची-पक्की झोंपड़ी में चाँदनी के माता-पिता तीन बहनें तथा एक भाई रहतें हैं। पिता सड़क के किनारे पंचर सायकिल बनाने का काम करते हैं। उनकी कमाई से घर चलाना असंभव-सा है, तिस पर उनकी शराब पीने की लत ने घर की आर्थिक स्थिति एकदम जर्जर कर दी है। माँ तथा उसकी अन्य बहनें भी काम पर जाती हैं। घरों में चैका-बर्तन तथा साफ-सफाई का कार्य करती हैं। सबसे छोटा भाई जो चार वर्ष का है, वह काम तो नही करता, किन्तु माँ के साथ ही जाता हैं। घर में उसकी देखभाल करने वाला कोई नही है।

चाँदनी प्रतिदिन छः बजे उठती है। घर के कार्य में माँ का हाथ बँटा कर सात बजे तक घर से निकल पड़ती है। उसका मन काम पर जाने का नही होता, किन्तु माँ प्रतिदिन काम पर भेजती है। महीना पूरा होने पर मालकिन ये पैसे माँ लाती है। चाँदनी की उम्र यद्यपि तेरह वर्ष की है किन्तु वह घर के कार्य झाड़ू-पोंछा, बर्तन, घर के अन्य छोटे-मोटे कार्य कर लेती है। छः-सात वर्ष की उम्र से ही काम जो करने लगी थी। पहले वह एक घर में कार्य करती थी, किन्तु अब माँ ने उसे अन्य दो घरों में लगा दिया है। यही कारण है कि उसे इतनी सुबह काम पर निकलना पड़ता है।

अनमने ढंग से चलते हुए अचानक उसकी दृष्टि रिक्शे से स्कूल जाते हुए बच्चों पर पड़ी। वह सोचने लगी कि ये बच्चे कैसे अच्छे-अच्छे, साफ-सुथरे कपड़े पहन कर विद्यालय जा रहे हैं। इन सबके पास किताबों का बैग, पानी की बोतल तथा टिफिन भी होता है। वह जहाँ काम करती है वहाँ उसने देखा है कि मालकिन कैसे अपने बच्चों के लिए प्रतिदिन स्वादिष्ट टिफिन तैयार करती हैं। उसके माता-पिता क्यों नही उसे विद्याालय भेजते? क्या पढ़ने में बहुत पैसे लगते हैं? क्या उसके माता-पिता उतने पैसे नही खर्च कर सकते? विद्यालय जाते बच्चों को देख उसका आलस्य कहीं खो-सा गया। उनके साथ उसका हृदय भी प्रफुल्लित अनुभव करने लगा। उन बच्चों को आपस में हँसते, बातें करते देख उसके होठों पर भी हल्की-सी मुस्कुराहट तैर गयी। अरे! उसे तो शीघ्र काम पर जाना है। उसने स्कूल जाते बच्चों की तरफ से अपना घ्यान हटाया और काम पर जाने के लिए तीव्र गति से अपने कदम बढ़ाये।

चाँदनी की दो बड़ी बहनों में से एक के ब्याह की चर्चा घर में माँ-पिताजी कई दिनों से कर रहे थे। आज तो लड़के वाले आने वाले हैं। चाँदनी की बहन भी कई घरों में काम करती है। माँ उधार के पैसे ला कर लड़के वालों के खाने-पीने की तैयारी कर चुकी है। माँ पिताजी से कह रही थी कि “दीदी का ब्याह हो जाने पर घर में पैसों की परेशानी होने लगेगी। दीदी का काम छूट जाएगा तथा जो पैसे दीदी कमा कर लाती है वो नही आएगें।

देखते-देखते एक दिन दीदी का ब्याह हो गया। दीदी ससुराल चली गयी। “दीदी कितनी सुन्दर लग रही थी, शादी के लाल जोड़े में। दीदी ससुराल चली जाएगी तो घरों में चैका-बर्तन नही करना पड़ेगा। वहाँ तबियत खराब होने पर भी काम पर जाने की विवशता नही रहेगी। उसे सिर्फ घर में रहना होगा आराम से। माँ-बापू की डाँट व मार भी नही पड़ेगी।” यह सोचते-सोचते उसे अपनी जि़न्दगी कष्टप्रद लगने लगी। कितना काम करना पड़ता है घर में भी, बाहर भी। अक्सर माँ-बापू में झगड़ा होता है, मार उसे व उसके भाई-बहनों को खानी पड़ती है।

कुछ दिनों बाद दीदी ससुराल से पहली बार घर आयी। कितनी खुश थी वह। नये कपड़े, नई चूडि़याँ, श्रृंगार का सारा सामान नया। दीदी बहुत सुन्दर लग रही थी। दो-चार दिनों बाद दीदी फिर ससुराल चली गई। वह सोचती कि उसका भी ब्याह हो जाये तो वह भी ससुराल चली जाये, इस गरीबी तथा कष्टप्रद जीवन से छुटकारा मिले।

दिन व्यतीत होते रहे। एक दिन दीदी अचानक घर आ गयी। माँ को भी दीदी के आने की सूचना नही थी। तभी तो माँ दीदी के आने से चैंक-सी गयी। माँ और दीदी की आपस में बातें होती रहीं। चाँदनी काम पर निकल पड़ी। जब वह लौट कर आयी तो माँ भी काम पर जा चुकी थी। उसने दीदी को घ्यान से देखा, दीदी उसे कुछ उदास-सी लग रही थी। उसके चेहरे से पहले वाली प्र्रसन्नता कहीं गुम हो गई थी। दो-चार दिन रहने के बाद दीदी फिर ससुराल चली गई।

चाँदनी की वही दिनचर्या चलती रही। वह प्रतिदिन काम पर जाते समय विद्यालय जाते बच्चों को देखती और प्रसन्न हो जाती। उसे वो दिन स्मरण हो आते, जब वो छः-सात वर्ष की रही होगी। माँ-बापू ने उसे भी विद्याालय भेजने का प्रयत्न किया था। कुछ दिनों तक वह विद्यालय गई भी, किन्तु बाद मंे जाना छोड़ दिया था। माँ उसको अपने साथ काम पर ले जाने लगी। उसे भी माँ के साथ काम पर जाना अच्छा लगने लगा। माँ ने उसे फिर से पढ़ाने का प्रयत्न नही किया।

धीरे-धीरे दीदी के ब्याह को आठ माह हो गये। वह आज अपनी माँ तथा बहन के साथ दीदी से मिलने उसके घर जाने वाली है। दीदी बहुत दिनों से घर नही आयी है। वह बहुत खुश है। आज माँ ने काम से छुट्टी ले रखी। वह भी काम पर नही गई है। वह अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हीे गई है। उसकी कल्पनाओं को मानों पंख लग गये हैं। वह सोच रही है, “दीदी कैसे ससुराल में मजे से रह रही होगी। उसे न तो काम पर जाना पड़ता होगा, न अभावों में रहना पड़ता होगा। माँ-बापू की मार व डाँट भी न खानी पड़ती होगी।”

कुछ समय बाद वह माँ व अपनी बहन के साथ दीदी की ससुराल पहँुच गयी। “यह क्या? यह तो उसकी झुग्गी-झोंपड़ी की तरह की ही बस्ती है, जहाँ दीदी रहती है।”

टिन शेड के कच्चे कमरे में रखी एक ढीली चारपाई पर वह, माँ और उसकी बहन बैठ गये। दीदी घर में नही थी। दीदी की ससुराल के परिवार में पाँच सदस्य रहते हैं। वो सभी इसी एक छोटे-से, टूटे कमरे में रहते हैं। यह तो उसके अपने घर की तरह का ही घर है, जहाँ न तो शौचालय है, न पानी की व्यवस्था। थोड़ी देर में दीदी आ गयी। दीदी को देखते ही उसके हृदय में आघात-सा हुआ। दीदी भी माँ की तरह पुराने कपड़े पहने हुए थी। वह भी कदाचित् घरों में चैका-बर्तन का काम करने लगी थी। दीदी काम पर से ही आयी थी।हमें देखते ही दीदी प्रसन्न हो गयी। धुँए वाले स्टोव पर चाय बनाते-बनाते दीदी इधर-उधर की बातें करती जा रही थी। दीदी ने यह भी बताया कि वह भी यहाँ घरों में काम करने लगी है। उसका भी आदमी मजदूरी करने जाता है। कभी काम न मिलने के करण घर में ही रहता है। शराब पी कर उसे मारता भी है। चाँदनी के विचारों का प्रवाह तीव्र होने लगा। वह सोचने लगी कि, “दीदी की हालत ऐसी क्यों है? क्या उसकी पूरी जि़न्दगी इसी तरह कटेगी, दःुख और अभावों में? उसके बच्चे होंगे तो क्या उनका जीवन भी इसी तरह का होगा? इन दुःखों का अन्त कभी नही होगा? वह जिन घरों में काम करने जाती है, वहाँ की महिलायें, बच्चे कितने सुखी हैं। उनके घरों में सुख-आराम की सभी चीजें हैं। वो लोग सम्पन्न क्यों हैं? शिक्षा...! हाँ, वो पढ़े-लिखें हैं, इसलिए आॅफिस में नौकरी करते हैंै। उनका रहन-सहन अच्छा है। पढ़ा-लिखा होना ही उनके सुखी जीवन का रहस्य है। उसकी दीदी भी पढ़ी होती तो कहीं आॅफिस में काम करती। अच्छे घर में उसका ब्याह होता। वह भी मेम साहब की तरह सुखी रहती।”

उसे बचपन के वे दिन याद आने लगे, जब माँ ने उसे विद्यालय भेजा था, किन्तु उसने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी थी। अब उसे ज्ञात हो गया है कि अच्छा जीवन जीने के लिए शिक्षा की कितनी आवश्यकता है। तो, क्या वह चैदह वर्ष की उम्र में अपनी शिक्षा प्रारम्भ कर पाएगी? शायद न भी कर पाये, किन्तु वह अपने छोटे भाई-बहनों को विद्यालय भेजेगी। वह आज ही माँ से कहेगी कि छोटी बहन को काम पर न भेजे तथा भाई को भी विद्यालय भेजे। हम कुछ और अभावों में रह कर दिन व्यतीत कर लेंगे। इनको घरों मे चैका बर्तन करने नही भेजेंगे। इन्हे पढ़ाना है, तभी पूरा जीवन आराम से व्यतीत होगा।

चाँदनी भाई-बहनों की शिक्षा के लिए और मेहनत करेगी। संघर्ष करेगी। भविष्य में अपने बच्चों को भी शिक्षित करेगी। शिक्षा का महत्व चाँदनी भली-भाँति समझने लगी है। अभी भी विलम्ब नही हुआ है। आखिर अंधकार के बाद ही तो सूर्य की स्वर्णिम किरणें प्रस्फुटित होती हैं।