सूर्य और सौर -मंडल / कविता भट्ट

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सूर्य

ब्रह्मंड में सूर्य सौर परिवार का मुखिया तथा ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है। वास्तव में सूर्य जलते हुए एक आग का गोले के समान है तथा इसकी त्रिज्या सात लाख किमी-है। सूर्य और पृथ्वी के मध्य की दूरी लगभग 37 करोड़ किमी-है तथा इसका मध्य भाग काफ़ी गरम है। सूर्य के केन्द्र का तापमान लगभग 2 करोड़ डिग्री सेल्सियस है।

इस कारण इससे बहुत सारी ऊर्जा विद्युत् चुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) के रूप में निकलती है। सूर्य की सतह पर निगेटिव हाइड्रोजन आयन की परत है, जो बहुत सारे विकिरण को अवशोषित कर लेती है।

सोखी हुई गरमी सूर्य की सतह पर फ़ैल जाती है और इसका पुनः विकिरण होता है। इस प्रकार सूर्य की सतह पर एक फ़ोटोस्फ़ीयर बन जाता है। इस फ़ोटोस्फ़ीयर का तापमान सूर्य के केंद्र के तापमान से अत्यधिक कम होता है। एक अनुमान के आधार पर फ़ोटोस्फ़ीयर तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस होता है।

सूर्य रूपी यह गोला पृथ्वीवासियों की आँख पर मात्र 32 चाप मिनट कोण का निर्माण करता है। एक अंश कोण यदि 60 से विभाजित किया जाए तो एक चाप मिनट कोण बनता है। इससे यह स्पष्ट है कि सूर्य आधे अंश से कुछ ज़्यादा कोण बनाता है। सूर्य एक विशाल गोला है, जिसका द्रव्यमान 2' 1030 किलोग्राम है, अर्थात् यह पृथ्वी के द्रव्यमान का 3, 30, 000 गुना है। इसी प्रकार अग्नि रूपी गोला सूर्य का व्यास 14 लाख किलोमीटर है, जो कि पृथ्वी के व्यास का लगभग 10 गुना है।

सूर्य भी पृथ्वी के समान अपनी धुरी पर घूर्णन करता है; किन्तु यह पृथ्वी या अन्य ग्रहों की भाँति ठोस न होकर गैस का एक गोला है। अतः इसके विभिन्न भागों का घूर्णन वेग पृथक् होता है। यह कक्ष के चारों ओर 23 से 25 दिनों में एक घूर्णन पूरा कर लेता है।

सूर्य की जो सतह हमें प्रकाशित दिखलाई देती है, अर्थात् जो हमें प्रकाश देती है, वह प्रकाश-मंडल कहलाती है। इसका तापमान लगभग 6000 सेल्सियस होता है। सूर्य की सतह पर अनेक काले धब्बे मौजूद है, जिसके कारण इस स्थानों से प्रकाश की कम मात्रा निकलती है। यही कारण है हमें ये धब्बे ऐसे दिखते हैं। सूर्य गैस का एक गोला है, इसलिए इसमें बहुत गतिशील सूक्ष्म तथा अति सूक्ष्म कणों के तूफ़ान निरंतर चलते रहते हैं। इसमें बड़ी-बड़ी सौर ज्वालाएँ उठती रहती है। ज्वालाओं का ऊपरी सिरा सूर्य के प्रकाश-मंडल से 70, 000 किलोमीटर से भी अधिक ऊँचाई पर स्थित है।

इसके अतिरिक्त सूर्य-मंडल में अनेक प्रकार की किरणें व कण भी उत्सर्जित होते रहते हैं। सूर्य में पाई जाने वाली प्रमुख गैसों की मात्रा निम्नवत हैं-

हाइड्रोजन-70%

हीलियम-28%

शेष-2% (इसमें आक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन, लौह आदि शामिल है)

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सूर्य एक गैसीय गोला है। इसमें उष्मा का अपार भण्डार विद्यमान है।

मानव ने विभिन्न फ़ॉसिल शक्ति-स्रोतों, जल, पशु तथा मानव श्रम से जितनी शक्ति अपने पूरे दस लाख वर्ष की ज़िन्दगी में प्राप्त की है, सूर्य से उतनी शक्ति पृथ्वी के भूमि-क्षेत्र पर केवल एक दिन में प्राप्त हो जाती है। पृथ्वी के कुल फ़ॉसिल-स्रोतों, से प्राप्त ऊर्जा केवल एक सौ दिनों के सूर्यातप के बराबर है। इस प्रकार सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से सूर्य असीम शक्ति स्रोत है। वस्तुतः पृथ्वी पर पड़ने वाला प्रत्येक घण्टे का सूर्यातप इक्कीस अरब टन कोयले की ज्वलन शक्ति के बराबर है। आदर्श परिस्थितियों में धरातल पर प्रति वर्गमीटर क्षेत्र पर प्रतिदिन छह से आठ किलोवाट घंटे की शक्ति के बराबर सूर्यातप मिलता है। विश्व में सौर ऊर्जा की उपलब्धता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रति वर्ग मीटर गर्म मरुस्थलों में दो हजार दो सौ विषुवतीय क्षेत्र में एक हजार सात सौ उपोष्ण कटिबन्ध में एक हजार चार सौ तथा मध्य यूरोप में एक एजार एक सौ किलोवाट के बराबर सौर ऊर्जा उपलब्ध है।

सौर मण्डल

सूर्य सौर परिवार के केन्द्र में स्थित ऐसा सदस्य है जिसके पास ऊर्जा का विशाल स्रोत है। यह स्रोत नाभिकीय संलग्न प्रक्रिया द्वारा सूर्य को प्राप्त होता है। सूर्य के क्रोड में हाइड्रोजन के नाभिक अत्यधिक तीव्र गति से गतिशील रहते हैं। जब ये नाभिक परस्पर संलयित होकर अधिक द्रव्यमान वाले तत्त्व के नाभिक बनाते हैं तो अत्यधिक प्रमाण में ऊर्जा विमोचित होती है। सूर्य की आयु 2 × 1012 वर्ष मानी गई है।

सूर्य का अपना चुम्बकीय क्षेत्र है, जो पृथ्वी से सौ गुणा अधिक है। सूर्य के विशाल आकार का अनुमान हम इस बात से लगा सकते हैं कि सूर्य के क्षेत्र में तेरह लाख पृथ्वी समा जाएँगी।

सूर्य में पाए जाने वाले सभी तत्त्व गैसीय अवस्था में हैं। इससे पता चलता है कि सूर्य किसी ठोस पदार्थ से न बना होकर, केवल गैस का एक गोला ही है।

सूर्य की पृथ्वी से दूरी 1-5 × 188 किलोमीटर है तथा प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचने में लगभग आठ मिनट लेता है।

सूर्य की गतियाँ-इसकी गतियाँ निम्न प्रकार हैं-

1-सूर्य पृथ्वी की भाँति अपने अक्ष के चारों ओर चक्कर लगाता है। यह एक चक्कर पच्चीस दिन, सात घंटे और अड़तालीस मिनट में पूरा करता है। इसकी गति एक सौ छियानवे किलोमीटर प्रति सैकिंड है।

2-सूर्य अपने केन्द्र पर दो सौ किलोमीटर प्रति सैकिंड की गति से घूमते हुए किसी वृहत् आकाशीय पिण्ड की परिक्रमा बाइस करोड़ पचास लाख वर्ष में पूरी करता है। इस काल को 'कास्मिक वर्ष' कहते हैं।

सूर्य के वायुमण्डल की आन्तरिक रचना;

खगोलशास्त्रियों ने सूर्य के वायुमण्डल को तीन भागों में विभाजित किया गया है-फ़ोटोस्फ़ीयर, क्रोमोस्फ़ीयर, कारोना इन तीनों का विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है-

1-फ़ोटोस्फ़ीसर-सूर्य की लाल चकरी का वह भाग, जो इसकी सीमा निर्धारित करता है; फ़ोटोस्फ़ीयर कहलाता है। फ़ोटोस्फ़ीयर का अर्थ है-प्रकाश का गोला।

फ़ोटोस्फ़ीयर से सूर्य के प्रकाश की अधिकतम मात्रा विस्तीर्ण होती है। इस भाग का तापमान छह हजार पाँच सौ डिग्री सैंटीग्रेड है। इसके नीचे ताप बड़ी तेजी के साथ बढ़ने लगता है और अंत तक पहुँचते-पहुँचते दो करोड़ डिग्री सैंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। फ़ोटोस्फ़ीयर भाग के तापमान को मापने के लिए एक नई विधि का आविष्कार हुआ है, जिसे 'रेडियेशन-पायरोमेट्री' कहते हैं और जो यंत्र उपयोग में लाया जाता है, उसे 'पाइरोमीटर' कहते हैं। पाइरोमीटर से परमाणु भट्ठी तक का तापमान नापा जा सकता है।

2-क्रोमोस्फ़ीयर-यह फ़ोटोस्फ़ीयर के ऊपर स्थित होता है। क्रोमोस्फ़ीयर गुलाबी रंग का होता है। इसको हम पूर्ण सूर्य ग्रहण के अवसर पर ही देख सकते हैं।

फ़ोटोस्फ़ीयर के ऊपर क्रोमोस्फ़ीयर का पैंतीस हजार मील विस्तार है तथा इसमें भयंकर तफ़ूान तथा प्रचण्ड वातीय झौकों की अधिकता होती है।

वैज्ञानिक भाषा में ये सोलर प्रमिनेन्स कहलाते हैं। क्रोमोस्फ़ीयर का निचला भाग कम उष्ण गैसों वाला है, जिसे 'खिसिंग लेयर' कहा जाता है।

क्रोमोस्फ़ीयर का ऊपरी भाग मुख्यतः हाइड्रोजन और कैल्शियम में परमाणुओं से भरा है। इन परमाणुओं के द्वारा ही हम वर्णपट पर 'फ्रानहाफ़र' रेखाएँ प्राप्त करते हैं।

क्रोमोस्फ़ीयर में अत्यन्त गर्म अवस्था में हाइड्रोजन और कैल्शियम के परमाणु गैसीय बादलों के रूप में अधिक दबाव की अवस्था में इधर-उधर घूमते हैं।

3-कारोना-यह क्रोमोस्फ़ीयर के ऊपर अवस्थित है। इसे भी सूर्य ग्रहण के अवसर पर ही देखा जा सकता है। इसे सूर्य का मुकुट भी कहते हैं। सन् 1936 में पिकडू मिडी नामक स्थान पर स्थित वेधशाला में वर्नाडे लापट नामक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने बहुत ही सूक्ष्म यन्त्रों की सहायता से कारोना का बिम्ब प्राप्त किया। परीक्षणों से ज्ञात हुआ कि कारोना सबसे बाहरी वायुमण्डल है, जिसकी अन्तरिक्ष में कोई सीमा निश्चित नहीं है, इसका विस्तार लाखों मील में है। कारोना से मिले स्पेक्ट्रम से यह पता चला है कि प्रकाश जहाँ से चलता है उसका अधिकतम अंश फ़ोटोस्फ़ीयर से विकिरण होने के पश्चात् आगे बढ़ता है और उपर्युक्त वर्णपट पर प्राप्त रेखाएँ पृथ्वी पर के तमाम प्राप्त तत्त्वों में से किसी भी मिलती-जुलती नहीं हैं।

स्वीडन के यल्डेन नामक एक वैज्ञानिक ने सन् 1942 में यह पता लगाया था कि कारोने के अंत भाग में बहुत बड़ी तरंगदैर्ध्य की विद्युत चुम्बकीय तरंगें प्रसारित होती हैं। सूर्य का प्रकाश सफ़ेद दिखाई देता है, पर वास्तव में इसमें कई रंग होते हैं। इसमें लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, आसमानी और बैंगनी रंग होते हैं जो एक साथ मिल कर सफ़ेद दिखाई देते हैं। इसी वजह से हमारे प्राचीन ग्रंथों में बतलाया गया है कि सूर्य सात घोड़ों के रथ पर चलता है। ये सात अश्व सात रंग हैं।

सूर्य के धब्बे

खगोलशास्त्रियों ने बतलाया है कि जिस प्रकार चांद पर धब्बे दिखाई देते हैं उसी प्रकार सूर्य पर भी धब्बे हैं। इन धब्बों को सन् स्पोट कहते हैं। सर्वप्रथम 1510 में गैलीलियो ने अपनी दूरबीन से इन धब्बों को देखा था। अपने अध्ययन के बाद उसने यह निष्कर्ष निकाला कि सूर्य की सफ़ेद चमकती सतह पर छोटे-बड़े काले धब्बे हैं। सूर्य के इन धब्बों को सूर्य-कलंक भी कहा जाता है। इन धब्बों में भारी चुम्बकीय शक्ति होती है और समय-समय पर ये बनते और बिगड़ते रहते हैं। जब भी सूर्यग्रहण लगता है वैज्ञानिक इन धब्बों का अध्ययन कर विभिन्न प्रकार का नवीन ज्ञान प्राप्त करते हैं।