सैफ अली के ताजे एहद / जयप्रकाश चौकसे

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सैफ अली के ताजे एहद
प्रकाशन तिथि : 11 नवम्बर 2014


सैफ अली खान को भी फिल्म उद्योग में दो दशक हो गए हैं और इस बीच वे कई हादसों से गुजरे हैं और कुछ शिखर भी छुए हैं। उनका तो आरंभ ही एक हादसे से हुआ जब राहुल रवैल ने उन्हें कुछ दिन की शूटिंग के बाद अपनी फिल्म से अलग कर दिया। बहरहाल सैफ डरे रहे और उन्हें दर्शक स्वीकृति मिल गई। उन्होंने अपने मित्र दिनेश विजन के साथ फिल्म निर्माण प्रारंभ किया और इम्तियाज अली की 'लव आजकल' सफल भी रही। उन्हें दर्शक हल्की-फुल्की फिल्मों में पसंद करते हैं परंतु सलमान खान की फिल्मी दबंगई से प्रेरित उन्हें ख्याल आया कि एक भव्य एक्शन फिल्म बनाकर वे अपनी एक खास सतह से ऊपर उठे और 'एजेंट विनोद' में उन्होंने बहुत धन लगाया। फिल्म की असफलता से उभरने के लिए वे अपने घरू मैदान पर गए और उन्होंने 'कॉकटेल' बनाई। उनकी 'बुलेट राजा' का हश्र भी 'एजेंट विनोद' की तरह हुआ और साजिद खान की 'हमशकल्स' का अनुभव भी काफी दुखद रहा। बतौर निर्माता उन्होंने इम्तियाज अली के मशविरे पर अपनी पत्नी करीना की बुआ रीमा के बेटे अरमान जैन के साथ एक फिल्म बनाई और अरमान जैन का प्रारंभ ही बिगाड़ दिया। जिस दौर में सैफ खराब प्रारंभ से उभरे थे उस दौर से अलग है आज का दौर।

बहरहाल सैफ की प्राथमिकता अब यह है कि वह अपने आपको लंबे समय तक चुस्त-दुरुस्त बनाए रखे जिसके दो कारण संभव है। एक तो यह कि अभिनेता का शरीर ही उसकी दुकान है और भीतर रखे माल तो आज का ग्राहक देखता भी नहीं। वह आंख बंद करके ब्रैंड खरीदता है। बाजार की रोशनियों ने उसे चकाचौंध कर रखा है। यह भी संभव है कि अपने से कम वय की पत्नी की खातिर वे लंबी पारी खेलना चाहते हैं। उन्होंने शराब सिगरेट से लगभग तौबा कर ली है। सलमान खान भी कॉफी, सिगरेट ओर शराब छोड़ चुके हैं। दरअसल आज के सितारों का एकमात्र नशा सफलता है जिसके लिए फिटनेस आवश्यक है। बॉक्स ऑफिस के आंकड़े उन्हें मदहोश करते हैं। वह जमाना गया जब सितारे अपने कमाए धन का उपभोग करते थे। यह कितने आश्चर्य की बात है कि आज युवा वर्ग मस्ती मंत्र का जाप कर रहा है तो उनके प्रिय सितारे मस्ती से दूर अपना-अपना शरीर सूत रहे हैं, पतंग के मांजे की तरह। धरती नहीं, आकाश पतंग का विचरण क्षेत्र होता है। सैफ अली को चालीस पार होने पर यह शुभ विचार आया है कि उन्हें अपनी फिल्मों की पटकथा पर अपनी मां शर्मिला टैगोर की राय लेना चाहिए क्योंकि सत्यजीत रॉय से लेकर शक्ति सामंत तक की विविध फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया है। वे बंगाल के अभिजात्य वर्ग से आई हैं और भद्र समाज की जीवन शैली के साथ उन्होंने अपने पति मंसूर अली खान की नवाब विरासत का भी निर्वाह बखूबी किया है। शर्मिला टैगोर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उन्होंने अपने सोच को कभी खांचों में नहीं बंटने दिया और पारंपरिकता के निर्वाह के साथ आधुनिकता का भी वहन किया है। आधुनिकता का अर्थ बिकनी पहन कर 'इवनिंग इन पैरिस' करना नहीं वरन् अपने विचार भवन की सारी खिड़कियां खुला रखना है। तर्क को कभी नहीं तजना और चीजों को उनकी पृष्ठभूमि के साथ समझना ही आधुनिकता है। शर्मिला टैगोर इसी अर्थ में सदैव आधुनिका रही है।

दरअसल युवा वय में लोग माता-पिता का उतना सम्मान नहीं कर पाते जितने वे चालीस पार होने पर करते हैं क्योंकि तब तक उन्हें अनुभव का मूल्य समझ में जाता है। ऐसे भी युवा वय ही विद्रोह की आयु है और सब कुछ स्वीकार नहीं किया जा सकता। अस्वीकार करना युवा का अधिकार है। बहरहाल सैफ का अपनी मां से पटकथा पर सलाह लेना शुभ है। उन्होंने अनेक फिल्में की हैं और देश-विदेश की फिल्में देखी हैं। सिनेमा उनके रक्त में प्रवाहित है। अगर यही कदम सैफ ने पहले उठाया होता तो वे 'एजेंट विनोद' और 'हमशकल्स' इत्यादि के हादसों से बच जाते। देर आयद दुरुस्त आय। शाम को घर लौटे को भूला नहीं कहते। "सारी-सारी रात जागते रहना, घर का दरवाजा खुला रखना, जाने वाला जाने कब लौट आए।"