स्कूल की सीढ़ियों पर सजी महफिल / कोमल यादव

Gadya Kosh से
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हाथों में थमी डायरी, धीरे-धीरे चलती कलम और सुर में सुर मिलाते-गूंजते गाने माहौल की शुरुआत कर चुके थे। हर एक की जुंबा से निकलता गाना डायरी के कोहरे पन्नों का हिस्सा बनता जा रहा था।

क्लास की थकावट और पसीनों की मार ने सभी की हालत को सुस्त कर दिया था पर हर आती मंडली अपनी इस सुस्त हालत में चुस्त होती जा रही थी। कोई दीवार से टेक लगाए, कोई मस्ती से पैर पसारे तो कुछ घुटनों तक सलवार चढ़ाए, सामने की खिड़की से आती हवा का लुत्फ उठाने में मस्त था।

ठंडी-ठंडी हवा जैसे-जैसे बदन को सहलाने लगी, वैसे-वैसे शायरी का भूत सबके सिर चढ़ने लगा था। ‘वो मेरी जान है दिल का अरमान है, वो जी नहीं सकते मेरे बिना!’ दीवार से टेक लगाए बैठी कुसुम ने टशन के साथ कहा। सभी जोर-जोर से ताली बजाते हुए उसकी ओर देखने लगे। वह शायरी के लिए सबके बीच मशहूर है। हर कोई कभी न कभी अपनी फरमाइश रख ही देता है। वह सबके बीच इतनी खास बन चुकी है कि हर पीरियड पर सजती महफिल दिन में एक बार जरुर उसकी शायरी का हिस्सेदार बनती है।

आज भी सीढ़ी के उपर से लेकर नीचे तक बैठी सभी टोलियों की निगाहें और कान दोनों ही उसके होने लगे थे। सबकी आपसी बातचीत कुछ पल के लिए थम गई थी। उसने तेज़-तेज़ चलती हवा के लुत्फ को और हसीन बनाते हुए कहा, ‘कौन कहता है हवा फ्री की होती है! कौन कहता है हवा फ्री की होती है, कभी दस रुपये वाला चिप्स का पैकेट खरीदकर देखो, उसमें सात रुपये की हवा और तीन रुपये की चिप्स होती है।’ सब तालियां बजाते ‘वाह-वाह’ कहने लगे। वाहवाही का मज़ा अभी सबने लूटा ही था कि ‘पी.टी. मैडम आ गई, पी.टी मैडम आ गई’ कहते हुए हड़बड़ी में भागती लड़कियाँ अपनी क्लासों की ओर बढ़ने लगीं। उनके खौफ से सीढ़ी पर सजी महफिल पलभर में अपनी क्लासों की ओर फुरर्र हो गई।

वह जगह कुछ पलों के लिए खामोश हो गई जहाँ अब कुछ नहीं सिर्फ़ खिड़की से आती दीवारों से टकराती हवा का साया था। उसके खालीपन में भी सरसराहट का एक अहसास था। ऐसा मालूम पड़ रहा था मानो हवाएँ आपस में बतिया रही हों, जिन्हें अक्सर अकेलेपन का मौक़ा मिलता नहीं पर आज पहली दफा वह सुबह के समय खाली थी।

पीटी मैम की वजह से सभी बच्चे अपनी क्लासों में कैद हो चुके थे। बार-बार दरवाजे से अंदर झांकती आँखें उन्हीं के जाने की राह ताक रही थी। हर क्लास का दरवाजा मिनट-मिनट पर खुलता रहा।