स्त्री स्वर / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
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पति पत्नी घर में अकेले रहते हैं। बच्चे सब पढ़ाई और नौकरी के कारण दूर चले गए. वे बड़े जो हो गए. पति समाजसेवी हैं। मिलने वालों का आना-जाना घर में बना रहता है। चाय, पानी, घंटी, कुण्डी, फोन, बातें-बातें और बातें। दिन भर व्यस्तता। शाम तक पत्नी के पाँव जवाब दे चुके होते। हाल बेहाल हो जाता। ज्यों ही घर की घंटी बजती, पत्नी सोचे पति दरवाजा खोले। पति सोचे पत्नी खोले। यह काम तो उसी का है। कभी-कभी नौबत परस्पर तकरार की भी आ जाती।

एक रोज घर की घंटी खराब हो गयी। पत्नी को थोड़ा साँस आया। कुछ दिन बाद नई घंटी लगी। यह घंटी तो उसके जीवन में चौगुने आनन्द का कारण साबित हुयी। घंटी के बजते ही पति महाशय मुस्कराते हुए दरवाजा खोलने चले जाते हैं। यह बोलते हुए कि-यस-यस, आई एम ओपनिंग द डोर।

नई घंटी का स्विच दबाओ तो एक विनम्र और मुलायम-सा स्वर उभरता है-'प्लीज ओपन द डोर'

और यह स्त्री स्वर है।