स्थिर दीवार और बदलते हुए कैलेंडर / जयप्रकाश चौकसे

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स्थिर दीवार और बदलते हुए कैलेंडर
प्रकाशन तिथि : 05 जनवरी 2013


जनवरी में कैलेंडर बदले जाते हैं। अनेक लोग नव-वर्ष के संकल्प करते हैं। कुछ लोग धूम्रपान या शराब छोडऩे की शपथ लेते हैं, परंतु यह भीष्म प्रतिज्ञा की तरह नहीं है। भीष्म की प्रतिज्ञा से ही कहां उनका परिवार बच पाया, वरन शायद उनके सिंहासन से दूर रहने के कारण ही परिवार को भीषण युद्ध करना पड़ा। कभी-कभी नेक इरादों से भी गलत बातें घट जाती हैं। जैसे कैलेंडर बदलने पर भी दीवार कायम रहती है, वैसे ही समय बदलने पर भी हमारे मन की दीवारों पर अंधविश्वास के जाले कायम रहते हैं। छत पर पूर्वग्रह के चमगादड़ लटके रहते हैं। स्त्रियों के प्रति पुरुष का दृष्टिकोण भी नहीं बदलता। दुनियाभर की मोमबत्तियां चौराहों पर जलती रहेंगी, परंतु इनके हृदय का पत्थर मोम की तरह नहीं है। जब रंगीन छपाई प्रारंभ हुई, तब देवी-देवताओं की तस्वीर वाले कैलेंडर छपना प्रारंभ हुए। भारत में किसी भी विधा की लोकप्रियता के लिए धार्मिक आख्यानों का सहारा लिया जाता है। सिनेमा के पहले दशक में बनीं सारी फिल्मों का आधार भी धार्मिक आख्यान ही रहे हैं। मुलगांवकर के आकर्षक आख्यान आधारित कैलेंडर बहुत लोकप्रिय हुए थे। मुलगांवकर द्वारा प्रस्तुत राम में सीता से अधिक कमनीयता होती थी और कैलेंडर बाजार में प्रच्छन्न सेक्स का अपना आकर्षण होता था और सदियों से जलती कामेच्छा को हवा मिलती थी।

कैलेंडर अनेक नाप और आकार में आते हैं। प्रभात प्रकाशन, दिल्ली से एक अत्यंत छोटा-सा कैलेंडर भी आता है, जिसे बच्चों की पढ़ाई की मेज पर लगाने से वे स्वयं को बड़ा समझने लगते हैं। बहरहाल, इस वर्ष डॉ. विजयपत सिंघानिया ने अपनी संस्था जेके ट्रस्ट ग्राम विकास योजना के लिए एक अद्भुत टेबल कैलेंडर का निर्माण किया है, जिसमें बारह वैज्ञानिकों की श्याम-श्वेत तस्वीरें हैं और उनके द्वारा ईजाद किए गए यंत्र की छोटी-सी आकृति भी है, उनके शोध की संक्षिप्त जानकारी भी है। जैसे थॉमस अल्वा एडिसन की तस्वीर के साथ यह जानकारी है कि १८७७ में फोनोग्राफ के आविष्कार के साथ ध्वनि का पुन: मुद्रण संभव हुआ। थॉमस एडिसन फोटो में अपने आविष्कार के साथ दिखाई देते हैं। एक पृष्ठ पर पहले कंप्यूटर का चित्र है, जिसे अमेरिका के रक्षा विभाग के अनुदान से १९४० में बनाया गया था। पहला कंप्यूटर तीस टन वजनी था, जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फीट और लंबाई १०० फीट तथा गहराई तीन फीट थी। आज तो ऐसे कंप्यूटर बनने लगे हैं, जिन्हें आप अपनी जेब में रखकर कहीं भी ले जा सकते हैं।

अमेरिका का शहर डेट्रॉयट मोटर कार उद्योग की राजधानी रहा है और शहर की सड़कों पर बढ़ती हुई कारों की संख्या से यातायात में असुविधा होती थी। पुलिस अफसर विलियम पोट्स की पहल से ट्रैफिक लाइट का निर्माण हुआ। चौराहों पर लाल, हरी और पीली लाइट्स ने कितनी बड़ी सुविधा उपलब्ध कराई। अमेरिका के राइट बंधुओं ने अपने पहले विमान से सत्रह दिसंबर १९०३ को उड़ान भरी। मनुष्य की आकाश और अंतरिक्ष की विजय का शंखनाद हुआ। ज्ञातव्य है कि डॉ. विजयपत सिंघानिया ने इस क्षेत्र में ओलिंपिक के समकक्ष अंतरराष्ट्रीय हवाई संस्थान से कई मैडल जीते हैं। उन्होंने एक सीट वाला छोटा-सा विमान लंदन से भारत तक सबसे कम समय में लाने का रिकॉर्ड बनाया। साथ ही गरम हवा के गुब्बारे से ७८ हजार फीट की ऊंचाई तक पहुंचकर भी रिकॉर्ड बनाया था। इस क्षेत्र में डॉ. विजयपथ जांबाज खिलाड़ी रहे हैं। इस विषय पर उनकी किताब 'एन एंजेल इन कॉकपिट' अत्यंत पठनीय है। चाल्र्स जेवियर थॉमस डी कोलमर नामक फ्रेंच व्यक्ति ने पहले केलकुलेटर बनाया था, जिसका आकार हारमोनियम की तरह था और आज उसके वंशज को हथेली में छुपाया जा सकता है। आविष्कारों को उनके प्रथम मूल रूप में देखकर हमें खूब आश्चर्य होता है। १९३६ में बने डुगारे के पहले कैमरे को एक दर्जन लोग उठाए हैं। उसका आकार और वजन अत्यधिक बड़ा था।

इस टेबल कैलेंडर में हृदय को छूने वाली बात यह है कि प्रथम पृष्ठ पर डॉ. विजयपत ने अपने आमुख में एक वाक्य उद्धृत किया है, जिसका आशय यह है कि बिना समर्पण और भावना के न तो अंधकार प्रकाश में रूपांतरित हो सकता है और न ही उदासीनता तथा संवेदनहीनता एक सक्रिय सघन आंदोलन का रूप ले सकती है। मुद्दा है संवेदनशील होना। हृदयहीनता किसी क्रांति को सार्थकता नहीं दे सकती। वर्तमान कालखंड में संवेदनहीनता रिश्तों को खोखला कर रही है। डॉ. विजयपथ का ट्रस्ट दुधारू जानवरों की बेहतर प्रजाति के कार्यक्रम में १५ वर्षों से सक्रिय है और अनेक गांवों में हजारों ग्रामवासियों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आया है। डॉ. वी. कुरियन की दुग्ध क्रांति का ही दूसरा पहलू यह कार्य है। आज आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, परंतुकुपोषण से होने वाली मृत्यु संख्या अत्यंत दुखदायी है। इस ट्रस्ट ने सात प्रांतों में लगभग ४००० केंद्र स्थापित किए हैं - इंटीग्रेटेड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट केंद्र।इस शिक्षाप्रद कैलेंडर को शिखा शर्मा अहलूवालिया ने बनाया है। बहरहाल, आज समाज में परिवर्तन के प्रयास अनेक जगह हो रहे हैं और सरकार को विकास का एकमात्र केंद्र नहीं माना जाना चाहिए। संवेदना के अभाव से अंधेरा भयावह होता है और उजाले में भी पीलापन होता है। संवेदना से जन्मे आंदोलन ही अवाम के हृदय को छूते हैं।