स्पाय क्रॉनिकल्स और 'एक था टाइगर' / जयप्रकाश चौकसे

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स्पाय क्रॉनिकल्स और 'एक था टाइगर'
प्रकाशन तिथि : 09 जून 2018


सलमान खान और कटरीना कैफ द्वारा अभिनीत फिल्मकार कबीर की फिल्म 'एक था टाइगर' में एक भारतीय गुप्तचर और पाकिस्तानी गुप्तचर मिलकर एक आतंकवादी दल का सफाया कर देते हैं और इस प्रक्रिया में उनके बीच प्रेम हो जाता है। वे दोनों एक दूसरे देश में जा बसते हैं क्योंकि उनके अपने देशों में उनके लिए कोई स्थान सुरक्षित नहीं है। इस फिल्म का भाग दो भी बना है। बहरहाल प्रीतीश नंदी ने एक किताब की समीक्षा की है। यह किताब दो गुप्तचरों की आपसी बातचीत का ब्योरा है जो उन्होंने तीसरे लेखक आदित्य सिन्हा से तीन शहरों में कुछ अंतराल के बाद दिया है। एक लेखक हैं ए.एस. दुलात जो कभी 'रॉ' नामक संस्था के लिए काम करते थे और दूसरे हैं असद दुर्रानी जो पाकिस्तान के 'आई.एस.आई.' एजेन्ट रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए दो पड़ोसी देशों के नेताओं ने सरहदों को सुलगते हुए रखा है और बातचीत से जो मसले हल हो सकते हैं उन्हें जानकर अनदेखा किया है। यह मामला अन्य आपस में भिड़ते रहने वाले मुल्कों से अलग इसलिए है कि इनकी साझा संस्कृति है। हद तो यह है कि उन्होंने मुगल बादशाहों को भी आपस में बांट लिया है। हिन्दुस्तान को अकबर दिया गया है और पाकिस्तान ने औरंगजेब को अपना लिया है। अनारकली लापता है।

दरअसल दोनों पड़ोसी देश जानते हैं कि असल खतरा चीन से है। चीन और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर एक जंग जारी है जिसका प्रभाव यह हो सकता है कि भारत में महंगाई बढ़ जाए परन्तु अवाम को महंगाई उस समय खटकती है जब दल विशेष की हुकूमत होती है। बाजार से सारे उतार-चढ़ाव भी अब चुनाव विशेषज्ञ ही तय करता है। चुनाव अघोषित राष्ट्रीय उत्सव बन चुका है। इस बात को पूरी तरह जानकर मनोहर श्याम जोशी ने व्यंग्य किया था कि हमें टेलीविजन पर काल्पनिक चुनाव के नतीजों को दिखाना चाहिए।

'एक था टाइगर' एक काल्पनिक फिल्म थी परन्तु यथार्थ जीवन में दो गुप्तचरों के वार्तालाप पर किताब जारी हुई है। इनके वार्तालाप से यह आशा जागती है कि आपस में अफवाहें फैलाने और सरहद पर दोनों ओर से मरने वालों के झूठे आंकड़े जाहिर करने का तमाशा बंद कर दिया जाना चाहिए। इन हालात में आम कश्मीरी व्यक्ति बहुत पीड़ित है। इस समस्या को 'शौर्य' नामक फिल्म में अत्यंत प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत किया था। कोई आश्चर्य नहीं कि टेलीविजन पर 'शौर्य' नहीं दिखाई जाती। नंदिता दास की फिल्म 'मंटो' का कान समारोह में प्रदर्शन हुआ है परन्तु भारत का अवाम जाने कब इसे देख पाएगा। फिल्मों की हत्या भी होती है और कभी-कभी वे आत्महत्या भी कर लेती हैं। जुर्म के दायरे फैलते ही जा रहे हैं। याद आता है बादल सरकार का नाटक 'बाकी इतिहास'। पत्रकार पति और लेखिका पत्नी पड़ोस में हुए एक आत्महत्या के कारणों पर अपना अनुमान लगाते हैं परन्तु नाटक के तीसरे अंक में आत्महत्या कर चुका पात्र प्रगट होकर दोनों से पूछता है कि वे आत्महत्या क्यों नहीं करते? वे क्यों अपने सारहीन जीवन को ढो रहे हैं? इस तरह के अर्थहीन जीवन बहुत से लोग जी रहे हैं परन्तु विपरीत हालात में भी जीवित रहना जरूरी है। जाने कब कहां एक किरण आकर सब जगमग कर दे।

दशकों पूर्व एक किताब प्रकाशित हुई थी 'द इकोनॉमिक हिटमैन'। अमेरिका की सरकार छात्रों पर नजर रखती है। प्रतिभावान परन्तु नैराश्य में डूबे छात्रों को चुनती है। उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है और आर्थिक रूप से तीसरी दुनिया के देशों में अकूत धन देकर भेजा जाता है। वे उन देशों के नेताओं से दोस्ती करते हैं, उन्हें धन देते हैं और अपने देश के पक्ष में जाने वाले फैसले उनसे करवाते हैं। हमें कल्पना भी नहीं है कि हम कितने बेबस हैं। 'जंजीरों की लम्बाई तक है हमारा सारा सैर सपाटा, यह जीवन शोर भरा सन्नाटा'। मरहूम निदा फाज़ली की रुह को चैन आए - ऐसी प्रार्थना के साथ उपरोक्त शेर उद्दरित किया है। प्रीतीश नंदी ने जिस किताब के बारे में लिखा है, उसका नाम है 'द स्पाय क्रॉनिकल्स'।

बहरहाल पाकिस्तान के अवाम को भारतीय फिल्में बहुत पसंद हैं। दुबई से माल तस्करी किया जाता है। टेक्नोलॉजी पर सबका समान अधिकार है। चोर पुलिस दोनों ही एक सा लाभ उठा सकते हैं। पाकिस्तान में बनाए गए सीरियल, जिन्हें वे ड्रामा कहते हैं, भारत में यूट्यूब पर देखे जा रहे हैं। उनका लेखन बहुत प्रभावोत्पादक है। आठवें दशक में भी उनके सीरियल लोकप्रिय थे। यहां तक कि पाकिस्तान की लेखिका हसीना मोइन को राजकपूर ने हिना लिखने के लिए आमंत्रित भी किया था। पाकिस्तान की ही जेबा बख्तियार को नायिका की भूमिका दी गई। राजकपूर के सहायक खालिद समी की फिल्म 'नरगिस' में भी जेबा ने अभिनय किया था जो अब कानूनी दांव पेंच से मुक्त हो गई और उसके सारे अधिकार खालिद समी के पास हैं। जयपुर के कुछ व्यापारियों का धन भी इस फिल्म में लगा है।

पाकिस्तान में सिनेमाघरों की संख्या अत्यंत कम है। इसलिए फिल्मों के बजट सीमित हैं परन्तु टेलीविजन पर प्रसारित कार्यक्रम के बजट उनकी फिल्मों से अधिक हैं। अगर संकीर्ण राजनीति सरहदों को सुलगता रखना बंद कर दे और सम्बंध सामान्य हो जाएं तो लेखकों और कलाकारों का आना-जाना और काम करना शुरू हो जाए। पाकिस्तान में कई लोग लता मंगेशकर के गीत सुनकर टेसुआ बहाते हैं तो हमें नूरजहां की याद आती है। दोनों देशों के पास आणविक अस्त्र हैं, अत: युद्ध संभव ही नहीं है परन्तु 'हवा' अफवाह कायम रखी जाती है।```