स्मिता पाटिल-बब्बर की पावन स्मृति / जयप्रकाश चौकसे

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स्मिता पाटिल-बब्बर की पावन स्मृति
प्रकाशन तिथि :17 अक्तूबर 2015


अगर स्मिता पाटिल जीवित होतीं तो वे आज साठ वर्ष की होतीं और उनके जन्मदिन की दावत उनके पति राज बब्बर आयोजित करते। इस दावत में श्याम बेनेगल, सई परांजपे, गोविंद निहलानी, रवींद्र पीपट इत्यादि खूब नाचते-गाते। उनका पुत्र भी नाचता और राज बब्बर की पहली पत्नी के बच्चे भी नाचते। इस दावत में शबाना, जावेद, दीप्ति नवल और अमिताभ बच्चन भी शामिल होते। काश! वे जीवित होतीं। उनकी आकस्मिक मृत्यु भी उस दिन हुई जब उनके पति राज बब्बर ने स्टेडियम में 6 फिल्म संगीतकारों का कार्यक्रम फिल्म उद्योग के कल्याण के लिए आयोजित किया था और उसमें राजकपूर, दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र इत्यादि सभी सितारे मौजूद थे। मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में वह अनोखा कार्यक्रम था और आधी रात राज बब्बर को सूचना मिली कि उनकी पत्नी की तबियत यकायक खराब हो गई है।

ज्ञातव्य है कि दो दिन पूर्व ही उन्होंने पुत्र को जन्म दिया था। उस रात एक ओर समस्त फिल्म उद्योग का जश्न चल रहा था, दूसरी ओर दबे पांव मौत स्मिता पाटिल के बिस्तर के पास खड़ी हो गई और स्मिता पाटिल-बब्बर ने कभी किसी अनिमंत्रित अतिथि को खाली हाथ नहीं भेजा था। उसने मौत की झोली भी भर दी, आसमान से एक तारा टूटा और स्मिता के रूप में दूसरा तारा उपस्थित हो गया। स्मिता पाटिल तो किसी शापित देवता के कांपते हाथ में पकड़ी पूजा की थाली से धरती पर गिरा एक फूल था और मात्र इकतीस की वय में उस देवता का श्राप पूरा हुआ और वह लौट गई।

स्मिता पाटिल ने अपना कॅरियर दूरदर्शन में न्यूज रीडर की तरह प्रारंभ किया था और फारुख शेख के साथ 'मेरे साथ चल' नामक फिल्म की और उस समय कौन अनुमान लगा सकता था कि दोनों ही चले जाएंगे। श्याम बेनेगल की 'मंडी', 'मंथन', और 'भूमिका' में स्मिता ने कमाल का अभिनय किया था। स्मिता पाटिल ने एक ओर 'चक्र' जैसी सामाजिक सोद‌्देश्यता की फिल्म की, तो दूसरी ओर अमिताभ बच्चन के साथ प्रकाश मेहरा की 'नमक हलाल' भी की। दरअसल, उसने मसाला फिल्में इसलिए अभिनीत की कि उनमें उनकी लोकप्रियता उनकी कम बजट की सामाजिक सोद‌्देश्यता की फिल्मों के चलने में मदद करेंगी। राज बब्बर ने उनकी असीमित अभिनय क्षमता के प्रदर्शन के लिए रवींद्र पीपट के निर्देशन में 'वारिस' फिल्म का निर्माण किया और स्वयं उस फिल्म में सहकलाकार की भूमिका अभिनीत की। बतौर निर्माता वे नायक की भूमिका भी कर सकते थे, परंतु वे 'वारिस' को स्मिता की 'मदर इंडिया' की तरह बनाना चाहते थे। उस फिल्म में अपनी पुश्तैनी खेती की जमीन को बचाने के लिए स्मिता जमीनें हड़पने वाले अपने से ताकतवर व्यक्ति से टकरा जाती हैं। यह भूमिका अमरीश पुरी ने की थी। खेती की जमीनों को हड़पने के षड्यंत्र सदियों से रचे जा रहे हैं, परंतु हाल ही में उन्हें कानूनी रूप से अधिग्रहण का कानून संसद में पास ही नहीं हो पाया। 'वारिस' एक तरह से स्मिता पाटिल की अभिनय क्षमता और सांस्कृतिक मूल्यों का उनका वसीयतनामा है, जिसे जमीन और सिनेमा से प्यार करने वाले बार-बार पढ़ सकते हैं, क्योंकि वे ही महान स्मिता के वारिस हैं। मुंबई में आज स्मिता की स्मृति में दो दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा गया है। उनकी बचपन की मित्र ओडिसी नृत्य में प्रवीण झेलम परांजपे के नृत्य संस्थान का नाम भी 'स्मितालय' रखा गया है। जब्बार पटेल की फिल्म 'जैत रे जैत' में वे नायिका थीं और आजकल जब्बार पटेल लोनी के राजबाग में फिल्म प्रशिक्षण संस्थान चला रहे हैं और इसमें गौतम घोष इत्यादि असली पारखी लोग शामिल हैं तथा यह संस्थान राजकपूर की स्मृति में बनाया गया है। एक बैच अभी प्रशिक्षित हो रही है, दूसरी बैच जनवरी 2016 से शुरू होगी। मुझे विश्वास है आज जब्बार पटेल अपने छात्रों को स्मिता के साथ अपने काम के अनुभव अवश्य सुनाएंगे। स्मिता पाटिल महान कलाकार होने के साथ बहुत ही महान व्यक्ति थीं और उनका जन्म तथा लालन-पालन एक सुसंस्कृत महाराष्ट्रियन परिवार में हुआ था, जो मूल्य आधारित राजनीति भी करता था। यहतो तय है कि अगर स्मिता पाटिल जीवित होतीं, तो वे अपने सारे राष्ट्रीय पुरस्कार सम्मान लौटा देतीं।