स्वतंत्रता दिवस बनाम छुट्टी का दिन / रश्मि

Gadya Kosh से
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गाँधी जी ने स्वर्ग में बैठे-बैठे सोचा, "कल स्वतंत्रता दिवस है। ज़रा अपने देश घूम कर आऊं।" पहचाने न जा सकें सो रिपोर्टर का भेष धर लिया। यही भेष उन्हें सबसे सहज लगा क्योंकि इन्ही के कही भी आने जाने पर कोई रोक टोक नहीं है। वे एक महानगर के ऑफिस से बाहर निकलते पुरुष के संग लग लिए। कुछ ही दूरी पर उसकी पत्नी भी अपने ऑफिस से बहार निकलती मिल गयी।

रिपोर्टर बने गाँधी जी ने पूछा - "कल स्वतंत्रता-दिवस है, आप अपने देश के बारे में क्या सोचते है? आज हमारे देश को आज़ाद हुए इतने साल हो गए है। इस आज़ादी के लिए कितने ही देश-भक्त शहीद हो गए थे, उनके बारे में आप क्या कहेंगे?" वो व्यक्ति बोला - "छोडो यार, काहे की आज़ादी। सारा दिन ऑफिस में जुटे रहो; घर पर भी चैन नहीं मिलता। बड़ी मुश्किल से तो' छुट्टी' मिली है। खासकर कल तो सारे सरकारी दफ्तर भी बंद रहेंगे। घर पर आराम से रहेंगे, टीवी पर कोई नई फिल्म देखेंगे।"

बीच में उसकी पत्नी बोली- "अरे भाई साहब, कल तक हम स्कूलों में शहीदों की कहानियां पढ़ते थे; आज हम खुद रोज़ दफ्तर में शहीद होते है। शुक्र है कल तो 'छुट्टी का दिन' है।'

गाँधी जी सोचने लगे, "बेकार ही भेष बदला। यहाँ तो अब हमें कोई पहचानता ही नहीं है।"