स्वप्नभंग / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

Gadya Kosh से
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ऊ भादो के रात छेलै, एक जोरदार ठनका ठनकलोॅ छेलै, आरो बिजली के चमक चारो दिस फैली गेलोॅ छेलै, ऊ ठनका आरो हौ बिजली के बीच जनम लेला के कारण पुतली के नाम बदली केॅ बिजली होय गेलोॅ छेलै।

बिजली जबेॅ पाँच छोॅ साल के होलै, तेॅ अपनोॅ बाबू के साथ गाँव के सभाओ में जावेॅ लागलै। अपनोॅ जोड़ी के सखी सिनी के बीचोॅ मेॅ तेॅ खेलबे करवे करै।

ऊ समय देश के आजादी वास्तेॅ गाँव मेॅ खूब सभा-मिटिंग होतेॅ रहै। बिजली के बाबू देवराजी पक्का कांग्रेसी छेलै। बेटी केॅ मानवोॅ करै छेलै होने। जहाँ कहीं जाय, बिजली साथे लगी जाय। एकरोॅ नतीजा ई भेलै कि बिजलियो के खादी के फ्राक सिलाय देलोॅ गेलै। पहिले तेॅ हेनोॅ फ्रॉक ओकरोॅ देहोॅ मेॅ काँटे रं गड़ै, मजकि धीरे-धीरे ऊ एकरोॅ अभ्यस्त होय गेलै।

आपने सेॅ तेॅ कपड़ा खींचना नै छेलै, घरोॅ में जेकरा खींचना छेलै, वै जानेॅ। एक दिन वै देवराज बाबू सेॅ पूछलकै, "बाबूजी खादी के कपड़ा पहनला सेॅ आखिर की फायदा छै?" यै पर हुनी कहलेॅ छेलै, "देख बेटी, ओत्तेॅ बात तेॅ तोहें समझेॅ नै पारवौ, मतरकि एक बात तोहें जानें कि खादी के कपड़ा अपनोॅ गाँव, अपनोॅ देश मेॅ बनै छै, आरो हौ जे शहर के सरकारी बाबू साहब सब आवै छै, ओकरोॅ देहोॅ पर जे पोशाक होय छै, ऊ विदेशोॅ सेॅ आवै छै, तेॅ यहाँ ऐतेॅ-एत्तेॅ ओकरोॅ दामोॅ तीन-चार गुणा बढ़ी जाय छै। मानी ला, जों खादी के कपड़ा एक पैसा मेॅ बनतै तेॅ विदेशी कपड़ा सोची ला कत्तेॅ में बनतै। आरो हम्मेॅ जो एत्तेॅ पैसा कपड़ा पर खरच नै करी केॅ खाय पीयै, चौका चार आरो गाँव के कल्याण पीछू खरचा करै छियै, तेॅ यही नी भला।"

आरो देवराज बाबू के बातोॅ के असर बिजली पर होने पड़लोॅ छेलै कि मैट्रिक पास करला के बादो खादिये के साड़ी पिन्हलेॅ रहली। यहाँ तक कि जोॅन दिन एकरोॅ हाथ पीरोॅ होय रहलोॅ छेलै, ओकरोॅ एक दिन पहिलौं वै खदिये के साड़ी पिन्हलेॅ छेलै।

ई बात केॅ बितलोॅ आय तीस साल होय गेलोॅ छै। बिजली आय दू बच्चा के माय छै, पति यशोधर बाबू हाई इस्कूल के बड़ा बाबू छेलै। देवराज बाबू जखनी बिजली के हाथ पीरोॅ करै लेॅ छेलै, तखनी एत्तेॅ महगी नै छेले। हर चीजोॅ के दाम आकाश पर चढ़लोॅ नै छेलै। आजकोॅ बाते अलग छै। यशोधर बाबू जे कुछ कमाय केॅ लानै छै, वै में सौसे घरोॅ के खरची चलैवोॅ एकदम मुश्किल होय जाय छै। एकरा पर दू-दू बच्चा के पढ़ाय।

बिजली कै दाफी यशोधर बाबू सेॅ कहलेॅ छेलै कि दोनो बच्चा के नाम प्राइवेट इस्कूली से कटवाय केॅ सरकारी इस्कूलोॅ मेॅ लिखवाय दौ, मतरकि यशोधर बाबू यही कही केॅ टाली देलेॅ छेले कि जबेॅ नाम लिखैय्ये देलेॅ छियै, तेॅ आबेॅ कटवैने की। होनौ केॅ सरकारी इस्कूली मेॅ बच्चा केॅ डालिये केॅ की होतै, मैट्रिक पास करी जैतै आरो जानकारी दुसरियो पास के नै होतै। अंग्रेज़ी में पैसे नी ज़्यादा लागै छै, बच्चा सिनी के जिनगी तेॅ बनी जैतै। थोड़ोॅ पहनावा-ओढ़ावा मेॅ कमी करी लेवै, आरो की। "

आपनोॅ पति के बात सुनी केॅ बिजली मुस्कराय पड़ली छेलै। आरो दुपहर केॅ एकान्ती मेॅ सोचलेॅ छेलै, "ठिक्के तेॅ हुनी कहै छै, हमरै सिनी अपनोॅ पहनावा-ओढ़ावा मेॅ थोड़ो कमी करी लौं। कम सेॅ कम दोनो बच्चा के तेॅ जिनगी बनी जैतै।" आरो वै तखनिये निर्णय लेने छेलै, "अबकी दशहरा मेॅ वैं विदेशी सूतोॅ के कपड़ा नै खादी के साड़ी लेतै, जों हुनी चाहतै, तेॅ हम्मेॅ रोकवौ नै। है पाँच सौ के एक साड़ी, कत्तो महगोॅ होलोॅ होतै तेॅ सौ टाका सेॅ बेसी तेॅ नहिये नी होतै।"

ई ख्याल ऐतै बिजली के मोॅन सचमुचे मेॅ बिजली नाँखी चमकी उठलै। ओकरा हठाते ऊ दिन के ख्याल आवी गेलै, जबेॅ देवराज बाबू थान भरी खादी के कपड़ा लै आनै, जेकरा में हुनकोॅ कुर्त्ता-पैजामा गंजी ही नै निकलै, बलुक माय के साड़ी छोड़ी केॅ घोॅर भरी के पहनावा-ओढ़ावा निकली आवै। माय पक्की रंग मंगाय के हमरोॅ आरो सोनू भैया के फ्राक कमीज रंगाय दै, आरो फेनू अघाय केॅ हमरा सिनी पिन्हते रहियै। फाटै, तेॅ फाटै के कुछ दुख नै हुऐ. फेनू नया आवी जाय। कैन्हेंनी पुरानोॅ दिन के सुख खींची आनलोॅ जाय।

"की बात छै, आय तोरोॅ चेहरा पर कुछ बेसिये चमक देखै छियौं।" यशोधर बाबू के नजर बिजली पर पड़लै, तेॅ पूछी बैठलै।

"बुझी ला कि खजाना के पता मिली गेलोॅ छै।" बिजली मुस्कैतेॅ हुएॅ जबाब देलकै।

"कन्नेॅ। ऐंगन में कि भुसखारी मेॅ?" यशोधर बाबू बिजली के बातोॅ केॅ मजाक बुझतेॅ हुएॅ कहलकै।

"तोरा मजाक बुझाय छौं, हम्मेॅ एकदम सच-सच बताय रहलोॅ छियौं।"

"हम्मू मजाकोॅ मेॅ नै पूछै छियौं कि खजाना कन्नेॅ गड़लोॅ छौ, बतावोॅ तेॅ खोदै मेॅ मदद करवौं।" यशोधर बाबू फेनू मुस्कैतै कहलकै।

ई दाफी बिजली मुस्कैतेॅ पर गंभीर होतेॅ कहलकै, "धन गड़लोॅ रहेॅ नै रहेॅ घर मेॅ ऐतेॅ धन बहेॅ नै, एकरोॅ रासता हममेॅ खोजी लेलेॅ छियै।"

"ऊ केना केॅ?" बिजली के बात सुनतेॅ यशोधर बाबू भी गंभीर होय उठलोॅ छेलै।

"जानै लेॅ चाहै छौ।"

"एकदम।"

"तेॅ सुनी ला। अब की दशहरा मेॅ तांत, अरगण्डी-सी फोन, कोटा के साड़ी नै ऐतै, खादी के साड़ी ऐतै, आरो तोरो है टेरीकोट के कपड़ा के बदला खादिये के कपड़ा ऐतै, जेकरा सेॅ कमीज पजामा बनतै। तोहें धोबी सेॅ धुलाय-ओलाय के चिन्ता नै करोॅ। घरे मेॅ साफ होथै। तोरा मालूम छौ, खादी के कपड़ा लेला सेॅ हमरा सिनी कत्तेॅ टाका के बचाव करी लेवै। कम-से-कम पिंकी आरो सोनू के ट्यूशन फीस तेॅ ज़रूरे निकली ऐतै, दुए महीना के सही। कुच्छु तेॅ बचाव होतै।"

यशोधर बाबू बिजली के उत्साह आरो खुशी देखतै रही गेलै। कुछ बोलेॅ नै पारलै।

"केन्होॅ विचार छै।" बिजली रुकते हुएॅ पूछलकै।

"सोचै तेॅ एकदम ठीक छौ।"

"तेॅ अबकी यहेॅ होतै। अबकी दशहरा के कपड़ा तोहें नै, हम्मेॅ खरीदवै। तोहें वेतन लानी केॅ हमरोॅ हाथोॅ मेॅ दै दियौ।"

"ई तोहें नहिये बोलतियौ, तभियो हम्मेॅ यहा करतियै। तेॅ, तय होलै, हमरा सिनी केॅ तरसू खादी भण्डार चलना छै।"

"एकदम ठीक।"

" तेॅ, चलोॅ बात पक्की। आय एक तारीख छेकै, वेतन तेॅ अइये मिली जैतै, ई कहतेॅ-कहतेॅ यशोधर बाबू ऐंगनोॅ होतेॅ हुए दुआरी पर चल्लोॅ ऐलै, फेनू वहीं से टमटम पकड़ै लेॅ गली मेॅ निकली गेलै।

बाहर निकलथैं हुनकोॅ ठोरोॅ पर एक विचित्रा किस्म के अबुझ हँसी फैली गेलोॅ छेलै।

ऊ दिन यशोधर बाबू सबेरगरे लौटी ऐलोॅ छेलै, घोॅर ऐथैं हुनी वेतन बिजली के हाथोॅ मेॅ थमैतेॅ कहलेॅ छेलै, "कलको इन्तजार नै करना छै, अइये खादी भण्डार चलोॅ। जों कल कपड़ा नहिये मिलेॅ। परब त्यौहार मेॅ तेॅ बिक्री बढ़िये जाय छै।"

"ठिक्के कहै छोॅ।" आरो बिजली जल्दिये पिन्ही-ओढ़ी केॅ हुनको साथ निकली पड़लै।

यशोधर बाबू देखलकै, खादी भण्डार के द्वार पर गोड़ रखथैं बिजली के चेहरा बिजली के फूल नाँखी खिली गेलोॅ छेलै। हुनी मने मन कहलकै, हे प्रभु बिजली के ई खुशी केन्हौ केॅ खतम नै हुएॅ। "

काउण्टर पर पहुँची केॅ बिजली पहलेॅ कमीज पजामा के कपड़ा निकालै लेॅ कहलकै, मतरकि यशोधर बाबू काउण्टर के आदमी केॅ रोकतेॅ कहलकै, "पहिले साड़ी दिखाबोॅ फेनू कुर्त्ता-पजामा के."

देखथैं-देखथैं बिजली के सामना में खादी के साड़ी के ढेर लगी गेलै। किसिम-किसिम के साड़ी के ढेर। वै में बिजली अपना लेॅ दू साड़ी चुनलकै, बाकी केॅ हाथोॅ सेॅ हटैतेॅ कहलकै, "ई दोनों के की कीमत होतै।"

काउण्टर के आदमी हटैलोॅ गेलोॅ साड़ी केॅ एक दिश ठेलतेॅ ऊ दोनो साड़ी के दाम अलग-अलग बतैतेॅ कहलकै, "ई साड़ी के दाम पाँच सौ रुपया छै, आरो है साड़ी छोॅ सौ।"

दाम सुनथै, बिजली के चेहरा पर सबटा खुशी कपूर के गंध नाँखी उड़ी गेलै। वैं एक दाफी यशोधर बाबू के देखलकै, फेनू काउण्टर पर खड़ा आदमी केॅ। काउण्टर वाला आदमी बातोॅ केॅ समझतेॅ हुए कहलकै, बहिनजी ई तेॅ गांधी जयन्ती चली रहलोॅ छै, यही सेॅ छूट पर एत्तेॅ सस्ता छौ। दस राजोॅ के बाद एकरे दाम बढ़ी जैतै। "

"दाम के बात नै छै, हमरासिनी घूमी केॅ आवै छियै, तबेॅ लेवै।" बिजली बातोॅ केॅ छुपैतेॅ हुएॅ कहलकै, आरो यशोधर बाबू के साथ बाहर निकली ऐलै।

बाहर आवी केॅ फेनू यशोधर बाबू के देखलकै, तेॅ हुनी कहलकै, "सोनू के माय तोरा की बुझाय छौं कि अभियो हम्मेॅ गुलामे भारत में रही रहलोॅ छियै। भारत आजाद होय चुकलोॅ छै, आरो एकरोॅ साथ सब कुछ आजाद नै। कोय चीज पर पाबन्दी नै, नै कीमत पर नै मुँह पर। चलोॅ घोॅर खादी पिन्है के औकात हमरोॅ-तोरोॅ नै हुएॅ पारेॅ।"

बिजली हाथोॅ में राखलोॅ रुपया केॅ यशोधर बाबू के हाथोॅ मेॅ थमैलकै, आरो हुनकोॅ पीछू-पीछू गुमसुम बनली घोॅर लौटी ऐलै।