स्वाभाविक इच्छाओं से जन्मी दो फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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स्वाभाविक इच्छाओं से जन्मी दो फिल्में
प्रकाशन तिथि :15 अप्रैल 2015


अगले शुक्रवार को दो अलग-अलग प्रकार की फिल्मों का प्रदर्शन हो रहा है- महेश भट्‌ट की 'मि. एक्स' एवं शोनाली बोस की 'मार्गरिटा विद अ स्ट्रा'। एक मुख्य धारा की फिल्म है, दूसरी सार्थक फिल्म है और 'मार्गरिटा' की तरह कहानी कभी भारतीय परदे पर प्रस्तुत नहीं हुई। अपंगता के कारण मन में इच्छाएं जागना बंद नहीं होतीं, शारीरिक कमतरी से कल्पना के पंख नहीं कटते और सहच मानवीय इच्छाएं जागती हैं। भोजन, पानी और हवा की तरह शरीर की और भी आवश्यकताएं हैं और उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। फिल्म में अनुभवी रेवती के साथ असाधारण प्रतिभाशाली कल्कि कोचलिन काम कर रही हैं। 'मि. एक्स' एक अदृश्य हो सकने वाले व्यक्ति की कथा है। बोनी कपूर की 'मि. इंडिया' बड़े बजट पर बनी सफल फिल्म थी और यह सलीम-जावेद की जोड़ी की लिखी आखिरी फिल्म थी, परंतु आजादी के कुछ वर्ष बाद ही 'मि. एक्स इन बाम्बे' बन चुकी थी।

उस समय टेक्नोलॉजी विकसित नहीं हुई थी, 'मि. इंडिया' तक आते-आते काफी सुधार हो चुका था, परन्तु आज तो फिल्म टेक्नोलॉजी अपने शिखर पर है, इसलिए इस ताजा फिल्म से टेक्नीकल गुणवत्ता की बहुत आशा है। इस फिल्म के साथ ही अन्य निर्माताओं के साथ चार असफल फिल्मों में काम करने वाले इमरान हाशमी की यह घर-वापसी की फिल्म है। उनको सितारा महेश भट्‌ट ने ही बनाया था। मामला कुछ इस तरह है कि 'भटकोगे बेबा लाख कहीं, मगर लौटोगे हर यात्रा के बाद अपने घर ही' जहाज का पंछी जहाज पर ही लौटता है।

भट्‌ट बंधुओं की फिल्मों में सेक्स और सनसनी होती है, परन्तु मार्गरिटा की थीम में सेक्स आधार स्तंभ ही है, परन्तु भट्‌ट कैम्प से शोनाली बोस का ढंग अलग होगा। सेक्स काव्य की तरह ही रचा जाता है, पद्य तथा ग्रामर की तरह भी रचा जा सकता है। बहरहाल सेक्स को पारम्परिक समाज और सेन्सर अदृश्य ही रखना चाहता है, परन्तु वह इतनी अधिक स्वाभाविक इच्छा है कि उसका तूफान किसके रोके रुका है। दरअसल, अदृश्य होने का विज्ञान अभी तक विकसित नहीं हुआ है, परन्तु यह मनुष्य की अदम्य कामना हमेशा रही है। हमारी मायथोलॉजी में अदृश्य हो सकने वाले अनेक पात्र रहे हैं। स्वयं ईश्वर अदृश्य है, परन्तु सगुण भक्ति धारा उसका मानवीयकरण करती है। अनेक मंदिरों में मूर्ति को जगाना, नहलाना पूजा-अर्चना का हिस्सा है।

हम देख सकें और अन्य हमें नहीं देख सकें कामना के उद्‌गम में अबाध स्वतंत्रता का भाव है। अदृश्य पर कोई नियम नहीं लगता तो क्या यह मनुष्य की अनार्की अर्थात अराजकता है गोयाकि स्वतंत्रता अराजकता में बदल जाती है। सच तो यह है कि ग्रीक साहित्य में अराजकता का प्रयोग अन्याय के विरोध के लिए किया गया था, परन्तु कालांतर में अराजकता को नकारात्मक रूप में ही प्रयोग किया जाता है। जब केजरीवाल ने अपने को अराजक कहा था, तो उनका अर्थ अन्याय के विरोध से ही था। कई देशों में आज भी अनार्की अन्याय के विरोध के लिए इस्तेमाल करते हैं।

यह छुपकर दूसरों की निजता में झांकना भी इसी अदृश्य होने की कामना का हिस्सा है। अदृश्य होने की कामना दमित इच्छाओं से जन्मती है और एक तरह से अन्याय आधारित समाज संरचना में मनुष्य की इच्छाएं पूरी नहीं होती, इसीलिए वह अदृश्य होकर उन्हें पाना चाहता है। इस दृष्टि से अनार्की अपने ग्रीक संदर्भ में ही सही लगता है। गौरतलब है कि बचपन में हम सबने छुपाछाई खेला है और छुपने की इच्छा भी इसी अदृश्य होने की कामना का हिस्सा है। मनुष्य जीवन का सबसे अधिक कल्पनाशील होना बचपन में ही होता है। इसीलिए यह भी माना जाता है कि सारे सृजनकर्मी वे लोग हैं, जिन्होंने उम्र के हर दौर में अपने हृदय में बचपन को अक्षुण्ण रखा है। मनुष्य की शक्तियां सीमित होती हैं, अत: वह अपने से बलवान को अदृश्य बनकर पीटना चाहता है। कुछ काल खंड ऐसे भी होते हैं, जब देश अदृश्य शक्तियों से शासित होते हैं।