स्वाहा / प्रदीप बिहारी

Gadya Kosh से
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जहिया हुनक बियाह भेलनि, ताहि समय ओ नेपालमे मास्टरी करैत छलाह। पिताक आठ भाइक भैयारी बला आंगनमे दोसर जमाय बनल रहथि ओ. जें ओ नेपालमे नोकरी करैत छलाह, तें लालदीदीसं छोट बहिन सभ निस्तुकी कयलकि जे एहि नवका पाहुनकें "भिनाज्यू" कहल जाय। नेपाली भाषामे बहिनोइकें "भिनाज्यू" कहल जाइत छैक। से, बियाहक बाद ओ भिनाज्यू बनि गेलाह।

सारि सभ जतेक ने भिनाज्यू-भिनाज्यू कहलकनि से किछु दिनक बाद गामोक लोक सभ भिनाज्यू कह' लगलनि। भिनाज्यू... भिनाज्यू। आ किछुए समयक बाद ई शब्द भिनाज्यू सं "भिनाजू" बनि गेल। भिनाजू...भिनाजू।

से भिनाजू अनुशासन प्रिय लोक छलाह। विग्यानक शिक्षक। मेट्रिक धरि संस्कृतक माध्यमे पढ़लनि। तकर बाद बी. एस्सी कयलनि। कहांदन ताहि समय हुनका गाममे संस्कृते विद्यालयटा छल। अपन एकटा विशेषता लेल ओ लोकप्रिय छलाह। ओ ई जे ओ संस्कृत-हिन्दी-अंग्रेज़ी आ विग्यानक शब्दावली सभकें जोड़ि पद गढ़थि। जेना, कष्टिका के कुष्टिका में लुष्टिका गिरगिष्टताम् ।

ओ गर्मी छुट्टी में सासुर निश्चिते जाथि। हुनकर अबैया सुनि आंगन आ दलानक कात-करोट धरि साफ कराब'मे लागि जाय लोक। एकबेर चापाकल लग पियाजुक खोइया देखि लेलनि, आंगनमे ठाढ़ भ' हुथ'लगलाह। हुनक अबैया सूनि गाम भरिक छात्र सभ संस्कृतक धातु रूप रटब शुरुह क' दिअय। सभकें होइक जे बाटे-घाटे जं भेटि गेलाह आ पूछि देलनि जे 'मुनि' धातुक एक वचन पंचमीक रूप कहू वा तेहने कोनो व्याकरणक बात पूछि देलनि आ ओ उतारा नहि द'सकल तं हुथि क' बकेन पिया देताह।

ओना, हुनका मादे गाम स्त्रीगण सभ कहनि जे जमाय सनक लच्छन नहि छनि। जमाय कतहु एहन भेलाह-ए जे सासुर अबितहि टोल भरिक दलान पर जुमि जाथि... गामक बाट-घाट धरिकें साफ-सुत्थर राखबाक प्रवचन दैत होथि। दुर जो...

मुदा, हुनक सासु माने लालदीदीक माय कहथिन जे भिनाजूक लच्छन जमाय सन नहि, बेटा सन छनि। ओना मोनक कॊनो कोनमे हुनको होनि जे भिनाजूमे जमाय सनक स्वभाव देखथि। माने कीजै शिशुलीला, अति प्रिय शिला। ओ एकबेर एहि मादे लालदीदी लग एहिबातक चर्च कयलनि, मुदा।

लालदीदी बाजल छलि जे हुनक ई हिस्सक छनि। अपनो गाममे एहिना रहैत छथि। एके रंगक। जेहने भीतर, तेहने बाहर। जहिना ओत', तहिना एत'।

बाट भरि परितोष सोचैत जा रहल छल जे भिनाजू एतेकटा दुख कोना सहि सकलाह अछि? सिमरिया घाटसं किछुए दूर पहिने धरि ओकर मानसपटल पर भिनाजू छलाह। पहिलुक बहुत रास बात मोन पड़ैत छलैक।

जखन गाममे ई समाद अएलैक जे भिनाजुक। बाइस बर्खक छोटका बेटा छठिक घाट बनयबाक क्रममे धसना तर पिचा गेल आ। मोनहि मोन 'नहि' बहराइत छैक आ परितोषक आगां अबैत छैक भिनाजूक चेहरा।

कका कहने रहथिन जे क्रिया कर्म सिमरिये घाटमे होयतैक। एहन हाक-डाक बला केसमे गाम-घरमे नहिए सन होइत छैक। कोना करत गामघरमे? कोना उद्धार होयत? स्वजाति वा परजाति, के औतैक आंगनमे पानि हेराब'? के औतैक हाथ धोअ' ? ककरा अरघतैक?

घाट पर पहुंचितहिं परितोष अपन पण्डाक ओहिठाम गेल। ओना पण्डाक नबका पीढ़ी ओकरा खेहारब शुरू क'देलकैक,' कत'घर जजमान? " करीब चौदह-पनरह बर्खक तीन-चारिटा छौंड़ा संग ध' लेलकै।

परितोष बाजल, " जा ने। अपन काज देखह। हमरा अपन पण्डाक घर देखल अछि, तों सभ जहिया धरियो ने पहिरैत छलह, तहिएसं अबै छी। जाह, अपन काज कर'।'

"अपन कामे त'कए रहलियै हन। अपने बोलिए देबै जे केकर जजमान छिकियै, त' ..."

परितोष किछु ने बाजल। अपन पण्डाक घर दिस घुमल, तं एकटा गप सुनलक।

"हे रे शिवनत्था! तोरे बाबा ओइ ज' जा रहलौ हन।"

शिवनाथ झटकारि क' आगां गेल आ परितोषकें कहलक, "कोन गाम घर होल जजमान?"

"से किएक? तों के छह?"

"हम महिनाथ के बेटा भेलियै...गणेश बाबा पण्डा के पोता।" शिवनाथ बाजल, "अइ ले' पुछलहुं जे घर में भिन-भिनाउज होइ गेलै हन। जजमनिका सेहो बटाए गेलै हन।"

महिनाथ, माने गणेश पण्डाक जेठका बेटा। मुदा, ओ किनका हिस्सामे गेल? छौंड़ासं गप करैत गणेश पण्डाक दुआरि पर पहुंचि गेल परितोष। गणेश बाबू बहरएलाह। उदास ...हुनक चेहराक कांति उजरल आ उपटल छलनि। परितोष पुछलक, "मोन ठीक अछि ने पण्डा जी?"

"हं, ठीके छी, मुदा ठीक की रहबै? चारू भाइ भिन-भिनाउज कए लेलकै हन। जजमानोक पांच गो बखरा लगलै। गोटी खसलै।"

ओकरा भिनाजूसं भेंट करबाक उद्विग्नता छलैक। गणेश पण्डा लग गेल छल जे भिनाजूक गामक नाम कहि हुनक पण्डाक पता लगबितए. ओना फोनसं सेहो पूछि सकैत छल जे ओ कत' छथि? मुदा, गणेश पण्डाक गपक चांकि लागि गेलैक। पुछलक, " पांच ठाम बखरा माने?

"चारि ठाम चारू भाइके आ एक ठाम बुढ़बा-बुढ़िया के. घर-घरारी सब टुकड़ा-टुकड़ा। सब के टिक्की पकड़एवाली जेहन ने अइलै जे गेठरी के बन्हन खोलि देलकै। भखरि गेलै सब कथू।"

परितोष बाजल, "चिन्ता नहि करू। आब ई बात स्वाभाविक भ' गेल छैक। सभ घरमे होइत छै। भने, अपन-अपन बोझ उठौलक।" कने थम्हैत बाजल, "तं अहाँ दुनू प्राणीक चूल्हि फराक?"

"नञि।" गणेश पण्डा बजलाह, "छोटका संगे छिअइ. हिस्सामे तीनू के उपजौआ गाम पड़लै आ छोटका के मरहन्ना हाथ लागि गेलै। तीनू ई डीह छोड़ि आन-आन ठाम बला हरपलक आ टाटी-फरकी लगबै गेल। ईंटा-गिट्टी जोड़ैत गेल। छोटका के कहलियै जे हमरे संगे रह। दुनू बखरा ल'ले। पूजा-पाठ कराब' सीख ले। आर भाइ के नीक स'सन्सकिरितो ने अबै छौ। सिख लेबहीं त' समय घुरतौ। मुदा..."

"की?"

"मुदा, ओकर कनियानि ओना नञि मनलकै। बोललै जे हिसाब-किताब पहिले फरिया लेथिन।"

"माने?"

"ई, जे आमदनी के बखरा केना होतै? तै पर हमर पंडिताइन बोललै जे जेना तोएँ चाहबहो, तेनाही होतै। आ निश्चय भेलै जे दुनू परिवार एक ज'रहतै। जजमान स' जे आमदनी होतै, तै में तीन हिस ओकरा आर के आ एक हिस हमरा आर कॆ। हमरा आर के एक हिस जे ओकरा भेटतै, ताही में हमरा दुनू के भोजन-बुतात रहतै। यैह तय भेलै। आब चलब करै छै।" कने थम्हैत बजलाह गणेश पण्डा, "ई सब टा कुंभ के कारण भेलै हन। जत्ते ने आमदनी भेलै से दिमाइगे उनटल छै सब के. सब अपने चिन्तामे। गंगा माइके चिन्ता स' ककरो मतलब नञि।"

परितोषकें फेर भिनाजूक सो' ह भेलैक। ओह, कथीमे लागि गेल ओ? पुछलक, "बेस, ई कहि सकैत छी जे जयजयपट्टीक पण्डा के छथि?"

गणेश पण्डा बजलाह, "ओ सब त'हमरे जजमान छलाह। आब डकूबा महिनत्था के बखरामे पड़ि गेलै ऊ गाम। आब देखियौ जे काल्हि ओइ गाम के किशोर बाबू अइलखिन। जुआन बेटा चलि गेलनि। बाइस बर्खक छलनि। किशोर बाबू सनक लोक के बुझियौक जे डाका पड़ि गेलनि। अकाल मृत्यु भ' गेलै बच्चा के. से, हुनका ज'रे जे बनियौटी कैलकै, से नञि पुछू। बेचारे किशोर बाबू गुम्म छथिन। जेठका बेटा उतरी पहिरने। संगमे हुनकर कका छथिन। हम त' देखिते काठ भए गेलियै। महिनत्थाक बाप छिकियै हम। ओकर बेजाइ नञि सोचि सकै छियै। मुदा, किशोर बाबू सन जजमानक संग जेना-जेना करब करैक, से। जानथिन गंगा माइ। हम त'गंगे माइ पर छोड़ि देलियै। परिवारो तोड़' मे ओकरे राजनीती छिकै।"

आब परितोषक धैर्य गणेश पण्डाकें सुनबाक लेल बांचल नहि रहैक। छटपटा रहल छल। मुदा, गणेश पण्डा बाजिए रहल छलाह, "अहूंक गाम ओही डकूबा के हिस्सामे पड़लै हन।"

बिच्चहिमे परितोष बाजल, "पण्डा जी, अहांक खिस्सा बादमे सुनब। कहू जे महिनाथ पण्डाक कौन घर छनि?"

संकेतसं बतबैत गणेश पण्डा बाजलाह, "हे वैह। ईंटा बला। आ सोझे बला फूसक एकचारीमे रूकल छथि किशोर बाबू आर. मुदा, एखनि नञि होयता एकचारी मे। एकादशा के कर्म कर'गेल होयता। हे ओम्हर।" हाथसं ओहू बाटक संकेत क' बजैत रहलाह, "सब नीक-नीक गाम ओइ डकूबा के बखरा में पड़ि गेलै। सब भलादमी आर के तंग कए रहलै हन।"

परितोष अखियासलक। महिनाथ...वैह तं ने जकरा छोड़यबा लेल ओ अपन एस.पी. मित्रसं पैरवी कयने छल। ओ गणेश पण्डासं पुछलक, तं पण्डा बजलाह, "हं, उहे। अहीं के पैरवी काज केलकै। तीन सय चौरानवे में फंसल रहै। आब होइए जे बेकारे अहाँ के पैरवी कर' कहलौं।"

"बेस, हम चलै छी।"

"कत' ?"

"किशोर बाबू लग। हमर बहिनोइ छथि ओ." बजैत परितोष आगां बढ़ि गेल।

एकादशाक कर्मक पसार लागल छल। भिनाजू चुपचाप बैसल छलाह-पाचक बनल। हुनक कका कातमे बैसल। एकटा पंडी जी कर्म करा रहल छलाह। कने फटकीमे बैसल छल जगरनाथ। परितोष भिनाजूकें गोड़ लागबा लेल उद्दत भेल, मुदा सहदेव बाबू, भिनाजूक कका, मना कयलखिन। ओ भिनाजू दिस तकलक। ओकरा बघजर लागि गेलैक। ओ देखलक। भिनाजूक आंखि एकबेर फेर झहड़लनि। सहदेव बाबूक भखरल स्वर बहरयलनि, "जहियासं छौंड़ा गेलैए, बौक भ'गेल छथि। एकोटा शब्द नहि बहरयलनि अछि। खाली लोककें देखैत छथि आ आंखि झहड़' लगैत छनि। जानि नहि, कौन जन्मक पापक सजाय भोगि रहल छी। जे हमर श्राद्ध करैत, ओकर..."

सहदेव बाबूक आंखि सेहो झहड़' लगलनि। परितोष हुनका चुप करबाक प्रयास कएलक। तखनहिं जगरनाथक स्वर बहरएलैक, "करेजा बन्हियौक जजमान।"

परितोषक नजरि कर्म करबैत पण्डी जी पर पड़लैक। ओहो थम्हि गेल छलाह। ओ जगरनाथ दिस तकलक। ओ जगरनाथकें चिन्हलक। ई एहिठाम किएक बैसल अछि?

ओकरा मोन पड़लैक। ओकर मित्रक माय मोतिहारीमे मरि गेलखिन। हुनक दाह-संस्कार लेल एतहि आयल छलाह। दूटा गाड़ीमे सभ गोटें। मित्रक पिता, पत्नी, बच्चा आ बहिन। माने परदेशमे रहैत शोकाकुल परिवार। एम्हरसं परितोष छल। जनवरीक मास छलैक। हाड़कें बेधैत जाड़। नओ बजे पहुंचल रहथि ओ सभ। सभ तैयारी तं भेलैक मुदा एकटा समस्या रहैक जे लहास जराओत के? सभ अनुभवहीन। तखन पण्डाजी जगरनाथकें ताकि क'आनलनि। पांच सह टाका लेने रहय ई जगरनाथ आ देशी दारूक दूटा पाउच। मोने छैक परितोषकें। जगरनाथ कहने रहैक, " बिना चढ़ेने पार नञि लगतै। बड़ कनकनी छै।'

से जगरनाथ एहिठाम की क' रहल अछि?

ओ जगरनाथसं पुछलक, "ऐं हौ, तों एत' ?"

जगरनाथ किछु बजितए ताहिसं पहिने सहदेव बाबू बजलाह, "ई पण्डा जीक प्रतिनिधि अछि-ओगरबाह।"

"माने?"

"एहिठामक चढ़ौआ आ वस्तुजातक ओगरबाही करैत अछि।"

"आ ई, जे श्राद्ध-कर्म करा रहल छथि, से?"

"ई किराया परहक पंडी जी छथि। पण्डाजी कतहु गेल छथि।"

"तें धड़ाधर मासे-मासक कर्म किछुए मिनटमे ससारने जा रहल छथि, जेना गंगाक पूल पर टेनक डिब्बा ससरैत जाइत छैक।"

पंडी जी हड़बड़ा रहल छलाह, मुदा कर्म कने काल रोकल गेल छल। कर्त्ताकें सुस्तयबा लेल। ओना कर्त्ता कहैत छल जे कर्म होइत रहय, शुरुह भेला बेसी काल नहि भेलैए आ जल्दीए खतमो भ' जेतैक। मुदा, सहदेव बाबू कहने रहथिन जे बीध होइ छै, कने सुस्ता लिअए.

ओही समयक उपयोग करैत परितोष बाजल, "अहांक घर कत' अछि पंडी जी?"

"महिषी। सहरसा जिला।"

"एत' ?"

"यैह काज करैत छी। हमरा सभक जजमान एत'नहि छथि। भैयो ने सकैत छथि। एहिठाम दोसराक जजमानकॆं केओ दोसर नहि डेबि सकैए. से जं केओ प्रयास कयलक तं खूने-खूनामए भ' जेतैक। तें एत'ठीका पर कर्म करबै छी।" किछु थम्हैत बजलाह, "हम महापात्र नहि छी। ब्राह्मण छी। संस्कृत पढ़ने छी। पुरहिताइ सं पेट भरब मोश्किल भ' गेल छैक। कतहु नोकरी नहि भेल, मुदा परिवार भ' गेल। बढ़ि गेल। की करितहुं गाममे? बहरा गेलहुं।"

"कतेक भेटैए एकटा कर्मक?"

"अढ़ाइ सय टाका।"

"आ चढ़ौआ?" सहदेव बाबू पुछलनि।

"सभटा पण्डा जीक। जगरनाथ तकरे ओगरबाही करैत अछि।"

"दिनमे कएटा कर्म करा लैत छी?" परितोष पुछलक।

"तीनटा सं बेसी नहि भ' पबैत छै। कहियो एकोटा नहि।"

"तें धारा प्रवाह शुद्ध-अशुद्ध पढ़ौने जाइत छियै?"

"की करबै? एहिठाम, गंगाघाटमे शुद्ध-अशुद्धक मानि नहि होइ छै। एत'सभ ठीक छै। सभ कथू गंगा माइके समर्पित होइ छै। वैह सभक उद्धार करैत छथि। गामे जकां एतहु भेलै त' गंगाघाट किएक? गंगा तं नामे पवित्र, एहिठाम तं गंगाधाम।"

"मुदा, जैह मंत्र पढ़बै छियै, तकर उच्चारण आ व्याकरण ठीक रखियौ।" परितोष बाजल।

पंडी जीक एहि सत्यताक चर्च मात्र एहि दुआरें कयलक जे भिनाजू कोनो प्रतिक्रिया दैथि। किछु बाजथि। मुदा, ओ किछु ने बजलाह। हुनक बकार नहि फुटलनि। ओना चेहरा पर असमर्थताक भाव देखाइत छलनि। भिनाजूक चेहरा पर कछमछी सेहो देखल गेल।

भिनाजूसं नजरि मिलयबाक साधंस नहि क' पाबि रहल छल परितोष।

कर्म समापन पर छलैक। गणेश पण्डा जुमि गेलाह। बाटक ओहिकातक चाहक दोकानसं हाक देलनि, "आउ यौ परितोष बाबू, चाह पीबू।"

परितोष चाहक दोकान दिस गेल। पण्डा जी बाज'लगलाह, "अहांक गाम जखन समिलातमे रहै त' अहाँ स' बड़ सहयोग भेल हमरा।"

"से एखनो होयत।" परितोषकें मोन पड़लैक जे गणेश पण्डाक दुआरि लगक काली मंदिरक लेल कतोक बेर ओ चन्दा द' चुकल अछि। सभबेर प्रगति ठमकले देखय।

गणेश पण्डा बजलाह, "देखियौ महिनत्था के! पूरा श्राद्ध ठीका पर तय कए लेलक जजमानसं। अपने अलोपित। कर्म समाप्त होयबाक समय बूझल रहैत छैक। तखन अपने औतै, नहि त' कनियानि औतै। सभटा समेटने चलि जेतै। पंडी जी किछ चोरा ने लै, तें ओगरबाह रखने अछि। बाह रे पण्डा!" किछु थम्हैत बजलाह, "अपने किछ अबै तब ने। सन्सकिरीत के सओ ने अबै छै, की पढ़ौतै?"

"मुदा, ताहिमे हुनकर कौन दोख? अपनेक बालक छथि ने। जेहने अपने बनौलियै, तेहने बनलाह।"

"हं, से सैह। तें ने ई गति भेल हमर।" गणेश पण्डा बजलाह, "तें कहब करै छियै जे शिवनाथ के पढ़बही, तं हमर बोल कुनैन सन लगै छै।" कने थम्हैत फेर बजलाह, "भने कुनैन सन लागब करै छै। शिवनत्था जं पढ़ि लेतै, तं एकरा एहि हाथ के ओहि हाथ केना भेटतै? गंगा माइ सब के देखै छथिन।"

"ई अनर्गल बात बजलहुं पण्डा जी." परितोष बाजल, "गंगा माइ सभकें देखैत छथिन, मुदा गंगा माइकें केओ ने देखैत छनि एत'। ...अहाँ सभक एहने किरदानी के कारण ओहिदिन श्मशानघाटमे ओ घटना घटलैक।"

"कोन? अइठाम सभ दिन कोनो-ने-कोनो घटना घटिते रहै छै। गंगा माइ जे चाहै छथिन, सैह होब करै छै।"

ताबते शिवनाथ आयल। गणेश पण्डाकें कहलक, "बाबा हौ! काकी घाटपर बोलौलक' हन। जजमान आयल छओ."

गणेश पण्डा घाटदिस पड़यलाह।

ओहिकात कर्म समाप्त भ'गेल छल। कर्मक निर्माल्य भसयबालेल भिनाजू चंगेरा उठौलनि तं परितोषकें कोनादन लगलैक। ओ चंगेरा लेब' चाहलक, मुदा सहदेव बाबू मना कयलखिन। बाटभरि परितोष भिनाजूकें टोकैत रहल, मुदा भिनाजू चुपचाप चलि रहल छलाह।

कछेरमे गणेश पण्डा फेर सहटि क'हुनका लग आबि गेलखिन। बजलाह, "हमर छोटका सन्सकिरीत पढ़' गेलै हन। ओकर कनियानि हिसाब करब करै छै आ हम मंत्र पढ़बै छिकियै।"

निर्माल्य भसयबालेल छाबा धरि जलमे पैसलाह पंडी जी, कर्ता आ भिनाजू। परितोष सेहो पैसल। पंडी जी भिनाजूकें कहलनि, 'एकरा भसा क' कहियौक, "स्वाहा..."

भिनाजू तखनो ने बजलाह। कर्त्ता हुनका हाथसं चंगेरा ल 'क' भसौलक आ बाजल, "स्वाहा..."

पंडी जी कर्त्ताकें कहलनि, "बौआ! आब आजुक कर्म समाप्त भेल। स्नान क 'लिअ' ।"

कर्त्ता स्नान करबा लेल कने नीचां खंघड़' लागल कि भिनाजू ओकर उतरी पकड़ि घीचि लेलनि। पंडी जी आ परितोषकें अचरज भेलैक। गणेश पण्डा आ सहदेव बाबूकें अचरज भेलनि।

सभ देखलक जे भिनाजू उतरी तोड़ि क'बीच धारमे जुमा क' फेकलनि आ जोरसं बजलाह, " स्वाहा।

घाटपरसं गणेश पण्डा चिचिअएलाह, "किशोर बाबू! बताह भ' गेलहुंए?"

भिनाजू बेटाकें कहलनि, "भ'गेलै। गंगा नहा लैह। गंगे-स्नानक सोकाज लगतह।" परितोष दिस घुमि भरि पांज क' ओकरा पजिया लेलनि आ पुछलनि, "घुरतीक गाड़ी कतेक बजे छैक?"