हंसना-हंसाना मना है, आंसू पर पाबंदी नहीं / जयप्रकाश चौकसे

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हंसना-हंसाना मना है, आंसू पर पाबंदी नहीं
प्रकाशन तिथि : 04 फरवरी 2021

रामगोपाल वर्मा ने फिल्म बनाई थी ‘डरना मना है’। इस फिल्म के अगले भाग का नाम था ‘डरना जरूरी है’ और अगर रामगोपाल वर्मा सक्रिय होते तो फिल्म बनाते ‘हंसना मना है’ और इसके अगले भाग का नाम होता ‘रोना मना है’। हंसना, हंसाना बच्चों का खेल नहीं। हास्य कलाकार का व्यक्तिगत जीवन बड़ा कठिन होता है। उसे आंसू के माध्यम से मुस्कान अभिव्यक्त करना होता है। अलिखित दंड विधान में नई धारा का इज़ाफा हुआ है कि हास्य कला दंडनीय अपराध है। सामाजिक व्यवहार में मुस्कुराना स्वागत प्रक्रिया में शामिल है। टेलीविजन पर प्रस्तुत किया गया ‘साराभाई वर्सेस साराभाई’ गुजरात में जन्मे लेखक कपाड़िया ने लिखा था। इस सर्वकालिक सफल कार्यक्रम में उच्च आय वर्ग के परिवार की मुखिया माया साराभाई अपनी बहू की जीवन शैली से नाराज़ रहती है। माया साराभाई अपनी बहू को समझाती है कि स्वागत करने के लिए मुस्कान आधा इंच से बड़ी नहीं होना चाहिए और निकट के व्यक्ति के लिए मुस्कान डेढ़ इंच तक जा सकती है। एक साहित्य रचना का नाम था ‘डेढ़ इंच मुस्कान’ समाजिक व्यवहार के तहत मुस्कुराते हुए मुंह में दर्द होने लगता है। कुछ लोगों को चेहरे पर मुस्कान चिपकाए हुए लंबा वक्त गुजर जाता है और मुस्कान चेहरे का स्थाई भाव हो जाती है।

खुलकर रोना भी अशिष्ट माना जाता है। आंसू नापतोल कर गिराना चाहिए। राजस्थान में अमीर व्यक्ति की मृत्यु पर पेशेवर रोने वालों को पैसा देकर बुलाया जाता है। इस पर ‘रुदाली’ नामक फिल्म भी बनी थी। व्यावसायिक रुदाली का दुख यह है कि उसके किसी अपने के मरने पर वह छाती कूट कर रो भी नहीं पाती। जब किसी व्यावसायिक रुदाली की मृत्यु होती है तो आसमान रोने लगता है जिसे लोग असमय हुई बरसात मानते हैं।

बहरहाल, एक हास्य कलाकार अपने घर में रिहर्सल कर रहा था। पड़ोसी खबरची द्वारा सूचना देने पर वह गिरफ्तार किया गया। आज सारे पड़ोसी एक-दूसरे पर नजर रखे हुए हैं। यह हमारी गुप्तचर सेवा का नया मॉडल है। यह पूर्ण स्वदेशी है और हम इसका निर्यात कर सकते हैं। दरअसल हास्य कलाकार को कब्रिस्तान में रियाज करना चाहिए था। मुर्दे ऐतराज नहीं करते। कुछ अपने जीवन में ऐतराज उठाने पर मार दिए गए थे। मनोज रुपड़ा की नई कहानी ‘आखरी सीन’ में सेवानिवृत्त उम्रदराज फ़िल्मकार एक फिल्म की पटकथा का आकल्पन कर रहा है। जिसका नाम है ‘कब्रिस्तान’। इंदौर में जन्मे बदरुद्दीन (जॉनी वॉकर) बस कंडक्टर थे। मुसाफिरों को हंसाते रहते थे। अपनी लंबी पारी में जॉनी वॉकर ने कभी द्विअर्थी संवाद नहीं बोले।

आजकल टेलीविजन पर प्रस्तुत हास्य कार्यक्रम में अभद्रता प्रदर्शित होती है और महिलाओं का मखौल उड़ाया जाता है। सुना है कि सलमान खान इसके प्रायोजक हैं। सलमान खान ने कभी किसी महिला का अपमान नहीं किया। संभवत: वे स्वयं द्वारा पूंजी निवेश किया गया कार्यक्रम देखते नहीं है। इसकी क्या शिकायत करें। बकौल साहिर लुधियानवी ‘आसमां पर है खुदा और जमीं पर हम, पर आजकल वह इस तरफ, देखता है कम। वित्तीय घाटा कम करने के लिए हास्य पर टैक्स लगाया जाना चाहिए।