हनुमान बाबा / अपूर्व भूयाँ

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बात इस कान से उस कान फैलते ही छोटे शहर में हलचल मच गई। बनमाली ग्वाला का बाड़ी लोकारण्य हो उठा। हनुमान का अवतार हुआ है। अवतारी हनुमान के अलौकिक कर्मकांड के प्रचार ने दूर-दराज के लोगों के मन में भी अपार कौतूहल उत्पन्न कर दिया। सिर्फ़ कौतूहल ही नहीं, अनेक लोग भक्ति भाव से अवतारी पुरुष के दर्शन के लिए व्याकुल हो उठे। रोग-व्याधि, भूत-प्रेत की साया से मुक्ति पाने के लिए उनके शरणागत हो गए। अवतारी हनुमान किसी को निराश नहीं करते। गदा सदृश लकड़ी के दंड से उनकी शरणागत हुए व्यक्ति के सिर पर स्पर्श करते। किसी को बेलपत्र तो किसी की ओर फूल उछाल देते। उसे लेने के लिए भक्तों में होड़ मच जाती। गजेन दत्त, हरनाथ दास आदि दो-एक व्यक्ति के भाव बढ़ गए इस दावे की कारण कि वे अवतारी हनुमान के कर्मकांड से भलीभांति परिचित हैं। मन की कामना पूर्ण होने की लालसा में अवतारी हनुमान बाबा के शरणागत भक्तों के भीड़ को सम्भालने और विधि-विधान समझाने-बुझाने में वे सबसे आगे रहने लगे। यदि अवतारी हनुमान के फेंके गए तीनपत्तों वाला बेलपत्र किसी के हिस्से में पड़ जाए तो समझो उसका भाग्य खुल गया। वैसे दूसरों का भी बुरा नहीं होगा। अवतारी हनुमान की कृपा दृष्टि पाते ही दुखियों का संकट मिट जाता है। अवतारी हनुमान किसी से कुछ नहीं मांगते। परंतु भक्तगण अपनी इच्छानुसार जितना हो सके धन-धान्य, द्रव्य आदि उनके नाम पर अर्पित कर सकते हैं। इस दान-दक्षिणा को ग्रहण में गजेन दत्त, हरनाथ दास आदि की मुख्य भूमिका रहती है।

अवतारी हनुमान का असली नाम था किरण प्रसाद। कई वर्ष पहले किरण प्रसाद के दादा रामप्रसाद बिहार से आए थे। यहां-वहाँ घूमते फिरते रामप्रसाद बनमाली ग्वाला के दादा हरि ग्वाला के बाड़ी के एक कोने में एक छोटी झोपड़ी बना अपना खानदानी मोची का पेशा आरंभ कर दिया। धीरे-धीरे वह शहर का एक अपरिहार्य अंग बन गए। रामप्रसाद के बेटे लक्ष्मण प्रसाद ने भी वही पेशा अपनाया। लक्ष्मण प्रसाद ने असमिया युवती से विवाह कर समाज में अपना एक सुदृढ़ स्थान बना लिया। दो बेटियों का शादी-ब्याह किया। इकलौते बेटा किरण प्रसाद को लिखा-पढ़ा के कुछ करने के काबिल बनाया ही था कि लक्ष्मण प्रसाद इस संसार से विदा हो गए। अब बनमाली ग्वाला ने अपने दादा के दिनों से उनकी ज़मीन पर बिना किसी बंदोबस्ती के घर बनाकर रह रहे किरण प्रसाद को हटा स्वयं कोई व्यवसाय करने की सोची। बनमाली के पिता भोलानाथ ढिला-ढाला भोले व्यक्ति थे। उन्होंने किरण प्रसाद को कभी किसी कारण परेशान नहीं किया। लक्ष्मण प्रसाद के जीवित रहते बनमाली ग्वाला ने इस बात को लेकर काफ़ी हो-हल्ला भी किया था। तब लक्ष्मण प्रसाद ने अगली व्यवस्था होने तक उन्हें वहीं रहने की गुहार लगाई थी। परंतु लक्ष्मण प्रसाद के अचानक दुनिया छोड़ जाने पर किरण प्रसाद को चारों ओर सिर्फ़ शून्य दिखाई देने लगा। बूढ़ी माँ को लेकर वह कहाँ जाए। इस बीच मोची की दो अन्य दुकानें खुल जाने से किरण प्रसाद का व्यवसाय पहले जैसा नहीं रहा। यह मौका देख बनमाली ग्वाला ने दो-चार लोगों को बटोरा और उन्हें साक्षी बनाते हुए किरण प्रसाद को घर-जमीन खाली करने की अंतिम चेतावनी दे डाली। उसने धमकाया भी कि स्वयं किरण प्रसाद ने उसकी ज़मीन खाली नहीं कि तो वह जबरन उसे वहाँ से मार भगाएगा।

इस घटना के तीन-चार दिन बाद अचानक माँ शोर मचाने लगी कि किरण प्रसाद पता नहीं कहाँ लापता हो गया। एक दिन पहले की शाम माँ से बिना कुछ बताए किरण प्रसाद घर से गायब हो गया और अगले दिन दोपहर तक उसकी कोई खोज-खबर नहीं। माँ ने उसे यहां-वहाँ काफ़ी ढ़ूंढ़ा, पर जब नहीं मिला तो रोने-धोने लगी। वह यह भी कहने लगी कि बनमाली ग्वाला के लोग किरण प्रसाद के साथ कुछ बुरा कर सकते हैं। आस-पड़ोस के लोगों ने भी किरण प्रसाद की खोजबीन की। दूसरे दिन सुबह बाहर घूमने निकली बनमाली ग्वाला कि पत्नी बिंदेश्वरी को किरण प्रसाद की भनक लगी। किरण प्रसाद के घर के पीछे स्थित विशाल बरगद के पेड़ की करीब बीस फुट ऊंची डाली पर किरण प्रसाद बैठा मिला। उसकी वेशभूषा भी अलग। कमर में लाल कपड़ा लपेटे। तन पर और कोई वस्त्र नहीं। पुस महीने की जाड़। उस पर पिछली रात बारिश भी हुई थी। किरण प्रसाद इसी तरह पेड़ पर चढ़ा हुआ था? आंखें मूंदे ध्यानमग्न। उसके शरीर पर कोई वाह्यिक क्रिया नहीं। पड़ोसियों को इसका पता चल गया। लोग जुटने लगे। माँ ने कातर स्वर में उससे पेड़ से उतर आने की विनती की। नहीं, उसकी ओर से कोई हरकत नहीं। बनमाली ग्वाला ने नीचे से कूद-फांद करते कहा, "उतर आ, भाव मत बना। मेरी ज़मीन छोड़कर जाना पड़ेगा, अब नाटक दिखाने की ज़रूरत नहीं। तुम्हें और तीन दिन का समय देता हूँ। जल्दी मेरी ज़मीन छोड़ दो।"

बनमाली ग्वाला कि हरकत पर किरण प्रसाद ने पहली बार वहाँ जुटे लोगों के समक्ष आंखें खोली। स्थिर दृष्टि से बनमाली की ओर देखते हुए गंभीर स्वर में कहा, " तीन दिन का समय मैं तुम्हें देता हूँ। तुम्हारा वंश ध्वंस हो जाएगा। ' किरण प्रसाद की बोली इतनी गंभीर हो सकती है क्या? जैसे आकाशवाणी हुई हो। वहाँ जुटी भीड़ में कानाफुसी शुरू हो गई। एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे, आख़िर ये क्या हो रहा है। बनमाली ने फिर किरण प्रसाद को गालियाँ बकीं। किरण प्रसाद पेड़ पर ही ध्यानमग्न रहा।

लीला देखिए उस दिन रात से ही बनमाली के इकलौते बेटे को तेज बुखार हो गया। छोटी-मोटी दवाई देकर लोगों को नीरोग करने वाले सनातन कंपाउडर की दवा पीने पर भी बनमाली के बेटे का बुखार कम न हुआ। बुखार में ही बड़बड़ाने लगा, " भगवान, भगवान...मुझे भगवान के पास ले चलो, उस्स। '

इधर किरण प्रसाद के साथी हरनाथ, गजेन, बिल्लू आदि ने प्रचार करना शुरू कर दिया कि किरण प्रसाद के शरीर में साक्षात् भगवान अवतरित हुए हैं। भगवान ने हनुमान के रूप में किरण प्रसाद के शरीर में प्रवेश किया है और तीन दिन पेड़ पर ही रहकर अगली एकादशी को "देव'उत्तर आएंगे। देव की स्थापना के लिए एक जगह की व्यवस्था करनी होगी-आदि...इत्यादि। उधर बनमाली के बेटे की तबीयत और बिगड़ती जा रही थी। एक दिन टैक्सी किराया कर नगर के एक डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने रक्त, शौच आदि का परीक्षण करवा महंगी दवाइयाँ लिखीं। परंतु कोई फायदा न हुआ। बनमाली का बेटा रह-रहकर हाथ-पैर जोड़कर" भगवान...भगवान' बड़बड़ाता और अचेत हो जाता। लोगों ने बनमाली को समझाया कि यह उसके पाप का फल है। उसने भगवानरूपी किरण प्रसाद का अपमान किया है। उस पर भगवान का श्राप लग गया है। भगवान की शरण में गए बिना उसका कल्याण नहीं होने वाला। बनमाली की मां, पत्नी भी यह कहने लगीं। अंतत: बनमाली को हार माननी पड़ी। बनमाली के बेटे को "भगवान'के सामने ले जाया गया। अब तक उस ऐश्वरिक बरगद की जड़ में एक वेदी बना दीप-अगरबत्ती जलाए जाने लगे थे। बनमाली के इस परित्यक्त बाड़ी को पूरी तरह साफ-सुथरा कर पवित्र कर दिया गया। उस दिन एकादशी थी। पूर्व घोषणा के अनुसार भगवान का पेड़ से उतरने का दिन। ढोल, नगाड़ा, कीर्तन, मां-दादियों के भजन से बनमाली की बाड़ी मुखरित हो गई। भीड़ के बीच में से कोई एक चिल्ला पड़ा," देखिए, देखिए, बरगद के पत्ते कैसे हिलने लगे हैं।' सभी की नजरें बरगद की डाली और पत्तों पर जा टिकीं। तभी एक और चिल्लाया, " भाइयो, भगवान ने संकेत दिया है, वे अब नीचे उतरेंगे। ' लोग दंडवत प्रणाम कर बैठ गए। भगवानरूपी किरण प्रसाद बीस फुट ऊंचे बरगद की डाल पर खड़े होकर वहीं से कूद कर ज़मीन पर आ खड़ा हुआ। दोनों पांव फैला, कमर से ऊपर के भाग को थोड़ा मोड़, दोनों मुट्ठियाँ बाँध, मुंह फुला, हुस्स-हुस्स शब्द करते कुछ पल इसी अवस्था में रहा और फिर बड़े गंभीर कदमों से पेड़ की परिक्रमा करने लगा। इस तरह सात बार पेड़ की परिक्रमा करने के पश्चात बरगद की जड़ में सजाई गई वेदी पर जा बैठा और पुन: आंखें मूंद ध्यानमग्न हो गया।

भगवान के आविर्भाव के समय से ही ज़रूरी सामग्रियों का जुगाड़, देव के प्रचार आदि में लगे हरनाथ दास ने हाथ जोड़ते भक्ति भाव से उपस्थित लोगों से कहा, "भक्तो, ये आपके समक्ष साक्षात् हनुमान बाबा हैं। हनुमानजी अमर हैं। वे समग्र विश्व ब्रह्मांड का भ्रमण कर रहे हैं। अब वे इस रूप में आपके समक्ष अवतरित हुए हैं। हनुमान बाबा संतुष्ट हो गए तो आप लोगों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी, संकट-वंकट मिट जाएगा। आज से दस दिन तक बाबा आपको खुले तौर पर दर्शन देंगे। दस दिन बाद वे मंदिर में प्रवेश कर जाएंगे। जनता चाहे तो सब संभव है। आशा करता हूँ कि देव का मंदिर स्थापित करने के लिए आप भक्तों से यथासंभव दान-दक्षिणा, मदद मिलेगी। 'हाँ...हाँ...भक्तों ने सहमति में सिर हिलाया। तभी हनुमान बाबा ने पुन: आंखें खोलीं और उपस्थित भक्तों पर नज़र डालते गंभीर स्वर में बोले," जय श्रीराम...जय श्रीराम...जय श्रीराम'। भक्तों ने भी तीन बार इसका उच्चारण किया। बाबा के करीब बैठे कुछ विशेष भक्तों ने बाबा के शरीर पर पुष्पांजलि अर्पित की। उस वक़्त किसी के भी मन में किरण प्रसाद नाम नहीं आया। किरण प्रसाद हनुमान बाबा हो गया।

इधर बनमाली के बीमार बेटे को सीने से लगाए रोते-बिलखते मां-दादी हनुमान बाबा के चरणों में गिर पड़ीं। बनमाली ने भी ताम्बुल-पान चढ़ा बाबा के समक्ष घुटने टेके। हनुमान बाबा ने लड़के के सिर पर हाथ फिराया। बेलपत्र से पानी की कुछ बूंदे उसकी देह पर छिड़क दिया। उसके बाद दादी से कहा, " जाओ मां, बच्चे को थोड़ा गर्म दूध पिला दो। श्रीराम की कृपा से वह ठीक हो जाएगा। ' हनुमान बाबा का यह पहला इलाज़ था। खैर जो भी हो, लड़का दो दिनों बाद स्वस्थ हो उठा। बनमाली ने अपनी एक कट्ठा जमीन, जिस पर किरण प्रसाद ने कब्जा कर रखा था, जनता के समक्ष लिखित रूप से मंदिर बनाने के लिए दान कर दिया। व्यवसायी प्रेमचंद अगरवाला ने एक ट्रक ईंट भेंट की। तेल व्यवसायी परितोष मंडल ने एक बंडल टीन दिया। इसी तरह किसी ने सीमेंट, तो किसी ने बालू दान किया। उसी तरह क्षेत्र के राजमिस्त्री जीतेन भूमिज ने बिना किसी पारिश्रमिक के मंदिर के ईंट-पत्थर जोड़ने की जिम्मेवारी उठाई। मज़दूर के रूप में काम करने की लोगों की कतार लग गई। देखते-ही-देखते दस दिन में ही मंदिर गृह और बाबा के रहने के लिए पक्की दीवारों और टीन के छप्पर वाला कमरा तैयार हो गया। किरण प्रसाद के दादा के दिनों से ही खड़ा झोपड़ी जैसे घर को तोड़कर थोड़ी जगह निकाली गई। कुल मिलाकर हनुमान बाबा के आविर्भाव के साक्षी बरगद, मंदिर गृह तथा थोड़ी और जगह आश्रम में तब्दील हो गए। दिन पर दिन लोगों का समागम बढ़ने लगा। भूत-भविष्य, अमंगल, बीमार-अजार ठीक करने के लिए पूजा विधान आदि बताकर आम लोगों को धन्य करने के साथ ही हनुमान बाबा करोड़पति व्यवसायियों को और धनवान बनने, विधायक, मंत्री-संतरी को और अधिक शक्तिशाली बनने के लिए मंत्र देने लगे। इसके साथ ही हनुमान बाबा का शक्ति-ऐश्वर्य भी बढ़ने लगा।

पिछले छह-सात महीने के बाद हालांकि हनुमान बाबा के दर्शनार्थियों की भीड़ कमने लगी थी, बावजूद हनुमान बाबा के रूप में प्रतिष्ठित किरण प्रसाद के दिन सुख-शांति-सम्मान से गुजरने लगे।