हर दिल जो प्यार करेगा / सुशील यादव

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जनाब आपका जवाब गलत .....!

आपकी तो ये आदत है कि मुखडा देखते ही तीर निशाने पे लगाने की सोच लेते हो ?

आज के जमाने में ये जरूरी नही कि प्यार करने वालों को गाना, गाना अनिवार्य हो ?

अब फिल्मी ,हीर –रांझा ,लैला-मजनू,शीरी –फरहाद वाले दिन लद गए|

तब किसी डायरेक्टर को रोमेंटिक दो-चार गानो का जुगाड हुआ नहीं कि, पूरी फिल्म बनाने की सोच लेते थे।अपने हीरो हीरोइँन से बात –बात पे गाना गवा बैठते थे।

इधर पिता ने इम्तिहान का मार्कशीट देखना खत्म नहीं किया, उससे पहले गाने के बोल चालु हो जाते थे।

ये कैसा इम्तिहान प्रभु ,ये कैसा इम्तिहान ....,

तुने बनाया इंसान प्रभु ,तू ने बनाया इंसान।

अगर बनाया इंसान ,काहे न डाले प्राण .....

गणित ,भूगोल कराया फेल ....

दिया ‘दीया’ हाथ बिन तेल ...

कभी भगत को पहचान ....प्रभु, कभी भगत को पहचान..

बाप का पिघलना,बेटे की पढ़ाई छुड़वाना,बेरोजगार अपढ़ बेटे का रईस बनना सब एक गाने के फ्लेश-बेक में हो जाता था।

हीरोइन से इश्क के मुद्दे पर घर वालो से नाराजगी,इंटरवेल के बाद चलती थी।

डाइरेक्टर को ,नदी के गाने ,’पनिया भरन’ के गाने ,सखी-सहेली के गाने,मंदिर जाने के बहाने वाले गाने और सब गानों में उलाहनो ,उलझनों को ...फिल्माने का उस जमाने में एक्सपर्ट होना जरूरी होता था।

सब गानों में मीठी याद, याद में कसक, कसक में दर्द, दर्द में पीड़ा , जो जितनी अच्छी तरह से समेट ले वही बड़ा डायरेक्टर ....|

रात का गहरा सन्नाटा है मगर हीरोइन के चहरे में गजब की लाईट दिखा के भाव को उभारना ,दिन का उज्वल प्रकाश है ,मगर हीरो किसी परछाई के नीचे दम साधे मायूसी का गीत गवा देना डिरेक्टर का कमाल होता था ।

उस जमाने में ये भी एक नजारा था।

“मेरे पीया गए रंगून ,किया है वहाँ से टेलीफून ,तुम्हारी याद सताती है।”

जिस जमाने में चार-पांच दिन लाइन मिलाने में लग जाते थे वहा ,बहुत सहज भाव से रंगून एस टी डी लगी-लगाईं मिल रही है|प्यार करने वालों को हर जगह छूट का,कंसेशन का प्रायरटी का मामला हो जैसे।

तब के लोगो को सिनेमाई नसीहत दी जाती थी कि ,गाव में कोई ‘खाप-पंचायत’ नहीं बेखौफ हो के प्यार करो ,गाना गाओ ,विलेन ठोको, शादी बनाओ|

पूरे फ़िल्मी एपीसोड में बाप से ज्यादा कोई दूसरा तंग-बेहाल नहीं रहता था।बेचारा बाप अपनी इज्जत ,पगडी और प्रतिष्ठा के नाम पर बेटे को, बेटी को ‘प्यार’ से दूर रखने की कोशिशे करता था।आखिर में उसे झुकना है ,ये दर्शक टिकट लेने के पहले भी जानते थे।

जनाने क्लास में सुबकियों का दौर चलता था ,बड़ा जालिम बाप है ,ये बुआ को तो काट के फेक देना चाहिए बहुत दुष्ट है, जैसे कमेंट्स लाखों बार सुने गए होंगे।

हीरो या हिरोइन तब के हालात में सिसकियों भरा विरह गीत गा लेती थी जो बिनाका गीत माला में सुपरहिट हो के दो-तीन सालों तक बजा करता था।

जनाब हमने भी प्यार-व्यार किया है।

जिंदगी भर गाना गाने का सिचुएशन तलाशते रह गए।गाने की स्क्रिप्ट नहीं मिली।खुद की बनाई ‘चार लाइन’ के ‘बोल-धुन’ नहीं जमे।अकेले भी गुनगुनाने की हिम्मत नहीं हुई।कभी उसको चेताया कि इस मौके पर हमें कुछ गाने का जी कर रहा है, तो वे कहती कोई फिल्मी गाना वो भी सुर में गा सको तो सुना दो वरना टाइम क्यों खराब करते हो ?

हमारे सिनेमा वाले, जाने कैसे सत्तर-अस्सी सालो से दिल की आवाज को लगातार बिना रोक-टोक फिल्माए जा रहे हैं ?

हाल के दिनों में प्यार की अभिव्यक्ति में मुन्नी बदनाम हो रही है,चमेली पउव्वा चढा रही है ,कोई झंडू बाम रगड रही है,तो कोई उ.... ला... ला करके मस्तिया रही है|किसी की एंट्री में घंटी बज रही है तो कोई लुगी खिचाई में लगा दीखता है।इजहारे मोहब्बत का ये आलम कहाँ जा के रुकेगा पता नहीं ?

प्यार के एक्सप्रेशंन ,इमोशन के तरीके में बदलाव हर युग में अपने –अपने तरीकों से होते आया है|तुझको मिर्ची लगी तो मै क्या करू .....?

पहले खिचडी की गंध से पता चलता था कि अमुक घर में कोई बीमार चल रहा है ,अब तो घर-घर खिचडी पक रही है,मगर जरूरी नहीं कि सब बीमार हों ?