हवा का रुख‌ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
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बस स्टाप पर बस रुकी तो तीन चार कालेजियट बस में हो हल्ला करते हुये प्रविष्ट हुये | भीड़ बहुत थी, जगह बनाकर वे मेरे बगल में खड़े हो गये | बस थोड़ी चली थी कि वे सब के सब भीड़ को चीरकर गेट की तरफ बढ़ने लगे | मैंने उनसे कहा कि क्यों इतनी जल्दी कर रहे हो, अभी अगला स्टाप आने में देर है |

"अंकल हमें हनु से मिलना है |" एक बोला |

"हमें हनु से गुड मार्निंग करना है |' दूसरा चहका |

"हनु हमारा डियर डियर, वेरी डियर फ्रेंड है |' तीस्ररा इठलाकर बोला

फिर दरवाजे के पास आकर बाहर झांकते हुये और हाथ हिलाते हुये सब चिल्लाने लगे|

" हाय हनु"

"गुड मार्निंग हनु"

"टेक केयर हनु"

"लौटकर फिर मिलेंगे हनु"

मैंने खिड़की से बाहर झाँककर देखा, बस शहर के एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के सामने से गुजर रही थी और वे लड़के मंदिर की तरफ हाथ हिला हिलाकर उक्त संबोधन कर रहे थे |

मैं सोच रहा था हवा का रुख कितना बदल गया है |