हस्तांतरण / ओमप्रकाश क्षत्रिय

Gadya Kosh से
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अच्छी भेंटपूजा के साथ नाचगाने का मजा लेने के लिए रमेश सपरिवार आए हुए थे। सभी लोगों के बीच बैठे नवनीतलालजी ने प्रसन्नमुद्रा में हाथ जोड़ लिया।

उन का पुत्र अपने ससुराल वालों को नेक के कपड़े दे रहा था।सभी के बीच वे नीचे मुंह कर के बैठे थे। यह बात रमेश को उन के स्वभाव के विपरीत लगी।

उसे याद आया। नवनीतलालजी ने कहा था, "बेटा! तेरी मौसी चाहती है कि समय के साथ सत्ता का हस्तांतरण पुत्रों में हो जाना चाहिए."

"लेकिन मौसाजी, अभी तो आप सभी कामधंधा संहाले हुए हैं," रमेश ने कहा तो वे बोले थे, "बेटा! समय का यही तकाजा है।"

तभी विचारमग्न रमेश को उस के पुत्र ने झंझोड़ दिया, "पापाजी! हर बार की तरह आप को और हमें भी कपड़े मिलेंगे? आप सलहज है।" उस ने पूछा।

"नहींनहीं बेटा," रमेश अब तक नवनीतलालजी की स्थिति भांप चुका था। सत्ता के साथ परिस्थिति बदल चुकी थी। वह बोला, "अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ। मुझे कुछ नहीं चाहिए."

"मगर, मुझे तो अब बहुत कुछ चाहिए," रमेश अपने पुत्र की इस सुगबुगाह को अंदर तक महसूस कर रहा था, "तो क्या उसे भी नवनीतलालजी की तरह बनना पड़ेगा," यह सोच कर वह अपनी पुत्र को खोजी निगाहों से परखने लगा।