हाईबिलाई / रामस्वरूप किसान

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सेठ घणो ऊंतावळो। बीं रै तो झांझरकै ई चिमकणियो बाव आयग्यो। बो एक दिन में ई सगळा अणसार्या सारणा चावै। ईं सारू मूं अंधारै ई मंगळै रो कूंटो खडख़ड़ा दियो।

इण पौ'रै र_ में बो बापड़ो गळ में गोडा घाल्यां गूदड़ां में पड़्यो हो। आखै दिन रो थाकेलो घरड़कां रै बंट निकळै हो अर फेर बखावटै री नींद रो तो न्यारो ई सुवाद। बो जाग्यो कोनी। पण सेठ ई तो कम कोनी हो। किवाड़ मचकावण लाग्यो। हेला-हेल हुग्यो। अब नींद नीं टूटै तो के करै। आं हेलां सूं तो मुरदो जागज्यै। नींद टूटी। बो किवाड़ां कन्नै आय'र बोल्यो-

'थे चालो, म्हैं आवूं।'+

'हां, ऊंतावळ करी भीया! आजकाल दिन ई छोटा हुवै।'

किवाड़ां री तरेड़ां मांकर झांक'र जांवतो-जांवतो सेठ बोल्यो।+

मंगळो ठाडो-सो हुंकारो भर'र पाछो ई साळ में बड़ग्यो। पाळै सूं खडख़ड़ो चढग्यो। दांत बाजण लागग्या। बो भळै गूदड़ां में जाय बड़्यो।

होळै-होळै गूदड़ निवाया हुया। ईं रै साथै ई ओजूं आंख लागगी। उण री नींद तो जद टूटी, जद किंवाड़ टूटण नै हुग्या।

बो झिझक'र खड़्यो हुयो। किंवाड़ां कन्नै गयो। तरेड़ां मांकर देख्यो तो बारै सेठ खड़्यो हो।

'दिन ई कोनी ऊग्यो अजे तो।'

बो उबासी मारतो बोल्यो-

'दिन तो ऊगग्यो भीया! सूरज निकलण आळो है। अर फेर, निकळ्यो'र छिप्यो।' थूं ऊंतावळ कर थोड़ी....।

दांतरी काढतो सेठ बोल्यो।

'हां, थोड़ो पाणी गेर ल्यूं डील पर।...ईब ई आवूं।'

सै'ज भाव सूं मंगळै कैयो अर घडिय़ै सूं पाणी लेय'र मूं पर छाबका मारण लागग्यो।

सेठ पगां कानी देखतो अर भीतर ई भीतर किरड़ीजतो घर कानी चाल पड़्यो। बो पूरै गेलै मंगळै नै कोसतो रैयो, आं ध्याडिय़ां रो कित्तो सिर सूज्यो है। अैलकार दांईं भातै तो उठै है स्साळा! कांईं ठा कद आयसी कमीण। सूरज तो निकळग्यो। ईं रै साथै ई उण रो ध्यान ऊगतै सूरज पर गयो। ऊगण दिस री दिखणादी कूंट में गुलाबी गोळो आभै में कुंम-कुंम खिंडावै हो। भोत मन मोवणो दरसाव हो। पण सेठ रै सौंदर्य-बोध नै तो लकबो मारग्यो। उण नै तो ओ सूरज फगत आग रो गोळो लागै हो। बाखळ में आय'र उण भळै सूरज कानी देख्यो जको होळै-होळै आप रो रंग बदळै हो। धोळै होंवतै सूरज नै देख'र सेठ रै कीड़ी-सी चढण लागगी। इत्तै मोडै़ आवैगो मंगळियो।

बो माखियां में डगरै-ज्यूं बाखळ में गेड़ा काटण लागग्यो। उडीक। करड़ी उडीक। अेक-अेक छिन उण री छाती चीर गुजरै हो।... सौ रिपिया ध्याड़ी अर इत्तै मोडै़ आवणो। किंयां पोसावै कोई? कित्ता हरामखोर हुग्या आज रा ध्याडिय़ा।

उण रै काळजै में हाईबिलाई लागगी। उण ओजूं मंगळै रै घर कानी जावण री ध्याई।

पण इतराक में उण रै किवाड़ां पर चिमठी बाजी। सेठ रै काळजै बा ई हरकत हुयी जकी पेपर हाथ मांय आंवतां ई हिमतान में बैठ्यै पढेसरी रै हुवै।

बो झट-दणी किवाड़ां पर गयो अर खोल दिया। देख्यो तो हाथ मांय करोती अर खांदै राछां री पेटी चक्यां मंगळो खड़्यो हो।

उण सेठ सूं रामरमी कर'र बैठण सारू जगां पूछी।

सेठ आगूंच ई सगळो साज-बाज जचा राख्यो हो। क्यूंकै बो अेक पल ई बेकार नीं जाण देणी चावै हो। पैलां सूं ई पूरै काम नै टेम साथै फळायां बैठ्यो हो। बो मंगळै रो पूरो फायदो उठावणो चावै हो। बो उण रै डील सूं आखो काम सूंतणो चावै हो। इत्तो कै ओरां सारू कीं बचै ई नीं।

ईं सारू ज्यूं ई मंगळै बैठण नै जगां पूछी, सेठ भींत सा'रै बिछायोड़ी गूदड़ी कानी आंगळी कर दी। जकी रै च्यारूंमेर लंगडै़-लूलै फरनीचर रा ढिगला हा।

मंगळै काणै कोइयै ढिगलां कानी ख्यांत्यो। अर बांरै बिचाळै बिछायोड़ी गूदड़ी पर बैठग्यो। पछै उण औजारां री पेटी खोलÓर सगळा औजार बारै काढ्या। धार लगाई। बरसोलै अर बींधणी नै पथरी पर रगड़-रगड़ ब्लेड बरगा तीखा कर लिया। अर करोती रै दांतां में बेड़ घाल्यो।

भळै सेठ नै बूझ्यो-'इब बोलो सेठां के-के करणो है?'

'करण नै के हाथी-घोड़ा करणा है यार। इण सगळै फरनीचर री मरम्मत करणी है। आथण तांईं नाको लगा देवैलो? फगत कारी-कुटको अर जोड़ा-सांधी ई तो है।'

मंगळो खड़्यो हुयो अर सगळै कळजै नै न्यारो-न्यारो छांटण लाग्यो।

च्यार कुरसी अर दो मेज, हरेक रै अेक-अेक टांग कोनी। पुराणै जमानै रा दो पिलंग, अेक लंगडो अर दूजो बिचाळै सूं जखमाल। तीन पुराणा पीढा, अेक रा दो बाईया गायब अर दोवां रा दो-दो पागा अधटूट्या। अेक जूनो मांचो, जकै रै अेक ईस अर अेक सेरू कोनी। दो बोदी-सी किवाड़ां री जोड़ी, जकी सांगोपांग चेपा-सांधी मांगै। च्यार पल्ला जंगळां रै किवाड़ां रा, कीं रै कब्जा लगावणा तो कीं रै कूंटा। अेक आदम-जुग रो काठ रो संदूक-जकै रो ऊपरलो हिस्सो जाबक खज्योड़ो। इण सगळै कबाड़ री छंटणी कर'र मंगळो पाछो ई गूदड़ी पर बैठग्यो। 'हां तो, आथण तांईं सगळो काम सळटा देसी भीया? बींयां दीखै-दीखै ई है आपां नै। काम घणो कोनी।'

सेठ उण रै कन्नै बैठतो बोल्यो।

'कोसीस तो करस्यां।'

कैंवतै थकां उण अेक लंगड़ी कुरसी नै आप कानी खींची अर उण री चौथी टांग घड़ण लागग्यो।

सेठ उण रै कन्नै बैठ्यो बरसोलां री चोट गिणै हो। उण रै काळजै में लकलकी लागरी ही। बो अेक झटकै में ही आखै फरनीचर नै भाल देखणो चावै हो। पण काम तो काम रै बळ ई हुवै। ईंयां हथाळी में सरस्यूं कद पाकै!

मंगळो आप रै हिसाब सूं काम करै हो। सेठ आप रै हिसाब सूं चींतै हो- थोड़ै टेम में घणो काम। सेठ रै काळजै में बळत ही तो मंगळै रो काळजो सीतळ। उण रै चै'रै पर चेळको हो। रुणक ही। दुनियां किसी, आप जिसी। ईं सारू बो सेठ री मनगत सूं बिगानो अर चै'रै री रंगत सूं अणजाण हो। क्यूं कै बो तो अैन धोळी माटी रो खेलणियो हो। जे बेमाता रत्ती-भर काळस मिला देंवती तो बोई बापड़ो चै'रा देख'र भीतर री घरळमरळ पिछाण लेंवतो।

मंगळै आधै दिन में आधो फरनीचर हाथां मांकर टिपा दियो। क्यूंकै सेठ औसाण ई नीं लेवण दियो। अेक नग भाल करै इत्तै नै दूसरो आगै सरका द्यै। मूतण नै ई नीं उठण दियो बैरी। दूजी कानी मंगळो ई करड़ो घणो। बरसोलो थाम्यो ई कोनी। दोपारै चा आयगी। कप में माखी पडग़ी। पण बो जीव तो आप री धुन में लाग्यो ई रैयो।

ईंयां करतां-करतां दिन मैर बैठग्यो। ठारी उतरगी। काम छोडण रो बगत हुग्यो। मंगळै घणकरैÓक काम नै सांकडै़ लगा दियो। फगत दो नग रैया हा। पीढै रै दो बाईया लगावणां अर किवाड़ रै अेक पल्लै रा कब्जा लगावणा।

पण सियाळै रो दिन डूबण लाग्यां पछै देर नीं लगावै। दिन डूबग्यो। अंधारो रळण लागग्यो। सेठ रै काळजै में बांइटो-सो आयो, अै दो नग रैय नीं जावै। उण च्यानणै सारू झट बिजळी रो बटण दाब्यो। पण लोटियो नीं चस्यो। '...बिजळी तो है ई कोनीऽऽ' आपो-आप मूं सूं निकळगी। बो ऊंतावळ कर'र कमरै में बड़्यो अर दूजै ई पल लालटण चास ल्यायो।

रोगलै-सै लाल-लाल च्यानणै में मंगळो लक्कड़ नै ढब करण लागग्यो। उण रै ना कोई ऊंतावळ ही अर ना ई हड़बड़ी। बो तो पूरी जी टिकाई सूं बरसोलो बांवतो जावै हो। करम रो सांपड़द रूप मंगळो। जकै ना ई तो कदे टेम तोल्यो अर ना ई टेम तोलÓर काम कर्यो। बो तो फगत काम करणो ई जाणै।

उण नै ठा ई नीं हो कै कद दिन छिप्यो अर कद अंधारो रळग्यो। अर कद सेठ उण कन्नै लालटण लाय'र धर दी। पण दूजी कानी सेठ रै तोड़ा-चूंटी लाग री ही।

जद मंगळो दोनूं नग फारिग कर'र गोडां पर हाथ देय'र खड़्यो हुवण लाग्यो तो धूजतै हाथां सूं अेक लकड़ी पकड़ांवतो सेठ बोल्यो- 'ईं री अेक डोई तो और बणा दे भीया!'

अधखड़्यो हुयोड़ो मंगळो पाछो ई बैठग्यो। अर सै'ज भाव सूं लकड़ी नै डोई रो रूप देवण लागग्यो।

दूजी कानी आमण-दूमणो-सो सेठ बाखळ में गेड़ा काटै हो।