हाहुती / प्रदीप बिहारी

Gadya Kosh से
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तीन दिनसं हाट-बजार होइत रहलैक। बजारसं समान कीन क'अबैक, फोनक कैमरामे समानक फोटो लेल जाइक आ ह्वाट्सेपक पारिवारिक ग्रूप में अपलोड क' देल जाइक। आ तकर बाद प्रतिक्रिया।

"लड़कीक लहंगाक कने आर चटकदार होमक चाही छल। लड़कीक पिताक सूटक रंग कने आर सोबर होइतय तं नीक। हुनक बयसकें ध्यान रखैत।" देवयानी समाद पढ़ि रहल छलीह, "आर कोन-कोन काज रहि गेलैए?"

"कोनो नहि, सभटा काज भ" गेलै। लिखि दियौ। "पुष्कर बाजल," खाली व्हाट्सेप पर लिखने सभ किछु ओरिया जाइत छैक। "

"अहाँ किए लोहछैत छी? ओकरा सभकें समय रहितैक तं..." देवयानी बाजलि, "आब अहांकें कौन टेन्सन? आब खाली साड़ीक कीन-बेसाह बाकी छैक आ ताहिमे अहाँ हमर संग नहि द' सकैत छी। साड़ी किनबाकाल दोकानमे रहने देह कुरिआय लगैत अछि अहांक।"

"हं, एलर्जी अछि। अहाँ सभक हिस्सक होइए जे एकटा साड़ी कीनबामे दू-तीन टाल साड़ी देखैत छी, तखन पसिन पड़ैत अछि। के बेगारी करैत रहय? हे लिअ'कार्ड आ कीनू ग' साड़ी।"

"जा, सेल्समैनक संवादक तं चर्चे ने केलहुं?"

"से की कोनो बेजाय कहैत छी हम?" पुष्कर बाजल, "अहाँ सभकें केओ ठकि लेत। जहाँ सेल्समैन कहत-यह डिजाइन अभी चला हुआ है कि अहाँ सभ फुलि क' मालपूआ।"

"बेस, चुप रहू। काल्हि आराम करब अहाँ। हम जायब बजार।"

"आराम की करब? हमरा भाग्यमे लिखल अछि आराम?" पुष्कर बाजल, "काल्हि अबेर धरि बैस' पड़त आफिसमे।"

"तं अहाँ सबेरे अबिते कहिया छी?"

तखनहि वीडियो काल अयलैक।

"पापा! टिकट सभ कन्फर्म अछि ने।"

"ठीक साठि दिन पहिने काटने रही। तैयो चारिटा कन्फर्म नहि भेल। राजधानीमे जल्दी कन्फर्मे ने होइत छैक।"

"कोनो हर्ज नहि, तत्कालमे देखल जेतै। हमर चारिटा संगी आर बढ़ि जायत।"

"टिकट?"

"अहाँ टेन्सन नहि लिअ'। मैनेज भ' जेतै।"

"बेस।"

"गामसं बाबा सभक की प्रोग्राम?"

"ओ तीनू बापूत गरीब रथसं बरौनी औताह आ ओत्तहि राजधानीमे संग भ'जेताह। दिल्लीमे तं सभ गोटें एकठाम भ' जायब।"

"ई तं रिस्क बला बात भेल। हुनका सभकें एकदिन पहिने बजा लियनु।"

"हमहूँ सैह कहने रहियनि, मुदा नहि मानलनि। कहलनि-समयक अभाव अछि।"

"गाममे काजे कतेक रहैत हेतनि? रिटायर्ड छथि तैयो..."

"से ओ जानथि।" पुष्कर बाजल, "हमरा संदेह अछि जे..."

"की?"

"ओ सभ अएबो करताह की नहि?" पुष्कर बाजल, "हुनका सभक मोन रहनि जे पहिने सिद्धांत होइतय, तखन इंगेजमेंट।"

चुप। फोटो स्टिल।

"हमरा सुनि पाबि रहल छें?"

फोटो हिललै, "हं। हुनका सभकें बुझबियनु जे समयक संग सोचथि। बियाह तं ब' र-कनियाक हेतैक ने! तें पहिने ओकर सिद्धांत मिलतैक ने। तकरे सार्वजनिक रूप भेलै इंगेजमेंट। गार्जियनक स्तर पर जे भेलैक से तं बादक बात।"

"ई तं प्रेम-बियाहक केसमे ने, जकर नायक-नायिका तों सभ छें।"

"अरेंज मैरेज में सेहो आब अहाँ सभ कर' लगलियैए. बाबाकें बुझबियनु। हम ओकरा कहने छियैक जे हमर ग्रैंड पा सेहो रहताह। प्लीज पापा।"

"फदके होइत रहतै कि खेनाइयो पिनाइ हेतै।" देवयानी बाजलि।

"खेनाइ नहि भेलैए? बेस, खा लिअ'।"

"खायब ने। मम्मीसं गप क' ले।"

पुष्कर पत्नी दिस सेलफोन बढ़ा क' निसास छोड़लक।

छोटका बेटासं गप कयलाक बाद मोन भेलैक जे समधिसं गप करय। हुनका दुनू प्राणीक कार्यक्रम तय छनि ने! छुट्टी भेटलनि कि नहि।

ओछाओन पर पसरितहि देवयानी निसभेर भ'गेलि। मोन-देह ठेहिआयल छलनि। मुदा पुष्करकें निन्न नहि भेलैक। मासक अन्तिम सप्ताह छैक। सभसं बड़का काज एन.पी.ए.क रिकवरी। फोलोअप। कोनहु हालमे एन पी ए लेवल कम करबाक छैक। नहि तं, डांट-"की करैत रहैत छी अहाँ सभ? एतेक सीनियर आफिसर छी। काजकें अपन बुझियौ।' ओन'करियौ। बोरोअर जं सोझे-सोझ लोनक किस्त दैये दैत त' हमरा सभक कौन काज?" आ बहुत रास आहे-माहे।

छोटका बेटाक बियाह लेल खूबे उत्साहित छलि देवयानी। ओना बड़कोक बियाहमे बड़ उत्साह छलि। पहिल बेर सासु बनबाक उत्साह छलैक। भिन्न-भिन्न प्रकारक कल्पनासं मोनेमोन पुलकित होइत रहलि। ओ बियाह तय कयने छलि देवयानी आ पुष्कर। ई बियाह छोटका स्वयं तय कयने छलैक तें दुनू बियाहक उत्साह फराक-फराक छलैक।

एहिमे तय ई भेल रहैक जे कन्यागत ओकरे शहरमे आबि क'बियाह करताह। पुष्कर ई बात साफ-साफ कन्यागतकें कहने छलनि। कन्याक पिता तकर प्रतिवाद कयलनि, मुदा पुष्कर कहने छलनि, "हमरा बेटी नहि अछि, तें चाहैत छी जे बेटी आ बेटा, दुनूक बियाहक आनन्द ली। अपने सभ व्यवस्था लेल चिन्ता नहि करू। बसात जकां स्वतंत्र भ' क' आउ एन्ज्वाय करू।"

"मुदा, हमरा ओहिठाम कोनो उत्सव नहि हेतै तं केहन लगतैक? बियाह तं कन्येक घर पर होमक चाही।"

"मानल। मुदा ..."

अंततः कनियाक मायक प्रस्ताव पर सहमति भेलैक। तय भेलैक जे इन्गेजमेंट हुनका ओहिठाम होइक आ बियाह पुष्करक शहरमे। भौगोलिक रूपें बेसी दूर होयबाक कारणें पहिने तय रहैक जे इन्गेजमेंट दुनू गोटेक करीब-करीब बीचक शहर दिल्लीमे होइक। मुदा, से बदललैक।

"सिद्धांत" क अवधारणा कन्यागत ओहिठामक वैवाहिक चलनसारिमे नहि छलैक।

तें पुष्कर आ देवयानीक व्यस्तता बढ़ल छलैक। पुष्करसं बेसी देवयानीक। पुष्करकें छुट्टी भेटब मोश्किल छलैक। समयक अभाव तं घरक सभ सदस्यकें छलैक। जेठका तं साफ-साफ कहने रहैक जे ओ दुनू प्राणी दिल्ली में संग होयत। दिल्लीसं बरौनी अयबा-जयबाक समय नष्ट किएक करत? दोसर बात ई जे एतेक समये ने भेटतैक। बंगलौरसं सोझे दिल्ली। ओकर कम्पनीके जापानक एकटा कम्पनीसं नमहर डील होम' बला छैक। तकर टीम लीडर वैह अछि। तें ओकरा जापान सेहो जाय पड़तैक आ ई काज सभ जं ओही समय पड़ि गेलैक तं बड़ मोशकिल। तैयो कोनहुना मैनेज करत ओ. तें बंगलौरसं सोझे दिल्ली।

पुष्करक छोट भाइ सेहो कहलकै जे ओहो दिल्लियेमे संग होयत। अहमदाबाद सं सोझे दिल्ली। इन्गेजमेंटक दिन सेहो दूटा मीटिंग तय छैक। तीनो दिनक समय बहार करब मोश्किल लागि रहल छैक। तैयो प्रयासरत अछि जे।

पुष्करक बास कहने रहथिन जे तिथि एहि तरहें तय करू जाहिसं दोसर वा चारिम शनि-रवि बला छुट्टीक लाभ भेटि जाय।

यात्रासं दू दिन पहिने पुष्करकें जनतब भेलैक जे समधि दुनू प्राणी नहि जा सकताह। छुट्टी नहि भेटलनि। ओ हुनका दुनूक टिकट केन्सिल कयलक।

बरौनी टीसन पर बुझना गेलैक जे गामसं दुइए गोटे एलाह अछि। देवयानी टिपलकि, "कहू त'! दुइए गोटेकें अयबाक छलनि तं पहिने खबरि क' दितथि। एकटा टिकट तं दूरि भ' गेलैक। राजधानीक टिकट। आब एखनि केन्सिलो कयने कते भेटत?"

"छोरू ई गप। एहिना होइत छैक। काज-तिहारमे थोड़े आगू-पाछू होइते छैक। अन्त-अन्तमे कार्यक्रम बदलल हेतनि।"

जेठका बेटा फोन पर सभटा सूचना लेलक। छोटका बेर-बेर फोन करैत रहल आ जनतब लैत रहल। ओहो अपन संगी सभक संग दिल्लिए पहुंचत। "

आगांक टेन पुरानी दिल्ली सं छलैक। तें सभकें ओतहि पहुंचबाक छलैक।

सभसं पहिने अहमदाबादसं पुष्करक छोट भाय पहुंचल। ए-सी वेटिंग रूममे समान राखलक। फोनसं सभक जनतब लैत रहल। के कत'धरि पहुंचल अछि? सभकें नोत द' देलक जे भोजन एतहि हेतैक। गप-सप हेतैक। तकर बाद चारि बजे दोसर टेन पकड़ल जेतैक।

पुष्करक भातिज खूब उत्साहित छल। सभसं भेंट होयबाक उत्साहसं सराबोर छल। बेर-बेर पितासं पूछय, "डैड! अब कितनी देर है?"

ओ बड़की माय आ बाबासं भेंट करबा लेल उताहुल छल। ऒकर माय भरोस दैत रहैक, "आएंगे ही। धीरज रखो।"

"जितनी जल्दी आएंगे, उतनी ज़्यादा बातें होंगी।" छौड़ा बाजल, "बड़ी मम्मी माने बड़की माय और बाबा के साथ मैथिली में बतियाने में मजा आता है।"

मायकें हंसी लगलैक। ओ पतिसं कहलकि, "सुनलियै?"

पत्नीक प्रश्नक उतारामे पति मुस्किया देलक।

पत्नी फेर बाजलि, "खाना द' कहि देलियै?"

"हं। आनलाइन बुक क' देलियैए. बारह-साढ़े बारह बजे धरि एतहि पहुंचा देत। ताबत सभ गोटें पहुंचि जेताह।"

"हं, ठीक।" छौंड़ा बाजल, "साथ-साथ खाने में मजा आएगा।"

"भूख नहीं लगी है?" माय पुछलकै।

"नहीं।" छौंड़ा अगराइत बाजल, "नै गय।"

कनिए कालक बाद पुष्कर जेठका बेटा आ पुतहु जुमल। अभिवादनक औपचारिकताक बाद बाजल, "एत'असुविधा नहि हैत? ओते गोटे चारि घंटा एत' रहबै। गप-सप हेतै। एक परिवारक बेसी गोटेके रहने थोड़ेक न्वाज हेबे करतै। दोसर यात्री सभकें असुविधा भ' सकैत छैक।"

पित्ती उतारा देलकै, "अही प्लेटफॉर्म पर टेन पकड़बाक अछि, तें सोचलहुं जे एहीठाम रूकल जाय। सामान सभ बेसी रहतैक, तं सुविधा हेतैक।"

"तं एना करी जे एक दिससं कुर्सी सभक नीचामे समान सभ राखि क' जगह छेकि ली।" पुतौहु बाजलि।

"सेहो नीक।"

"छौंड़ा दहीमे सही लगौलक," गुड आइडिया भाभी। "

तखनहि पुष्कर सभ सेहो पहुंचि गेल। वातावरण बदलि गेलैक। अभिवादन आ हालचालक क्रम शुरुह भेलैक। देवयानी जाउतकें आलिंगनमे लैत बाजलि, "छ मास में नमहर भ' गेलही बेटा। किछ दिनमे मोंछक रेघ आबि जेतौ।"

छौंड़ा कनेकाल मुस्किआइत रहल। फेर बाजल, "वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में त' देखाइते छलियौ गे बड़ी मम्मी। ओह नो, बड़की माय!"

सभ हंसल। देवयानी बाजलि, "फोटो आ साक्षात् में बड़ अन्तर होइ छै बाउ।"

तखने छोटका सेहो अपन मित्र-मंडलीक संग पहुंचल। वातावरणक आत्मीय व्यस्तता कने आर बढ़ल।

सहयात्री सभ सेहो अचरजसं देख" लागल।

वेटिंग रूमक अटेन्डेन्टकें चकबिदोर लागि गेलैक। ओ पुष्करक छोट भाय लग आबि क' बाजल, "आपलोग कहीं बारात जा रहो क्या? टिकट तो दिखा दो सर। रजिस्टर में इन्ट्री तो मार दूं।"

पुष्कर बाजल, "चलो। इन्ट्री कर देता हूँ।"

मुदा, भाय रोकलकै, "हम जाइत छी।"

तखनहिं जेठका ककाक गप लोकलक, "अहाँ सभ बतिआउ। बहुत दिन पर बाबा सभ सं भेंट भेल अछि। हम जाइत छी।" आ अटेन्डेन्टक संग गेल।

देवयानी दियादिनीक संग बतिआ रहल छलि। दियादिनी पुछलकि, "केहन लगलनि ई होम' बाली पुतौहु?"

"फोटो में तं नीके बुझाइत छै।"

"नीक नै बड़की माय! स्मार्ट।" छौंड़ा टीपलक।

"से तं देखबै, बोली-बानी आ व्यवहार बुझबै तखन ने..." देवयानी बाजलि, "काम प्यारा की चाम प्यारा!"

छौंड़ा चट द' पूछि बैसल, "माने?"

"माने, आदमी अपन काज सं सुन्नर होइत अछि, स्नेह पबैत अछि, चाम माने रंग सं नहि।" देवयानी बाजलि, "बेटा कें पसिन, तं हमरो पसिन। संग-संग रहबाक छैक ओकरे दुनूकें।"

पुष्करक छोट भाइ अपन पत्नीकें कहलक, "आब खाना द' जायत। फ्रेश होइत जाउ।"

छौंड़ा उत्साहित छल। बाजि उठल, "हमलोग मेंटली प्रीपियर्ड हैं।" भाउजि दिस तकैत बाजल, "क्या भाभी?"

भाउजि मुस्किआयलि।

छौंड़ाक माय बाजलि, "पहिने दुनू कका आ अहाँ सभ खाइत जायब, तखन ने हम सभ।"

"कका सभ तं नहयताह। कहैत छथि जे बिनु स्नानक कोना खायब?"

"एत' नहयथिन?"

देवयानी बाजलि, "एत' असुविधा हेतनि। एहिठामक स्नान घर तं सहरगंजा छैक। थम्हू! हम कहैत छियनि।"

"कहथुन्ह। बरू, ओत'पहुंचि क' गेस्ट हाउस में नहा लेताह।"

ताबत भोजनक पैकेट सभ आबि गेलैक। छोटका समान राखि अपन संगी सभक संग बहरा गेल छल। ओहो सभ घुरि आयल।

अटेन्डेन्ट ओकरा सभक आगत-भागतमे लागि गेल छल। लगै जेना वेटिंग रूमेमे कोनो उत्सव होइक।

मुदा, जेठका एहि बात लेल साकांक्ष छल जे दोसर यात्री सभकें कोनो असुविधा नहि होइक।

भोजनोपरान्त सभ गप-सपमे लागि गेल।

पुष्कर कका सभसं गामक हालचाल सुनि रहल छल, "तों सभ गाम छोड़िए देलहक। घर-दुआर ढहि-ढनमना रहल छह। अपना भरि हम सेबने छियह। गाछी-बिरछीक सांगह हमरो बुते नहि भ' पबैए आब।"

दोसर गोटें बजलाह, "बेजाय नहि मानह त'कहै छियह। बड़का-बड़का कमौआ छह तों सभ। पाइ कमेबासं फुर्सतिए नहि छह। सुनै छियह-इहो कनियाँ जे भ' रहल छथुन, सेहो कोनो कम्पनी के बड़के पद पर छथुन। से सभ तं बड़ नीक, गामो-घरक सुधि लेबाक चाही। एहुना कतहु भेलैए जे साफे छुट्टी नहि भेटैत हेतह। हम सभ की नोकरी नहि कयने छी? मोन हेतह, तं मेडिकलो मारि क'चलि अएबह गाम। सर्टिफिकेट बनाब' लेल त' छैहे रामनारायण डाक्टर।"

पुष्कर दुनू भाइ गप सुनि गंभीर भ' गेल मुदा पुष्करक जेठका मुस्किया रहल छल। ओ बाजल, "एहि लेल टेन्सन किए लैत छी। घर सभके रिपेयर करबा दियौक। कत्ते लगतै?"

"सभ कथू पाइए सं नहि होइत छै बाउ।" बाबा बजलाह।

तखनहि अटेन्डेन्ट आयल आ बाजल, "साब जी! मेरा ड्यूटी अब समाप्त हो रहा है। कोई दिक्कत तो नहीं हुआ।" फेर जेठका दिस तकैत बाजल, "साब जी! मेरा नम्बर ले लो। जब आपलोग लौटकर आओगे, पहले फोन कर देना। मेरा ड्यूटी रहा तो बढ़िया, नहीं तो मैं चेंज करा लूंगा।" आ ओ अपन मोबाइल नम्मर बाज' लागल।

जेठका अपन मोबाइलमे ओकर नम्मर टीपलक।

अटेन्डेन्ट चलि गेल।

पुष्करक कका पोतासं पुछलनि, "एकरा कौन जड़ी सुंघा देलही जे पौनी-पसारी जकां सेवा में लागल छलौ?"

"वैह जड़ी, जकरा बारे में अहाँ एखने कहलियै जे ओइ सं सब कथू नहि होइत छै।"

बाबा जेठका सं पुछलनि, "बम्बै बला घर तं किराया पर हेतौ?"

"नहि, बेचि देलियै। बंगलौरमे दोसर ल' लेलियै। फेर कहिया मुम्बई जेबै तकर कौन ठेकान?"

"आ दोसर ठाम बदली भ' गेलौ तं?"

"की टेन्सन छै? ओतहु एहिना घर मैनेज भ' जेतैक।"

"घर की मकान?"

जेठका किछु नहि बाजल।

एहिबेर पुष्करसं पुछलनि पित्ती, "हौ! काल्हुक बीध सभ तं हुनके सभक चलनसारि जकां हेतनि?"

"आब तं सभक बीध एकहि रंगक भ' रहल छैक-ग्लोबल बीध।" पुष्करक भाइ बाजल।

"हं, आब बीध-व्यवहार टी.भी। निस्तुकी करैत छैक।" कका बजलाह, "देखलियै गेनालालक पोतीक बियाह मे। जयमाल लेल लड़िकी के चनमा ओढ़ा क'स्टेज धरि ल' गेलै भाय सभ। दोसराकें बड़ दुसथिन गेनालाल। अपना बेरमे सकदम। कोनो जूति नहि चललनि।"

ओम्हर दुनू दियादिनी आ पुतौहु सभक गप सठबे ने करैक। छोटका अपन संगी सभक संग व्यस्त आ मस्त छल। छौंड़ा सेहो छोटके भाइक संग छल।

टेन अयबाक जनतब होइतहि सभ गोटे जुटल आ हाथे-हाथ समान उठा क' प्लेटफॉर्म पर गेल।

देवयानीक चेहरा पर थकान आ तनाओ साफ-साफ झलकैत छलैक। भेलैक ई जे कन्यागत सभ अपना ओहिठाम महिला संगीतक कार्यक्रम रखने छलाह आ ओही दिन हिनका सभक घुरतीक टिकट छलनि।

महिला संगीतक जनतब होइतहिं देवयानी पुष्कर पर बरसलीह, "हिनकर प्रोग्राम सभ एहने होइत छनि। एते दूरसं अयलहुं आ किछु देखबो ने कयलहुं। एकदिन बादक टिकट कटिबतथि तं की होइतनि?"

"से प्रोग्राम पहिनेसं तय कहाँ छलैक? तय रहितैक तं..." पुष्करकें विनोद सुझलैक, "एकदिन बादेक टिकट कटबितहुं। अहाँ कें नाचबाक अवसर रहितय महिला संगीतमे।"

"सो बड़ी मम्मी शादी में डान्स करेगी।" देवयानीकें पकड़ैत बाजल छौंड़ा, "करबही ने गय बड़की माय?"

"मम्मी ईजी रह।" छोटका बाजल, "असलमे बियाहसं पहिने मोनीकें छुट्टी नहि भेट पौतै, तें एकाएक काल्हिए ई प्रोग्राम बनलैक। आखिर अपना सभक ओहिमे कौन काज? ओ तं लड़की बलाके दिसक छैक।"

पुतौहु बाजल छलि, "सभ कथू समये ल 'क' ने। लड़कीए बलाक बीध छै, तै स'की? पहिने बुझल रहितै, त' हमहूँ सभ इंज्वाय करितहुं।"

तेसर दिन सभ गोटे भोरे-भोर टीसन पर उतरल। ओही वेटिंग रूममे गेल। सभक आकृति पर ठेही झलकैत छलैक। पुष्कर बाजल, "चाह-ताह पीबि क' अपन-अपन गंतव्य दिस विदा होइत जायब आब।"

"आब कोना की प्रोग्राम छैक?" एकटा बूढ़ा पुछलनि। जेठका अपन मोबाइलमे व्यस्त छल। पुष्करक भाइ बाजल, "हमर फ्लाइट अछि साढ़े आठ बजे." जेठका दिस संकेत करैत बाजल, "एकरो फ्लाइट ओही आसपास में छैक।"

छोटका बाजल, "हमरा सभक ट्रेन अछि दस बजे. एतहि सं।"

बूढ़ा दुनूक आकृति पर उदासी पसर' लगलनि।

जेठका पिताकें कहलक, "नयी दिल्ली स्टेशन लग होटल बुक क'देलहुंए. अहाँ सभक टेन साढ़े चारि बजे अछि ने। अहाँ सभ ओतहि आराम करब आ टेन ध' लेब।"

तखने पुष्करक मोबाइल में मैसेज बला टोन बजलैक। ओ मोबाइल बहार कर' लागल। मुदा, जेठका तखनहि बाजल, "हमर मैसेज अछि। होटलक पता।"

चाह अएलैक। पीबैत जाइ गेल।

देवयानी उदास भ'गेलि। दियादिनीक मोन सेहो हहरल लगलैक। छौंड़ा सेहो उदास भ' गेल।

सभ अपन-अपन समान गोलियौलक।

पुष्करक भाइ आ जेठका सपरिवार संगहि विदा भेल एअर पोर्ट लेल। वातावरण मौन भ' गेलै जेना। देवयानी दुनू दियादिनीक आंखि नोरा गेल रहैक। देवयानी छौड़ाकें पजिया लेलकि आ दुलार करैत बाजलि, "एते कम समय लेल भेंट भेल जे भरि नैन देखिओ ने सकलहुं।"

"से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सं देखिहें मम्मी।" छोटका बाजल।

ओकरा दुनूकें अरियातल गेल।

दुनू बूढ़ा कने फटकी भ 'क' ठाढ़ छलाह। हुनका दुनूक आंखि सेहो नोरायल छलनि।

"मम्मी! एते सेन्टिमेन्टल नहि होइ. बियाहमे तं सभ गोटे एक ठाम जुटबे करब।"

तकर बाद पुष्कर, देवयानी आ दुनू बूढ़ा विदा भेलाह। समान सभ ल 'क' छोटका बेटा आ ओकर संगी सभ टैक्सी स्टैंड दिस बढ़ल। आगां-आगां पुष्कर आ देवयानी। पाछां-पाछां दुनू बूढ़ा।

एकटा बूढ़ा बजलाह, "ककरो अरियातबा काल हमरा काकीक पढ़ल फकरा मोन पड़ि जाइत अछि।"

"की?"

"हमहूँ गामसं नोकरी पर जयबा लेल बहराइ, तं कोन्टा धरि अरिआतथि आ फकरा पढ़थि-सोन पूत बोन मे, कानथि धीया कौन मे।"

"मुदा, आब धीया कौन में कहाँ रहैत छथि, जे कनतीह। आब तं सभ संगहि। जत 'ध' र ओत्तहि घ' र।"

"हं, आब तं बुझाइए जे प्लेटफॉर्म आ मोसाफिरखाना, घर-आंगन आ कोन्टा भ' गेलैए."

"आब लोकक कौन कथा? समयो के संतोख नहि छैक जेना।"

दुनू बूढ़ाकें बुझाइत नहि छलनि जे कत' जा रहल छथि।