हिंदुस्तानी मुर्गी अंग्रेजी जानती है !/ जयप्रकाश चौकसे

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हिंदुस्तानी मुर्गी अंग्रेजी जानती है !
प्रकाशन तिथि : 27 अप्रैल 2013


इसी कॉलम में केवल कुछ दिन पूर्व ध्यान आकर्षित कराया गया था कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में लता मंगेशकर का योगदान महत्वपूर्ण है। देश-विदेश के अनगिनत लोगों ने उनके माधुर्य के कारण हिंदी सीखी। इसलिए गांधी हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा परिसर में किसी भवन या मार्ग का नाम लता मंगेशकर पर रखा जाए और उन्हें मानद उपाधि से भी सुशोभित किया जाए। यह प्रसन्नता की बात है कि संस्था के शीर्ष विभूति नारायण राय ने मुझे फोन पर बताया कि लेख पढऩे के बाद संबंधित निर्णय लिया जा चुका है और लता मंगेशकर को इससे पत्र द्वारा अवगत कराने जा रहे हैं। इस पहल के लिए धन्यवाद।

कुछ फिल्मों से जुड़े लोगों को विदेश के विश्वविद्यालयों ने मानद उपाधि से नवाजा है, परंतु भारतीय संस्थाएं इस संकुचित दृष्टिकोण से पीडि़त हैं कि यह विधा संस्कारवान व्यक्तियों के लिए नहीं है। दरअसल इस तरह के दृष्टिकोण के कारण शिक्षित वर्ग दशकों तक माध्यम को हेय दृष्टि से देखता रहा।

विगत कुछ दशकों से इस दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। सिनेमा सितारा केंद्रित है तो यह परिवर्तन भी उद्योग के ग्लैमर और सितारों की अपील तक सीमित है। इसे सिने माध्यम के प्रति रुचि नहीं कहा जा सकता। मीडिया के फैलते हुए दायरों ने सितारों के लिए दीवानापन बढ़ा दिया है। समाज में मौजूद आर्थिक खाई ने भी इस दीवानेपन को बढ़ाया है, क्योंकि नवधनाढ्य वर्ग अपने शादी-ब्याह में धन देकर सितारों को उत्सव में आमंत्रित करता है और एक तरह की प्रतिस्पद्र्धा है कि फलां की शादी में अमुक के ब्याह से ज्यादा सितारे आए। व्यवस्था का ढांचा कुछ इस तरह का है कि गैरजरूरी बातों की ओर अवाम का ध्यान आकर्षित हो, ताकि मूल मुद्दे नजरअंदाज कर दिए जाएं।

सेंसर प्रमाण-पत्र पर जिन फिल्मों को हिंदी की फिल्में बताया जाता है, वे फिल्में आम आदमी की हिंदुस्तानी भाषा की फिल्में रही हैं। बिंबप्रधान माध्यम होने के कारण किसी भी भाषा के कठिन शब्द भी सिनेमा में दर्शक समझ लेता है। 'मुगले आजम' के साथ कोई परेशानी नहीं हुई, परंतु अकारण ही 'रजिया सुल्तान' की असफलता का ठीकरा फारसी मिश्रित कठिन उर्दू के माथे मढ़ दिया गया, जबकि वह उबाऊ फिल्म थी। 'पाकीजा' या 'उमराव जान अदा' में भी कोई समस्या नहीं आई, क्योंकि वे मनोरंजक फिल्में थीं। आजकल 'अदालत' नामक धारावाहिक में नायक केडी पाठक विशुद्ध हिंदी में बात करता है और इस कारण उसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। उर्दू में बना 'कुबूल है' भी लोकप्रिय है। सिनेमा अधिकतम की पसंद का माध्यम है, इसलिए लोकप्रियता को खारिज नहीं किया जा सकता, परंतु किसी चीज को इसलिए भी सही नहीं माना जा सकता कि वह लोकप्रिय है।

विगत तीन दशकों में भारतीय जीवन शैली में ही अंग्रेजी ने प्रवेश कर लिया है। टेक्नोलॉजी शासित युग में अंग्रेजी का महत्व इतना बढ़ गया है कि छोटे कस्बों में अंग्रेजी की शिक्षा देने वाली संस्थाएं खुल गई हैं। इन दो दशकों में शिक्षण संस्थाएं अस्पतालों की तरह व्यावसायिक हो गई हैं, न शिक्षा में कोई आदर्श है, न अस्पताल में कोई सेवाभाव है। विज्ञापन की ताकतों ने भी अंग्रेजी को महत्व दिया है, क्योंकि उन्हें ब्रांड स्थापित करना है और वे जानते हैं कि खरीदारी करने की क्षमता किस वर्ग के पास अधिक है। पैसा बोलता है और उसी की भाषा अवचेतन पर राज करती है। एक विज्ञापन फिल्म में सैफ अली खान मुर्गी से तीन अंडे मांगते हैं और उसके दो अंडे देने पर कहते हैं 'आइ सेड थ्री, हिंदी नहीं समझती' और मुर्गी तीसरा अंडा दे देती है। हास्य में कही गई इस बात में यह अर्थ भी है कि आजकल मुर्गियां अंग्रेजी समझती हैं और हिंदी में मांगने पर दो अंडे तथा अंग्रेजी में तीन अंडे देती हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि भारतीय मुर्गियां अब अमेरिका में सूर्योदय के पहले बांग देती हैं और भारत में सूर्योदय के समय लेटनाइट दावत में नहीं खाए जाने की खुशी में सोई रहती हैं। कुछ वर्ष पूर्व विदेश से आए वायरस के कारण हजारों मुर्गियां मर गई थीं। उस समय बाजार में मुर्गी आलू से कम दाम में बेची जा रही थीं और हर किस्म के वायरस से निर्भय गरीब लोग बीमार मुर्गियां खा रहे थे। ये ही रणबांकुरे बीमार सड़ांध भरी व्यवस्था को भी सह चुके हैं। अब उन्हें आग नहीं मार सकती, जल नहीं डुबा सकता। उन्हें दिव्य आशीर्वाद प्राप्त है।

भाषाएं अपने आर्थिक आधार पर जिंदा रहती हैं। नौकरी दिला सकने वाली भाषा जीवित रहती है। संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा को देवताओं की भाषा कहकर मनुष्य से दर कर दिया गया और हमने बहुत कुछ खो दिया। सिनेमा बाजार का ही अंग है, अत: संवाद और गीतों में अंग्रेजी के शब्दों का अधिक प्रयोग होने लगा है। दर्शक संरचना में युवा वर्ग का महत्व है और टेक्नोलॉजी का अभ्यस्त युवा वर्ग अंग्रेजी की नौकरी दिलाने वाली ताकत से परिचित है। टेक्नोलॉजी की गुफा के द्वार का 'खुल जा सिम सिम' बन चुकी है अंग्रेजी। बहरहाल, इन तूफानी लहरों से डगमगाते जहाज की लंगर के तरह रहे हैं लता के गीत।