हिट सितारों के आगे निर्देशक निस्तेज / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
हिट सितारों के आगे निर्देशक निस्तेज
प्रकाशन तिथि : 31 अगस्त 2013


आजकल फिल्म के मालिकाना अधिकार को इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स कहते हैं। फूहड़ फिल्म के मालिकाना अधिकार भी इसी तरह पुकारे जाते हैं। पहले इसे निगेटिव अधिकार कहते थे। यहां निगेटिव का अर्थ नकारात्मक नहीं, वरन वह सेल्युलाइड है, जिस पर कैमरे से फिल्म शूट होती थी। डिजिटल टेक्नोलॉजी के विकास के कारण अब सेल्युलाइड की आवश्यकता कम हो गई है, परंतु भव्य बजट की फिल्में आज भी सेल्युलाइड पर ही शूट होती हैं। सिनेमा यकीन दिलाने की कला रही है, अत: सेल्युलाइड नकली के अर्थ में भी प्रयोग में आता है। आजकल फिल्म, गीत-संगीत इत्यादि सब इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी माने जाते हैं। कमाल की बात यह है कि फिल्म उद्योग में इंटेलैक्चुअल एक खतरनाक शब्द माना जाता है, यहां तक कि टीवी चैनल भी हर कार्यक्रम पर अपना एक अधिकारी नियुक्त करते हैं, जिसका काम है कि वह सीरियल को 'मासी' बनाएं अर्थात अवाम की समझ में आने वाला। पूरे मनोरंजन जगत में ही 'इंटेलैक्चुअल' को खतरनाक मानते हैं। कुछ फिल्मों को भी ऐसा ही कहकर नकार दिया जाता है। बौद्धिक शक्ति की उपेक्षा हमेशा यह कहकर की जाती है कि यह बात आम आदमियों को समझ में नहीं आएगी। गोया कि परोक्ष रूप से आम आदमी को बेवकूफ माना जा रहा है और बौद्धिक अस्पृश्य है। सभी क्षेत्रों में बौद्धिक को जाने क्यों खतरनाक माना जाता है।

बहरहाल, वर्तमान दौर के सारे सितारे अब अपने मेहनताने के रूप में फिल्म का तीस से पचास प्रतिशत तक मालिकाना हक मांगते हैं। मात्र एक वर्ष पूर्व तक सितारा लाभ का प्रतिशत केवल पांच वर्ष तक की अवधि के लिए मांगता था और इस अवधि के बाद मालिकाना हक पूरी तरह निर्माता का हो जाता था। अब सितारे मालिकाना हक असीमित समय के लिए मांगने लगे हैं। फिल्म की असफलता का जोखिम सितारे का नहीं है, परंतु लाभ में उसका हक है। फिल्म उद्योग में अनेक निर्माताओं के वंशज अपने पुरोधा की पुरानी फिल्मों के सैटेलाइट अधिकार बेचकर अपना परिवार चलाते हैं, परंतु अब सितारों की मांग के कारण फिल्मकारों की भावी पीढिय़ों को यह सुख सितारे के वंशजों के साथ बांटना होगा। दरअसल, सारे सितारे लोभी नहीं हैं, परंतु अब उनमें आपसी प्रतिस्पद्र्धा इतनी सशक्त हो गई है कि वे अपना महत्व और शक्ति के प्रदर्शन के लिए मालिकाना हक मांगते हैं। अभी तक आदित्य चोपड़ा से किसी सितारे ने मालिकाना अधिकार नहीं मांगा था, परंतु अब सुना जा रहा है कि शाहरुख खान ने आगामी फिल्म में यह अधिकार मांगा है। 'चेन्नई एक्सप्रेस' भला किसी 'स्टेशन' पर रुकती है?

दरअसल, बॉक्स ऑफिस पर सितारों की भीड़ आकर्षित करने की क्षमता ने यह अधिकार मांगने का साहस दिया है। सिनेमा में निर्देशक के पद का मान अब घट गया है, जिसके लिए सितारा हैसियत को दोष दिया जाना गलत है। आज निर्देशक अपनी क्षमता से फिल्म को सफल करा सके तो उसको सम्मान प्राप्त होगा। क्या वी. शांताराम, बिमल रॉय, गुरुदत्त, राज कपूर इस स्थिति को स्वीकार करते? फिल्मी दुनिया में हमेशा निर्देशक को जहाज का कप्तान माना जाता था, अब तो फिल्म शिप ऑफ थीसियस हो गई है, जिसके सारे पुर्जे सितारे की इच्छा से बदले जाते हैं।

यह सचमुच व्यंग्य ही लगता है कि जब फिल्में अधिक बेवकूफाना हो गईं तो उन्हें इंटेलैक्चुअल प्रॉपर्टी माना जाने लगा। आज रोहित शेट्टी जैसा सफल फिल्मकार भी जानता है कि उसका सारा तिलिस्म सितारा आधारित है, इसलिए वह मालिकाना अधिकार नहीं जताता। इस दौर में कुछ फिल्मकार आज भी सितारों के दम पर नहीं हैं, वरन उनके दम से सितारा है, जैसे शूजित (विकी डोनर, मद्रास कैफे)।