हिन्दुस्तान को सलाम / डॉ. बर्नर

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डॉक्टर बर्नर एक फ्रांसीसी सैलानी था, जो मुगल सम्राट शाहजहाँ के राज्यकाल में हिन्दुस्तान आया था और औरंगज़ेब के सिंहासनासीन होने के बाद भी एक दीर्घावधि तक हिन्दुस्तान की यात्रा करता रहा था। फ्रांस वापस जाने के बाद उसने अपने यात्रा-संस्मरण लिखे और प्रधानमन्त्री मिस्टर शेवर कोल बर्ट की सेवा में प्रस्तुत किये।

डॉक्टर बर्नर ने अपनी यह पुस्तक 1670 में समाप्त की थी। डॉक्टर बर्नर हिन्दुस्तान में बारह साल रहा और औरंगज़ेब के साथ कश्मीर भी गया था।

इस देश में यह कैसी ज़ालिमाना पुरानी रस्म चली आती है कि जब कोई शाही नौकर मरता है, तो उसकी जायदाद सरकार के आदेशानुसार जब्त हो जाती है। नेक नाम खाँ नामक एक अमीर ने चालीस-पचास बरस के अरसे में बड़े-बड़े पदों पर आसीन रहकर बहुत दौलत जमा कर ली थी, लेकिन उसको खूब अहसास था कि उसके मरते ही यह दौलत बादशाह के कब्जे में चली जाएगी, चुनांचे उसने मरने के पहले अपनी सारी दौलत गरीबों और विधवाओं में बाँट दी और खाली सन्दूकों में हड्डियाँ, लोहे के टुकड़े, जूते और पुराने कपड़े भरकर उन पर मोहरें लगाकर यह वसीयत कर दी कि इन सन्दूकों में जो माल-असबाब बन्द है, वह खास आली हजरत के लिए है। नेकनाम खाँ के निधन के बाद यह सन्दूक बादशाह के सामने पेश किये गये। बादशाह ने उनको खुलवाया और फिर उसका सामान देखकर इतना लज्जित हुआ कि उसी समय दरबार से उठकर चला गया।

इसी प्रकार एक मालदार बनिया, जो सदा से शाही नौकर था, जब मरा, तो उसकी दौलत भी जब्त हो गयी। उसकी बीवी खुद दरबार में पहुँच गयी और उसने भरे दरबार में बादशाह से हाथ जोड़कर कहा -”सरकार, मेरे पति की आपसे क्या रिश्तेदारी थी, जो आप उसकी दौलत के वारिस बन रहे हैं।” शाहजहाँ यह बात सुनकर कहकहा मारकर हँस दिया और उसने उस बनिये की दौलत पर कब्जा नहीं किया।

कश्मीर में मुझसे एक बुड्ढे नेक मर्द ने, जो कश्मीर के एक प्राचीन राज की नस्ल में शादी कर चुका था, एक बिलकुल नयी और अनोखी दास्तान सुनायी। उस बुड्ढे ने कहा, “मैं मुग़लों से बचकर कश्मीर के एक सुदूर पर्वतीय प्रदेश की ओर निकल गया था और मुझे कुछ नहीं पता था कि किधर जा रहा हूँ। चलते-चलते मैं एक खुशनुमा प्रदेश में जा निकला। इस प्रदेश के लोगों को जैसे ही पता चला कि मैं कश्मीर के भूतपूर्व राजाओं के खानदान का हूँ, मुझसे बड़ी सहृदयता और श्रद्धा से पेश आये और उन्होंने मेरे सामने उपहारों के ढेर लगा दिये। शाम को लोग अपनी सबसे ज्यादा खूबसूरत लड़कियाँ लेकर इस निवेदन के साथ हाजिर हुए कि मैं उनमें से किसी को पसन्द कर लूँ, ताकि इस क्षेत्र को भी मेरी नस्ल का गर्व प्राप्त हो जाए।

यह बुड्ढा इस प्रदेश से एक अन्य प्रदेश में गया। वहाँ भी उसकी वैसी ही आवभगत हुई और यहाँ के लोगों ने अपनी बीवियाँ उसकी सेवा में पेश कीं। मैं अतिथि सत्कार का यह अन्दाज सुनकर विस्मित रह गया।

बंगाल की लम्बी यात्रा के बाद जब मैं दिल्ली आया, तो 1666 में मैंने यहाँ सूर्य-ग्रहण देखा। इस ग्रहण के अवसर पर हजारों हिन्दू जमुना में स्नान के लिए जमा हुए। बहुत बड़ा मेला लगा और हजारों रुपया दान किया गया। मैंने यह भी सुना कि थानेसर (कुरुक्षेत्र) में इस ग्रहण के दिन लगभग डेढ़ लाख आदमी स्नान के लिए जमा हुए थे। थानेसर के इस मेले के पूर्व कुछ ब्राह्मण दिल्ली के दरबार में हाजिर हुए थे और उन्होंने बादशाह की सेवा में एक लाख रुपये का नजराना देकर मेला लगाने की इजाजत ली थी। बादशाह ने इन ब्राह्मणों को खिलअत और एक हाथी दिया था। यह दृश्य देखने के बाद मैंने यह राय कायम की कि मुगल सम्राट यद्यपि मुसलमान हैं, लेकिन हिन्दुओं के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। सिर्फ हिन्दू औरत को सती होने से बचाने की कोशिश जरूर करते हैं।

बन्दी दास नामक मेरा एक दोस्त मेरे स्वामी दानिशमन्द खाँ का मीर मुंशी था। वह तपेदिक के रोग से मर गया। पति के मरते ही उसकी पत्नी ने सती होने का ऐलान कर दिया। बन्दीदास के कुछ रिश्तेदार मेरे स्वामी के यहाँ नौकर थे। इसलिए मेरे स्वामी ने उनके द्वारा यह हुक्म दिया कि बेवा को इस दीवानगी की हरकत से बाज रखा जाए। उन रिश्तेदारों ने औरत को बहुत समझाया कि यद्यपि तुम्हारा यह इरादा अच्छा, सम्माननीय और सराहनीय है, लेकिन तुम्हारे बच्चे अभी छोटे हैं उन्हें छोड़ना निर्दयता होगा। इसलिए तुम सती न हो, लेकिन उस औरत ने न कोई तर्क माना और न अपना इरादा खत्म किया, चुनांचे मेरे स्वामी ने मुझे भेजा कि मैं औरत को समझाऊँ!

जब मैं बन्दीदास के मकान में गया, तो शव के चारों ओर बहुत-सी औरतें बैठी विलाप कर रही थीं। विधवा शव के पायँते बैठी थी। उसके बाल खुले हुए थे। चेहरा पीला हो रहा था। आँखों में आँसू न थे, किन्तु आँखें अंगारा हो रही थीं। मैंने विधवा के पास जाकर कहा कि मैं नवाब दानिशमन्द खाँ के हुक्म से तुम्हें सूचना देने आया हूँ कि नवाब तुम्हारे दोनों बेटों के लिए पाँच-पाँच रुपये का वजीफा जारी रखेंगे। बशर्ते कि तुम सती होकर अपनी जान न गँवाओ, क्योंकि तुम्हारा जिन्दा रहना तुम्हारे बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण के लिए बहुत जरूरी है। जब उसने मेरी बात का कोई जवाब न दिया, तो मैंने जरा दबाव डालने के लिए कहा, “तुमको खूब पता है कि हम अगर चाहें, तो तुमको जबरदस्ती चिता पर बैठने से रोक सकते हैं और उन लोगों को सजा दिला सकते हैं, जो तुम्हें उकसा रहे हैं।”

औरत चुपचाप मेरी बातें सुनती रही और आखिर बड़ी दृढ़ता के साथ मुझसे आँखें मिलाकर बोली, “अगर मुझे सती होने से रोका गया, तो मैं दीवार से सिर फोड़कर मर जाऊँगी।”

औरत का यह जवाब सुनकर मैंने चिल्लाकर कहा, “क्या तेरे सिर पर कोई भूत सवार है, खैर अगर तू सती ही होना चाहती है, तो ए बदबख्त, बेरहम, पहले अपने बच्चों के गले काटकर उनको भी चिता पर जला दे, क्योंकि तेरे बाद उनका पालन-पोषण करनेवाला कोई न होगा।” मैंने इतना कहकर यह धमकी भी दी कि मैं अभी नवाब साहब से कहकर तेरे बच्चों का वजीफा बन्द कराये देता हूँ। मेरे इस प्रकार क्रोध करने का उस औरत पर यह असर हुआ कि वह चुप हो गयी और उसने सिर झुकाकर घुटनों पर रख लिया। उसके बाद मैं वहाँ से चला आया। शाम को मुझे सूचना मिली कि औरत सती नहीं हुई और उसने मेरी सलाह मान ली।

मैंने सती होने के भयानक दृश्य इतनी बार देखे हैं कि भविष्य में सती की किसी अन्य दुर्घटना को देखने का मुझमें साहस नहीं रहा है। ये घटनाएँ इतनी आश्चर्यजनक हैं कि देखे बिना कोई भी इनको सच्चा नहीं मान सकता।

मैं अहमदाबाद से राजस्थान होता हुआ आगरा जा रहा था। हमारा काफिला दोपहर की धूप से बचने के लिए एक कस्बे में एक पेड़ के नीचे ठहरा हुआ था कि मैंने सुना कि उस कस्बे में अभी एक स्त्री अपने पति की लाश के साथ सती होने वाली है। मैं खबर सुनते ही दौड़कर वहाँ पहुँचा और मैंने देखा कि एक बड़े तालाब में, जिसका अधिकांश सूखा पड़ा था, एक बड़ा गड्ढा लकड़ियों से भरा हुआ है। उन लकड़ियों पर एक शव रखा हुआ है और वहाँ एक स्त्री बैठी है। मैं जब वहाँ पहुँचा, तो आग लगाने की सारी तैयारियाँ हो चुकी थीं। मेरे देखते-ही-देखते चिता में आग लगा दी गयी और पाँच-छह अधेड़ उम्र की स्त्रियों ने उस जलती चिता के चारों ओर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नाचना शुरू कर दिया। चिता पर बहुत-सा घी और तेल डाला गया था, इसलिए वह बहुत जल्दी भड़क उठी और स्त्री के कपड़ों में, जिन पर इत्र और जाफरान आदि छिड़का हुआ था, पलक झपकते में आग लग गयी।

सबसे अधिक विस्मय की बात यह थी कि उस स्त्री के चेहरे पर कोई दुख-पीड़ा या घबराहट का चिह्न न था। मैं अभी-अभी आश्चर्य में खोया हुआ था कि सहसा एक अन्य विस्मयकारी कहानी शुरू हो गयी। मैंने देखा, जो स्त्रियाँ चिता के चारों ओर नृत्य कर रही हैं, एक-एक करके चिता में इस तरह कूद गयीं, जैसे उन्होंने पानी में गोता लगाया हो। मेरे देखते-ही-देखते उन स्त्रियों के शरीरों में भी आग लग गयी और वे भी निश्चिन्तता और आराम के साथ जलकर राख हो गयीं।

मैंने एक आदमी से पूछा कि एक पुरुष के साथ कई स्त्रियाँ क्यों सती हुईं, तो मुझे बताया गया कि ये सारी स्त्रियाँ लौंडियाँ थीं और उन्होंने सुना कि उनकी मालकिन पति के बाद जीवित नहीं रहेंगी, तो ये लौंडियाँ भी स्नेहवश से मालकिन के साथ जल मरने को तैयार हो गयीं और उसी आग में जल मरीं जिसमें उनकी प्रिय मालकिन सती हुई थीं। प्रेम और सान्निध्य की यह दुखभरी कहानी मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखी है और मुझे पूरा विश्वास है कि यह दृश्य मैं इस देश के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं नहीं देख सकता!

सती की निम्नलिखित कहानी इतनी अजीब है कि दिल्ली का हर रहनेवाला इससे अवगत है, बल्कि हो सकता है कि अब तक यह कहानी सारे देश में भी फैल चुकी हो।

दिल्ली की एक स्त्री का अपने एक पड़ोसी नवयुवक से, जो तम्बूरा बजाता था और दर्जी का काम करता था, नाजायज सम्बन्ध था। उस स्त्री ने अपने पति को जहर देकर मार दिया और फिर अपने प्रेमी से कहा कि अब फौरन भाग चलो, क्योंकि अगर देर हो गयी, तो मुझे दुनिया की लाज की खातिर मजबूरन अपने पति के साथ सती होना पड़ेगा। लेकिन उसके प्रेमी ने उसके साथ भागने से इनकार कर दिया, प्रेमी के इनकार करने पर यह स्त्री फौरन अपने रिश्तेदारों के पास गयी और कहा कि मेरा पति सहसा मर गया है और मेरा इरादा है कि मैं उसके साथ सती हो जाऊँ। अतः चिता तैयार की गयी। चिता के पास उसका प्रेमी भी उदास खड़ा था। स्त्री अन्तिम रस्में पूरी करने के लिए चिता के चारों ओर घूमी और फिर उसने सहसा अपने प्रेमी को भी गरेबान पकड़कर अपने साथ जलती हुई चिता में घसीट लिया और दोनों देखते-ही-देखते जलकर राख हो गये।

एक बार मैं लाल किला के एक जश्न में भी शामिल हुआ था जिसमें बादशाह को तराजू में, जो खालिस सोने की बनी हुई थी, सोने से तोला गया था और बादशाह का वजन चूँकि पिछले साल की अपेक्षा एक सेर ज्यादा निकला था, इसलिए बड़ी खुशी मनायी गयी थी।

जश्न के अवसर पर महलसरा में एक मीना बाज़ार भी लगता है, जिसमें उमरा की बीवियाँ दुकानें लगाकर बैठती हैं और शाही बेगमें, शहजादियाँ, और स्वयं बादशाह खरीददारी के लिए निकलता है, लेकिन असल मकसद खरीददारी नहीं, बल्कि हँसी-मजाक होता है और अक्सर खरीददार दुकानदारों को रुपयों के बजाय अशर्फियाँ देते हैं! मीना बाजार के अवसर पर उमरा अपनी लड़कियों को खास तौर पर भेजते हैं ताकि उनकी सूरत-शक्ल देखकर उनका रिश्ता तय हो जाए। मीना बाजार में पहले कंचनियाँ भी आती थीं जिनका पेशा नाचना-गाना होता था, लेकिन वह इस्मतफरोस नहीं होती थीं। औरंगज़ेब ने अपनी हुकूमत में उनका आना मना कर दिया। अब मैं चाहता हूँ कि आपको एक प्रसिद्ध कंचनी का भी किस्सा सुना दूँ।

जहाँगीर के जमाने में बर्नार्ड नाम के एक अँग्रेज डॉक्टर की बड़ी ख्याति थी। उसको दरबार से पच्चीस रुपये प्रतिदिन तनख्वाह मिलती थी। बादशाह जहाँगीर उस पर बड़ा मेहरबान था और उसे प्रायः खाने-पीने की महफिलों में भी शामिल कर लेता था। बर्नार्ड की आय काफी थी, लेकिन वह आय का सारा रुपया खर्च कर देता था। उसका बड़ा सम्मान था। एक दिन नृत्य की महफिल में बर्नार्ड की नजर एक कंचनी पर पड़ गयी और वह उस पर आसक्त हो गया। बर्नार्ड ने उस कंचनी से अपने साथ शादी करने को कहा, लेकिन उसकी माँ ने इनकार कर दिया। एक समय में बर्नार्ड का प्रेम इस सीमा तक बढ़ गया कि वह हर समय उसी की कल्पना में खोया रहने लगा। उन्हीं दिनों बादशाह बीमार पड़ा। बर्नार्ड ने उसका इलाज किया और शीघ्र ही बादशाह स्वस्थ हो गया। स्वस्थ होने का जश्न मनाने के लिए दरबार हुआ और इस दरबार में वह कंचनी भी आ गयी जिस पर बर्नार्ड आसक्त था। दरबार में जहाँगीर ने इलाज की सफलता का इनाम देना चाहा, तो बर्नार्ड ने इनाम लेने के बजाय अर्ज किया - जहाँपनाह, मुझे इस इनाम से माफ रखें और इसके बजाय यह प्रार्थना स्वीकार करें कि यह नौजवान कंचनी मुझे इनायत कर दी जाए। जहाँगीर अपने खास डॉक्टर की इस प्रार्थना पर कहकहा मारकर हँसा और उसने आदेश दिया कि उस कंचनी को बर्नार्ड के कन्धे पर बिठा दिया जाए। जब वह कंचनी बर्नार्ड के कन्धे पर सवार हो गयी, तो उसने आदेश दिया - “बर्नार्ड, अब तुम अपना मुँह माँगा इनाम लेकर इसी हालत में दरबार से अपने घर की ओर चल दो।”

मैंने हिन्दुस्तान की खूब सैर की। मैंने इसको एक अजीबो-गरीब मुल्क पाया। बड़ा खूबसूरत, बड़ा हसीन, बड़ा महान और बड़ा विचित्र।

मैंने इतने भोले लोग कहीं नहीं पाये। यहाँ के सौन्दर्य ने भी मुझे बड़ा प्रभावित किया। यहाँ के चित्ताकर्षक प्राकृतिक दृश्य को देखकर मैं प्राय: विस्मय में खो गया। दरिद्रता और असहायता के बावजूद मैंने इस मुल्क को स्वर्ग पाया।

मैं हिन्दुस्तान को सलाम करता हूँ। हिन्दुस्तान के कण-कण को मेरा आखिरी सलाम। अपने दोस्तों का अल विदाई सलाम! काश, मैं दोबारा यहाँ आ सकता!