हिप्पोक्रेटिक शपथ से जुड़ी बातें / जयप्रकाश चौकसे

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हिप्पोक्रेटिक शपथ से जुड़ी बातें
प्रकाशन तिथि : 17 जून 2019


ग्रीस को यूनान भी कहा जाता है। हिपोक्रेटिस एक दार्शनिक डॉक्टर थे और न्याय तथा समानता के आदर्श से प्रेरित उन्होंने डॉक्टर्स के लिए एक शपथ-पत्र बनाया। यूनानी इलाज की विधा का दार्शनिक हिपोक्रेटिस से कोई संबंध नहीं है। यूनानी मेडिकल विज्ञान में यह मान्यता है कि किसी-किसी डॉक्टर के उन नुस्खों से मरीज सेहतमंद हो जाता है, जिन नुस्खों से अन्य डॉक्टर के मरीजों को लाभ नहीं होता। इसे शिफा कहते हैं, कि फलां डॉक्टर के हाथ में शिफा है। यूनानी दवाखाने को शिफाखाना कहा जाता है। यूनान के हिपोक्रेटिस ईसा के जन्म से चार सदी पहले जन्मे थे। यह आश्चर्यजनक है कि गणतंत्र व्यवस्था के समानता व न्याय ही हिपोक्रेटिक शपथ के प्रेरणास्रोत रहे हैं। गोयाकि मेडिकल विज्ञान में यह गणतांत्रिक मूल्यों का समावेश करने की तरह है।

फ्रांसीसी क्रांति के सदियों पहले की बात है, जिसमें हिपोक्रेटिक शपथ यह कहती है कि डॉक्टर कभी अपने मरीज का धर्म और देश नहीं पूछेगा। उसे सभी मरीजों को समान मानना है। गुलजार की एक फिल्म में एक डॉक्टर उस मरीज का इलाज करता है, जिसे हत्या का दोषी मानते हुए मृत्युदंड दिया गया है। हत्या भी डॉक्टर के अपने की हुई थी। ज्ञातव्य है कि फांसी के पूर्व मेडिकल जांच की जाती है और अपराधी के बीमार पाए जाने पर फांसी का दिन टाला जाता है। गोयाकि पूरी तरह सेहतमंद मुजरिम को ही फांसी दी जाती है। अमेरिका में फांसी देना कठिन इसलिए है कि किसी भी प्रांत की अदालत में लगाई अर्जी का फैसला आने तक फांसी स्थगित रखी जाती है। अमेरिका में फांसी के पूर्व दंडित व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ या पत्नी नहीं होने पर किसी अन्य स्त्री के साथ समय गुजारने की इजाजत दी जाती है। मृत्यु के पूर्व प्रेमिका या पत्नी या अन्य स्त्री के साथ वह व्यक्ति कैसे अंतरंगता बना सकता है? मृत्यु और अंतरंग संबंध (अंतरंगता) में यह समानता है कि दोनों में ही मनुष्य समय और स्थान के भाव से मुक्त हो जाता है।

हिपोक्रेटिक शपथ में यह निर्देश है कि डॉक्टर किसी एक मरीज को जहर नहीं देगा। दरअसल, एक डॉक्टर कई ऐसे तरीकों से मरीज की जान ले सकता है कि उस पर हत्या का आरोप ही नहीं लग सकता। मसलन सिरींज में थोड़ी-सी भी हवा वह रहने दे तो एअर बबल कालांतर में मरीज के हृदय में रक्त प्रवाह रोक सकते हैं। खाकसार की फिल्म 'शायद' में इसी संकेत को सेंसर ने हटा दियार था। हमारा सेंसर अवाम को नादान समझता है। मेरे बचपन के मित्र विष्णु मेहता को स्कूटर स्टार्ट करते समय पैर पर हल्की-सी चोट आई। उस चोट में उनकी नस से रक्त की चंद बूंदें निकल गई थीं। कई वर्ष पश्चात वे बूंदें ही उनकी मृत्यु का कारण बनीं। डॉक्टर के व्यवसाय को पवित्र एवं प्राचीन माना जाता है। वह प्रकृति द्वारा मानव शरीर में छोड़ी गई त्रुटियों को भी दुरुस्त करता है। यह हकीकत है कि एक अमेरिकन अनावश्यक रूप से चिंतित रहता था। वह हमेशा अज्ञात भय से कांपता रहता था। एक सर्जन ने उसकी प्रीफ्रंटल लोबोटॉमी कर दी। अर्थात मस्तिष्क में उन सेल्स को ही नष्ट कर दिया, जो उसे भयभीत एवं चिंतित रखते थे। इस शल्यक्रिया के पहले वह योग्य प्रोफेशनल था परंतु शल्यक्रिया के बाद उसकी योग्यता अदृश्य हो गई। अब वह केवल साधारण काम ही कर पाता था। उसके भाई ने अदालत में अर्जी लगाई कि शल्य चिकित्सक ने ईश्वर प्रदत्त रचना में हेराफेरी की है, जिसके प्रमाणस्वरूप एक योग्य प्रोफेशनल अब कुली हो सकता है या चपरासी।

इसी मुकदमे के बाद अमेरिका में प्रीफ्रंटल लोबोटॉमी को अवैध शल्यक्रिया घोषित कर दिया गया। कभी-कभी डॉक्टर के ईमानदार प्रयास करने के बाद भी वह मरीज को बचा नहीं पाता। मरीज के रिश्तेदार डॉक्टर को पीटते हैं और अस्पताल में तोड़फोड़ करते हैं। किसी अपने के मर जाने पर किसी धार्मिक स्थल पर तोड़फोड़ नहीं होती, जबकि छाती ठोंककर यह जपते हैं कि जीवन-मरण ऊपर वाले के हाथ में है। ऐसा लगता है कि व्यवस्था की असफलता, बेरोजगारी और महंगाई इत्यादि समस्याओं के कारण अवाम के मन में आक्रोश है और वह स्वयं द्वारा किए गए गलत फैसलों पर शर्मसार नहीं होते हुए सारा गुस्सा डॉक्टर व अस्पताल पर निकालता है। हर घटना को राजनीति से जोड़ दिया जाता है। चिंगारी को दावानल में बदलने में हम प्रवीण होते जा रहे हैं। हमने वर्तमान में बीमार पड़ने को भी गुनाह बना दिया है। अब प्रार्थना और इंतजार ही अवाम के बस में रह गया है। हर व्यवसाय में काम करने के घंटे निश्चित होते हैं, परंतु डॉक्टर को चौबीसों घंटे अपने मरीजों के लिए उपलब्ध होना पड़ता है।