हिम-मानव येती देखा गया? / जयप्रकाश चौकसे

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हिम-मानव येती देखा गया?
प्रकाशन तिथि : 14 मई 2019


कुछ समय पहले हिमालय क्षेत्र में तैनात हमारे फौजियों को बर्फ पर साढ़े तीन फीट लंबे पैरों के निशान मिले थे और हिम-मानव येती का अस्तित्व पुन: सुर्खियों में आ गया। दशकों पूर्व उड़नतश्तरी देखे जाने की खबरें भी आती थीं। स्टीवन स्पीलबर्ग ने फिल्म बनाई तो राकेश रोशन ने अंतरिक्ष से आए 'जादू' पर फिल्म रची। राकेश रोशन सामूहिक अवचेतन को समझते हैं। इसलिए उन्होंने अपनी विज्ञान फंतासी में धर्म का तड़का लगा दिया। उनके मुख्य पात्र के कंप्यूटर पर 'ओम' की ध्वनि आती है। यह अंतरिक्ष यान द्वारा 'जादू' के पृथ्वी पर आने की सूचना है। हिम-मानव खबरों में लंबे अंतराल के बाद आते रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि विराट के प्रति हमारी तड़प ही इस तरह की बातों को जन्म देती है। हम अपने आकार से संतुष्ट नहीं हैं। हर देश में अपनी मान्यताएं और पूर्वाग्रह हैं। चीन में स्त्री के पैर छोटे हों तो उसे सुंदर माना जाता है। बेचारी चीनी कन्याएं लकड़ी के सख्त जूते पहनती रहीं। हमारे यहां भी एक कहावत है, 'सिर बड़ा सरदार (मुखिया) का, पैर बड़े गंवार के'। हम हिम-मानव को बौने के रूप में नहीं देखते। हमारा दिमागी बौनापन तो सृष्टि के रचयिता को भी छोटा कर देता है। हिमालय पर फिल्म शूटिंग के लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी सबसे बड़ी चुनौती होती है। चेतन आनंद ने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों को 'हकीकत' का सारांश सुनाया और उन्होंने तत्काल उन्हें धन उपलब्ध कराया। चेतन आनंद और बलराज साहनी मिलकर प्रतिदिन अगले दिन के सीन लिखते थे। पूरी पटकथा उनके पास थी ही नहीं। इस तरह हम चेतन आनंद को आशु फिल्मकार कह सकते हैं। प्रकाश मेहरा ने विनोद खन्ना के पुत्र अक्षय को प्रस्तुत किया 'हिमालय पुत्र' नामक फिल्म में परंतु उन्होंने हिमालय पर कोई शूटिंग नहीं की। इस तरह मनोज कुमार और माला सिन्हा अभिनीत 'हिमालय की गोद में' भी स्टूडियो में ही बनाई गई।

गुजरात में मेरे एक परिचित हैं, जिन्होंने 'शिखर' नामक पटकथा मुझे सुनाई थी परंतु कोई सितारा इस तरह की जोखिम भरी शूटिंग नहीं करना चाहता। भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है। इस समय इस मित्र का नाम याद नहीं आ रहा है, जिसका मुझे खेद है। यादों का हिरण ऐसी ही अंजानी झाड़ियों में से छलांग लगाता है। गौरतलब है कि हिमालय का मुख भारत की ओर है तो पीठ चीन की ओर है। हमारे फिल्मकार बर्फ परदे पर प्रस्तुत करने के लिए स्विट्जरलैंड जाते हैं। वहां की सरकार उन्हें सारी सहूलियतें देती है। वे फिल्मकार को उपकरण भी उपलब्ध कराते हैं। हमारे सितारे चुनाव जीतने के बाद संसद में कभी फिल्मोद्योग की समस्याएं नहीं उठाते। नेतागिरी का रंग ऐसे ही गाढ़ा चढ़ता है। फिल्म गीतकार राजशेखर की पंक्तियां याद आती हैं, 'खाकर अफीम रंगरेज पूछे ये रंग का कारोबार क्या है'? यूरोप के अनेक देश वहां शूटिंग पर किए गए व्यय का 30% निर्माता को लौटा देते हैं।

अरसे पहले सलमान खान के कहने पर खाकसार ने एक कथा लिखी थी। पर्वतारोही दल का एक सदस्य हजारों फीट हिमालय की बर्फ में गिर जाता है। उसकी आत्मा अपने परिवार की मदद इस तरह करती है कि उन्हें इसका भान नहीं होता। इसी प्रक्रिया में उसे एक युवती से प्रेम हो जाता है तो आखिर कब तक वह 'मिस्टर इंडिया' की तरह अदृश्य रहकर प्रेम निवेदन करे। अत: वह हिमालय की उस खाई में पड़े अपने शरीर में प्रवेश करता है जो बर्फ के कारण जस का तस रखा है। अब वह शरीर देखा जा सकता है। उसके माता-पिता उसके सात वर्ष तक वक्त गुमशुदा रहने के उपरांत बीमा की रकम पा चुके हैं। उसका सशरीर देखा जाना बीमा अधिकारी को परेशान करता है और वह बीमा रकम की वापस पाने के लिए व धोखाधड़ी का मुकदमा दायर करते हैं। उस व्यक्ति के लिए प्रेम से भी अधिक आवश्यक यह है कि वह गायब हो जाए ताकि उसके माता-पिता जेल जाने से बच सकंे। इसमें कई घटनाएं थीं, जो अब याद नहीं आ रही हैं परंतु गौरतलब यह है कि देह एक तथ्य है, जिसकी अपवित्रता को व्याख्यानों ने स्थापित कर रखा है।

पुनर्जन्म अवधारणा में भी देह की आवश्यकता स्थापित की है। आध्यात्मिकता की राह पर देह को ही प्रताड़ित किया जाता है। चमड़े का हंटर अपनी पीठ पर मारकर भी लोग तमाशा खड़ा करके आजीविका कमाने के लिए मजबूर हैं। येती क्या खाता होगा? उसके पास बर्फ है परंतु स्कॉच नहीं है। हिमालय में कोई हरी सब्जी भी उपलब्ध नहीं है। क्या येती अकेला है या उसकी अपनी बिरादरी है। इससे जुड़े किसी सवाल का कोई उत्तर नहीं है। सारा प्रकरण उड़नतश्तरी के देखे जाने की तरह है। अंतरिक्ष में किसी गोले पर जीवन की संभावना है परंतु हिमवत में कम है। सृष्टि के रहस्य परत दर परत उजागर होकर भी हमारे ज्ञान में अंतर मात्र की कमी ही कर पाए हैं।