हीरा चोरी या हीरा किवदंतियां / जयप्रकाश चौकसे

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हीरा चोरी या हीरा किवदंतियां
प्रकाशन तिथि : 15 जुलाई 2020


बलदेव राज चोपड़ा के सीरियल में नितीश भारद्वाज ने श्रीकृष्ण की भूमिका अभिनीत की थी। उनकी पत्नी ने गहन शोध से किताब लिखी ‘ग्रेट डायमंड्स ऑफ इंडिया’। जानें कैसे हीरों के साथ किवदंतियां जुड़ जाती हैं। कहते हैं कि एक हीरे का स्वामी दुर्घटना में मर जाता है। उसके वारिस का कत्ल हो जाता है। कुछ पीढ़ियों तक सिलसिला जारी रहा, तो उस हीरे को इंग्लैंड के म्यूजियम में रख दिया गया। उपन्यास ‘मून स्टोन’ का कथासार यह है कि दक्षिण भारत के मंदिर में स्थापित एक मूर्ति की आंख के स्थान पर एक बहुमूल्य हीरा लगाया गया था। तत्कालीन सरकार के एक अफसर पर हीरे की चोरी का आरोप था। पुजारी ने हीरा वापस लेने की चेष्टा की, परंतु जांच-पड़ताल के स्वांग में कुछ न हुआ। हर कालखंड में यह स्वांग होता है। एक सांप्रदायिक फसाद की जांच के लिए भी एक कमेटी गठित हुई थी, जाने किस दफ्तर में रपट धूल खा रही है। धूल फांकते-फांकतेे रपट की ही मृत्यु हो जाती है। हमें जैसे मोहनजोदड़ो-तक्षशिला के शिल्प व दस्तावेज खुदाई में मिले, वैसे ही भविष्य में की जाने वाली खुदाई में रपटों के कंकाल मिलेंगे।

बहरहाल ‘मून स्टोन’ की कथा में अफसर सेवानिवृत्त होकर लंदन चला जाता है। पुजारी के वंशज भी लंदन पहुंचते हैं, अंत में यह प्रस्तुत किया गया है कि परिवार के ही एक सदस्य ने हीरा चुरा लिया था, गोयाकि चोरी नहीं हुई परंतु पुजारी के वंशजों को पुलिस ने मारा-पीटा। एनकाउंटर होते रहे हैं। हीरा चोरी पर बनी फिल्म ‘ग्रैंड स्लैम’ में चोरी वाली रात सुरक्षा अधिकारी ने ही नकली हीरे रखे थे। सेवानिवृत्ति अधिकारी की हीरों की पोटली उठाईगिरा ले भागता है व उसके हाथ कुछ नहीं आता। कन्नड़ भाषा में भैरप्पा का उपन्यास ‘दायरे अपनी-अपनी आस्थाओं के’ में एक निसंतान व्यक्ति, पत्नी की जिद से लंबा अनुष्ठान आयोजित करता है। मौका देख साधु के मोटे खोखले डंडे से हीरे निकालकर कंकर भर देता है। साधु कुंभ में ब्राह्मण भोज आयोजन के लिए डंडे में हीरे की जगह पत्थर पाकर श्रॉप देता है कि यजमान का पुत्र सब त्याग करके कुंभ में प्रयाग आकर एक सामूहिक ब्राह्मण भोज देकर अपने वंश को श्रॉप मुक्त करेगा। दरअसल यह उपन्यास पुनर्जन्म अवधारणा पर प्रकाश डालता है। इसमें भी मंदिर में हीरे जड़ित मूर्ति का प्रकरण प्रस्तुत है।

स्विटजरलैंड स्थित बैंकों से अधिक धन पूजा स्थानों पर मिलता है, जहां चढ़ावे की धनराशि गिनने दर्जनों लोग नियुक्ति किए जाते हैं व जमा-जोड़ चढ़ावे का हिसाब बनाने में बड़ा परिश्रम लगता है।

रवींद्रनाथ टैगोर की एक कथा में एक व्यक्ति की कंजूसी के कारण उसका पुत्र उसे छोड़कर चला जाता है। कालांतर में कंजूस व्यक्ति तथ्यों से अनभिज्ञता के कारण अपने अबोध पोते को ही तलघर में बंद कर देता है। उसे भ्रांति थी कि ऐसी बलि के बाद अबोध बच्चे सांप बन खजाने की रखवाली करता है। तमाम खजाना कथाओं के साथ सांप जुड़ जाते हैं। इसलिए नागमणि किवदंती है। सांप का बीन की ध्वनि पर डोलना भी असत्य है, परंतु अवाम सपेरा होते हुए व्यवस्था की बीन पर क्यों डोलता है? संभवत: प्राचीन ग्रंथों के अशुद्ध अनुवाद से ही यह गफलत थी। प्रेमनाथ की फिल्म ‘प्रिजनर्स ऑफ गोलकुंडा’ में हीरे की खान में मजदूरों को बेगारी के लिए बाध्य किया जाता है। अमिताभ बच्चन अभिनीत ‘मिस्टर नटवरलाल’ में भी मजदूरों की कथा प्रस्तुत है। कृष्णा शाह की फिल्म ‘शालीमार’ में हीरा चोरी का विवरण है।

कुंडली देखकर उचित हीरा धारण किया जा रहा है। जाने, धरती की अंतड़ियों में जन्में हीरे का आकाश के तारों से क्या संबंध है? हीरे को लेकर कहानी बनी हैं- ‘वह नाश्ते में हीरे खाती है, हीरे महिला के श्रेष्ठ मित्र हैं।’ आई.एन फ्लेमिंग के जेम्स बांड उपन्यास ‘डायमंड्स आर फॉरएवर’ में हीरा अर्थशास्त्र का विवरण है। चार्ली चैपलिन की ‘गोल्ड रश’ में भूख से परेशान नायक अपने जूतों का तला उबालकर खाता है। तले से कील यूं निकालता है मानो मांस से हड्डी निकाल रहा हो। संदेश स्पष्ट है।