हीरा मंडी: ठाड़े रहियो ओ बांके यार / जयप्रकाश चौकसे

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हीरा मंडी: ठाड़े रहियो ओ बांके यार
प्रकाशन तिथि : 06 अगस्त 2021


संजय लीला भंसाली अपनी फिल्मों में रंग और ध्वनि का अतिरेक प्रस्तुत करते हैं। विगत कई वर्षों से वे पाकिस्तान स्थित तवायफों की बस्ती ‘हीरा मंडी’ को फिल्माने का विचार कर रहे थे। खबर है कि ऋचा चड्ढा अभिनीत ‘हीरा मंडी’ ओ.टी.टी मंच के लिए बनाई गई है। सआदत हसन मंटो ने तवायफों पर कहानियां लिखी हैं। उनकी एक कथा में एक अमीरजादा अपनी मनपसंद युवा तवायफ के कोठे पर जाता है। वहां उसे 50 पार उम्र की तवायफ मिलती है। अमीरजादा उसे खूब धन देकर काम बंद करने का वादा उससे लेता है। मानवीय करुणा के लिए नहीं, वरन उसे गंदगी से चिढ़ है और वह अपने श्रेष्ठि वर्ग के होने के अभिमान से ग्रसित है इसलिए। कुछ दिन तक वादा निभाया जाता है। महिला पुन: अपना व्यवसाय प्रारंभ करती है और अमीरजादे का धन यह कहकर लौटाती है कि वह अपनी वर्षों की आदत छोड़ नहीं सकती। वह मुफ्तखोर नहीं है।

कमाल अमरोही की अशोक कुमार, मीना कुमारी अभिनीत फिल्म ‘पाकीजा’ बनने में बहुत लंबा समय लगा। फिल्म प्रदर्शन के दूसरे सप्ताह में मीना कुमारी की मृत्यु हो गई, जिसके बाद फिल्म लंबे समय तक चली। दर्शक ‘पाकीजा’ देखने को मीना कुमारी के प्रति अपनी आदरांजली मानते थे। संजीव कुमार और मुमताज अभिनीत फिल्म ‘खिलौना’ में एक अमीर परिवार अपने पुत्र की दिमागी गड़बड़ी को दूर करने के प्रयास के रूप में एक तवायफ को उस नायक की पत्नी की भूमिका अभिनीत करने का सौदा करता है। तवायफ के प्रेममय व्यवहार के कारण नायक ठीक हो जाता है, उसकी जिद है कि वह सारी उम्र अपनी पत्नी के साथ रहना चाहता है। गोया की प्रेम की रसायनशाला में करुणा इस तरह अनचाहे ही खोज ली जाती है।

ज्ञातव्य है कि श्याम बेनेगल ने शबाना आज़मी और स्मिता पाटिल अभिनीत फिल्म ‘मंडी’ बनाई थी। नरगिस की मां जद्दनबाई कलकत्ता के कोठे में गाना गाती थीं। जद्दनबाई के विवाह के बाद डाकुओं ने हमला किया और उन्हें भी साथ ले गए। डाकुओं के पंजे से किसी तरह मुक्त होकर वे दोबारा गाने लगीं। दरअसल ‘मदर इंडिया’ के भव्य स्केल पर जद्दनबाई बायोपिक भी बन सकती है।

एक रोचक अध्याय इस तरह है कि एक नगरपालिका में कुछ शुद्धतावादी लोग चुनाव जीत कर आए, तो उन्होंने पहला प्रस्ताव यह पारित किया कि तमाम तवायफों को शहर बदर किया गया। तवायफों ने शहर से थोड़ी दूर एक सुनसान जगह अपना बसेरा बनाया। उनके ग्राहक भी वहां पहुंचने लगे। धीरे-धीरे वहां विकास होता गया और कालांतर में वहां एक शहर बन गया। फिर व्यवस्था के लिए चुनाव हुए और नेताओं ने फैसला किया कि शहर की स्वच्छता के लिए तवायफों को शहर बदर किया जाए। इस तरह तब तवायफों ने भी बस्तियां बनाई हैं, परंतु किसी तवायफ ने कभी चुनाव नहीं लड़ा क्या वे इसे अपनी तौहीन समझती हैं? तीसरे जेंडर के एक सदस्य ने चुनाव जीता है।

महेश भट्ट की विद्या बालन अभिनीत ‘बेगम जान’ देश की विभाजन रेखा पर बने कोठे की कहानी है। तवायफें विभाजन को अस्वीकार करके अपने कोठे की रक्षा करते हुए अपने प्राण तज देती हैं। इस काम ने एक नया रूप लिया और इसे ‘कॉल गर्ल’ कहा गया। इस विषय पर ‘79 पार्क एवेन्यू’ नामक उपन्यास से प्रेरित रानी मुखर्जी अभिनीत फिल्म ‘लागा चुनरी में दाग’ बनाई गई थी।

व्ही. शांताराम ने पुलिस कांस्टेबल और तवायफ की प्रेम कथा ‘आदमी’ नामक फिल्म में प्रस्तुत की थी। कुछ वर्षों बाद हॉलीवुड में पुलिस कांस्टेबल और तवायफ प्रेम कथा से प्रेरित फिल्म ‘इरमा ला डूज’ बनी। शम्मी कपूर के निर्देशन में संजीव कुमार और जीनत अभिनीत ‘मनोरंजन’ बनी इस फिल्म में गीत ‘कितना प्यारा गीत है ये गोया के चुनांचे’ था। तवायफ जीवन से प्रेरित फिल्मों में गीत-संगीत मधुर रचा गया है।